शब्द का अर्थ
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अपा :
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स्त्री० [हिं० आपा] अभिमान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपाइ :
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स्त्री० [हिं० अपाय] १. अनरीति। २. अत्याचार। उदाहरण—तजि कै अपाइ तीर बसैं सुख पाइ गंगा।—सेनापति। |
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अपाउ :
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पुं० -अपाय। उदाहरण—जोगवत अनट अपाउ।—तुलसी। वि० [हिं० अ+पाँव] बिना पैर का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपाक :
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वि० [सं० न० ब०] जो अभी अच्छी तरह या पूरा पका न हो। अपक्व। कच्चा। पुं० [न० त०] १. कच्चे होने की अवस्था या भाव। कच्चापन। २. अजीर्ण रोग। वि० नापाक। |
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अपाकरण :
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पुं० [सं० अप-आ√कृ (करना)+ल्युट्-अन] १. दूर करना। २. हटाना। ३.ऋण, देन आदि चुकाना। (लिक्विडेशन आँफ डेट) |
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अपाकर्म (न्) :
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पुं० [सं० अप-आ√कृ (करना)+मनिन्] १. ऋण आदि का परिशोधन। अदायगी। २. वह कार्य जिसमें किसी व्यापारिक संस्था का देना-पावना चुकाकर उसका सारा व्यापार अधिकार में ले लिया जाता है या बंद किया जाता है। (लिक्विडेशन आँफ कम्पनी) |
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अपाकृति :
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स्त्री० [अप-आ√कृ+क्तिन्]—अपाकरण। |
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अपांक्त :
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वि० [सं० न० त०] (व्यक्ति) जो बिरादरी या समाज की पंक्ति में बैठकर सबके साथ खानपान का अधिकारी न हो। जातिबहिष्कृत। |
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अपांग :
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पुं० [सं० अप√अंग्(गति)+घञ्] १. आँख का कोना। २. चिरछी नजर। कटाक्ष। ३.संप्रदायसूचक तिलक। ४. कामदेव। ५. अपामार्ग। वि० [सं० अप-अंग,ब० स०] १. शरीर रहित। अशरीरी। २. जिसे कोई अंग न हो। अथवा टूटा-फूटा या बेकाम हो। ३. अपाहिज। पंगु। |
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अपाची :
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स्त्री० [सं० अप√अञ्च् (गति)+क्विप्-ङीष्] [वि० अपाचीन, अपाच्य] दक्षिण या पश्चिम की दिशा। |
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अपाच्य :
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वि० [सं० अफ्च् (पकाना)+ण्यत् न० त०] १. जो पकाया न जा सके। २. जो पचता न हो अथवा जो पच न सके। ३. [अपाची+यत्] दक्षिणी या पश्चिमी दिशा का। |
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अपाटव :
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पुं० [सं० न० त०] १. पटुता न होने का भाव। फूहड़पन। अनाड़ीपन। २. भद्दापन। ३. कुरूपता। ४. बीमारी। रोग। ५. मद्य। शराब। वि० [न० ब०] १. अपुट। अनाड़ी। २. मंद। सुस्त। ३. कुरूप। भद्दा। ४. रोग-ग्रस्त। बीमार। |
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अपाठय :
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वि० [सं० न० त०] १. जो पढ़ने योग्य न हो। २. जो पढ़ा न जा सके। |
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अपात्र :
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वि० [सं० न० त०] जो ठीक या उपयुक्त पात्र अथवा अधिकारी न हो। पुं० अनुपयुक्त या बुरा पात्र। |
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अपात्रीकरण :
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पुं० [सं० अपात्र+च्वि√कृ+ल्युट्-अन] १. अशोभनीय कार्य करना। २. वह कर्म जिसे करने से ब्राह्मण अपात्र हो जाता है। |
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अपादक :
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वि० [सं० न० ब० कप्] जिसमें या जिसे पद न हों। पद—हीन। |
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अपादान :
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पुं० [सं० अप-आ√दा+ल्युट्-अन] १. किसी चीज में से कुछ निकालना, लेना या हटाना। २. अलग करना। ३. वह चीज जिसमें से कोई दूसरी चीज निकाली या हटाई जाए। ४. व्याकरण में, वह कारक। विशेष—दे० ‘अपादान कारक’। |
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अपादान कारक :
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पुं० [सं० ष० त०] व्याकरण में, छः कारकों मे से पाँचवाँ कारक जो वाक्य में उस स्थिति का सूचक होता है, जिससे किसी वस्तु या वास्तविक या कल्पित विश्लेष होता अथवा किसी क्रिया के आरंभ होने का अधिष्ठान या आधार सूचित होता है। इसका चिन्ह ‘से’ विभक्ति है (एब्लेटिव केस) जैसे—‘घर से चलना’ में ‘घर’ अपादान कारक में है। |
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अपान :
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पुं० [सं० अप-आ√नी (ले जाना)+ड] १. पाँच प्राणों में से एक जिसकी गति नीचे की ओर होती है। २. गुदा के ऊपरी भाग में स्थित वह वायु जो मल-मूत्र बाहर निकालती है। ३. गुदा-मार्ग से बाहर निकलने वाली वायु। पाद। गुदा। वि० दुःख दूर करनेवाला। पुं० ईश्वर। पुं० [हिं० अपना] १. अपनापन। आत्मभाव। २. आत्म-ज्ञान। सुधि। उदाहरण—जनक समान अपान बिसारे।—तुलसी। ३. आत्म-गौरव। सर्व०=अपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपान-द्वार :
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पुं० [ष० त०] गुदा। |
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अपान-वायु :
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पुं० [ष० त०] गुदा में से निकलने वाली वायु जो शरीर की पाँच वायुओं मे से एक कही गई है। पाद। |
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अपानन :
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पुं० [सं० अप्√अन् (साँस लेना)+ल्युट्-अन] १. प्राण-वायु को अंदर ले जाना। साँस खीचना। २. मल-मूत्र आदि का त्याग। वि० [सं० अप+आनन, ब० स०] जिसका आनन या मुँह न हो। मुख-रहित। |
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अपाना :
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सर्व०=अपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपांनाथ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. समुद्र। २. वरुण। ३. विष्णु। |
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अपांनिधि :
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पुं० [सं० ष० त०] अपांनाथ। |
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अपानृत :
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वि० [सं० अप-अनृत, ब० स०] अनृत या मिथ्या से भिन्न, अर्थात् सत्य। |
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अपाप :
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वि० [न० ब०] [स्त्री० अपापा] निष्पाप। पाप-रहित। पुं० [सं० न० त०] वह जो पाप न हो अर्थात् पुण्य। |
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अपांपति :
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पुं० [सं० ष० त०] अपांनाथ। |
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अपामार्ग :
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पुं० [सं० अप√मृज् (शुद्धि)+घञ्] चिचड़ा। लटजीरा। |
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अपामार्जन :
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पुं० [सं० अप-आ√मृज्+णिच्+ल्युट्-अन] १. सफाई। शुद्धि। २. दूर करना। (रोग आदि)। |
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अपामृत्यु :
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स्त्री०=अपमृत्यु। |
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अपाय :
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पुं० [सं० अप√इ(गति)+अच्] १. दूर या पीछे हटना। अपगमन। २. अलगाव। पार्थक्य। ३. नाश। ४. नीति विरुद्ध आचरण। ५. किसी के प्रति किया जाने वाला अनुचित या हानिकारक कार्य। ६. उत्पात। उपद्रव। ७. अंत। ८. लोप। ९. विपत्ति या भय की आशंका। वि० [सं० अ०=नहीं+पाद, प्रा० पाय=पैर] बिना पैर का। लँगड़ा। वि० [सं० अनुप्राय] जिसके पास कोई उपाय न रह गया हो। निरुपाय। |
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अपायी (यिन्) :
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वि० [सं० अप√इ+णिनि] [स्त्री० अपायिनी] १. नष्ट होनेवाला। नस्वर। २. अस्थिर। अनित्य। ३. अलग रहने या होनेवाला। ४. हानिकारक। |
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अपार :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसका पार न हो। सीमा-रहित। अनंत। २. बहुत अधिक। ३. उग्र। तीव्र। प्रचंड। पुं० १. समुद्र। सागर। २. नदी का सामनेवाला किनारा। ३. असहमति। ४. सांख्य के अनुसार वह तुष्टि जो अपमान, परिश्रम आदि से बचने पर होती है। |
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अपारग :
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वि० [सं० न० त०] १. जो पार जानेवाला न हो। २. अयोग्य। ३. असमर्थ। |
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अपारदर्शक :
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वि०=अपार-दर्शी। |
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अपारदर्शिता :
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स्त्री० [सं० अपरदर्शिन्+तल्-टाप्] अपारदर्शी होने की अवस्था, गुण या भाव। (ओपैसिटी) |
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अपारदर्शी (र्शिन्) :
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वि० [सं० न० त०] जो पारदर्शी न हो। जिसके उस पार की चीज दिखाई न दे। (ओपेक) |
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अपारा :
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स्त्री० [सं० न० ब० टाप्] धरती या पृथ्वी, जिसका कहीं पार नहीं है। |
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अपार्थ :
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वि० [सं० अप-अर्थ, ब० स०] १. अर्थ से रहित या हीन, फलतः निरर्थक। व्यर्थ। २. अनुचित, अशुद्ध या दूषित अर्थवाला। ३. जिसका कोई उद्देश्य फल या प्रभाव न हो। निष्फल। ४. विनष्ट। पुं० साहित्य में, पद या वाक्य का अर्थ स्पष्ट न होने का दोष। |
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अपार्थक :
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पुं० [सं० अपार्थ+कन्] न्याय में एक निग्रह स्थान जो ऐसे वाक्यों के प्रयोग से होता है जिनमें पूर्वापर का विचार या संबंध न हो। वि० =अपार्थ। |
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अपाल :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसका कोई पालक अथवा रक्षक न हो। २. जिसकी रक्षा न की गई हो। अरक्षित। ३. जो सुरक्षित न हो। असुरक्षित। |
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अपालंक :
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पुं० [सं० ] पालक नाम का साग। |
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अपाव :
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पुं० [सं० अपाय=नाश] १. अन्याय। २. उत्पात। उपद्रव। ३. खराबी। बुराई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपांवत्स :
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पुं० [सं० ष० त०] चित्रा नक्षत्र से पाँच अंश उत्तर का एक तारा। |
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अपावन :
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वि० [सं० न० त०] जो पावन या पवित्र न हो। अपवित्र। |
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अपावरण :
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पुं० [सं० अप-आ√व्(ढँकना)+ल्युट्-अन] १. आवरण हटाना। २. फिर से प्रकाश में या सामने लाना। |
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अपावर्तन :
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पुं० [सं० अप-आ√वृत् (बरतना)+ल्युट्-अन] १. पीछे की ओर आना या हटना। २. कथन, वचन आदि का पालन न करना या उसके पालन से पीछे हटना। (रिट्रीट) ३. लौटना। वापस आना। ४. भागना। ५. चक्कर लगाना। घूमना। |
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अपावृत :
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वि० [सं० अप-आ√वृ (आच्छादन)+क्त] १. जिस पर से आवरण हटा दिया गया हो। २. जो फिर से प्रकाश में लाया गया हो। ३. जो नियंत्रण में न हो। अनियंत्रित। |
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अपावृति :
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स्त्री० [सं० अप-आ√वृ+क्तिन्] १. अपावर्तन। २. छिपने का स्थान। |
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अपावृत्त :
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भू० कृ० [सं० अप-आ√वृत् (बरतना)+क्त] १. लौटाया या पीछे हटाया हुआ। २. तिरस्कार पूर्वक अस्वीकृत किया हुआ। |
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अपांशुला :
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वि० ,स्त्री० [सं० पाशु+लच्-टाप्+न० त०] पतिव्रता। |
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अपाश्रय :
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वि० [सं० अप-आ√श्रि (सेवा)+अच्] जिसे कोई आश्रय या सहारा न हो। निराश्रय। पुं० १. आँगन के बीच का मंडप। २. शामियाना। ३. बिस्तर या पलंग का सिरहाना। ४. वह जिसका आश्रय लिया जाए। |
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अपाश्रित :
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वि० [सं० अप-आ√श्रि(सेवा)+क्त] १. जो एक ही आश्रय या स्थान में रहकर समय बिताता हो। एकांत-सेवी। २. संसार-त्यागी। विरक्त। |
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अपासरण :
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पुं० [सं० अप-आ√सृ(गति)+ल्युट्-अन] १. दूर हटने या हटाने की क्रिया या भाव। २. भागना। |
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अपाहज :
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वि० [सं० अपाथेय=जो चल न सके, प्रा० अपाहेज्य] १. अंगहीन। २. लूला-लँगड़ा। ३. काम करने के अयोग्य। ४. आलसी। |
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अपाहिज :
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वि०=अपाहज। |
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