शब्द का अर्थ
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असुर :
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पुं० [सं०√अस् (दीप्ति)+उर] १. वैदिक काल में वह जो सुर या देवता न हो, बल्कि उनसे भिन्न और उनका विरोधी हो। २. प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्य या राक्षस। ३. इतिहास और पुरातत्त्व से आधुनिक असीरिया देश के उन प्राचीन निवासियों की संज्ञा जिन्हें उन दिनों ‘असर’ कहते थे और जिनके देश का नाम पहले असुरिय आधुनिक असीरिया था। ४. नीच वृत्तिवाला और असंस्कृत पुरुष। ५. एक प्रकार का उन्माद जिसमें रोगी, गुरु देवता ब्राह्मण आदि की निंदा करता और उन्हें भला-बुरा कहने लगता है। ६. राहु। ७. रात्रि। रात। ८. बादल। मेघ। ९. पृथ्वी। १. सूर्य। ११. समुद्री नमक। १२. देवदार नामक वृक्ष। वि० १. अपार्थिव। अलौकिक। २. जीवित। ३. ब्रह्म और वरुण का एक विशेषण। |
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असुर-कुमार :
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पुं० [ष० त०] जैनशास्त्रानुसार एक त्रिभुवनपति देवता। |
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असुर-गुरु :
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पुं० [ष० त०] शुक्राचार्य। |
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असुर-राज :
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पुं० [ष० त०] राजा बलि। |
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असुर-रिपु :
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पुं० [ष० त०] विष्णु। |
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असुर-विद्या :
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स्त्री० [ष० त०] वह विद्या या शास्त्र जिसमें भिन्न-भिन्न देशों की अनुश्रुतियों के आधार पर असुरों या राक्षसों और उनके कार्यों आदि का अध्ययन या विवेचन होता है। (डेमनालोजी) |
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असुर-सूदन :
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पुं० [ष० त०] विष्णु। |
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असुरा :
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स्त्री० [सं० असुर+टाप्] १. रात्रि। २. राशि। ३. वेश्या। |
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असुराई :
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स्त्री० [सं० असुर] १. असुरों का सा क्रूर आचरण व्यवहार या स्वभाव। २. परले सिरे की दुष्टता और राक्षसी निदर्यता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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असुराचार्य :
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पुं० [सं० असुर-आचार्य, ष० त०] १. शुक्राचार्य। २. शुक्र ग्रह। |
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असुराधिप :
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पुं० [सं० असुर-अधिप, ष० त०] राजा बलि। |
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असुरारि :
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पुं० [सं० असुर-अरि, ष० त०] १. विष्णु। २. देवता। |
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असुरी :
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स्त्री० [सं० असुर+ङीष्] १. राक्षसी। २. राई। |
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