शब्द का अर्थ
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आधा :
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वि० [सं० अर्ध, प्रा० अड्ढ, पा० अद्ध, गु० आड़, का० मरा० सिह० अड] १. किसी वस्तु के दो बराबर भागों में से हर एक। पद |
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आधा-तीहा :
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वि० [हिं० आधा+तिहाई] आधे या तिहाई के लगभग। आधे से कुछ कम या तिहाई से कुछ अधिक। |
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आधा-सीसी :
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स्त्री० [हिं० आधा+सीस(शीर्ष) =सिर] आधे सिर का दर्द। अध-कपारी। |
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आधाझारा :
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पुं० [सं० आधाट] अपामार्ग या चिचड़ा नाम का पौधा। |
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आधाता (तृ) :
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वि० [सं० आ√धा(धारण करना)+तृच्] कहीं से कोई चीज लाकर रखने या स्थापित करनेवाला। आधान करनेवाला। पुं० १. अध्यापक। शिक्षक। २. वह जो कोई चीज किसी के पास गिरवी या बंधक रखे। |
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आधान :
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पुं० [सं० आ√धा+ल्युट्-अन] १. बैठाने, रखने या स्थापित करने की क्रिया या भाव। जैसे—अग्नि या गर्भ का आधान। २. गर्भ। उदाहरण—कितिक दिवस अंतरह रहिय आधान राखि उर।—चंदबरदाई। ३. गर्भाधान से पहले होनेवाला एक संस्कार। ४. ग्रहण करना। लेना। ५. वह अवकाश पात्र या स्थान जिसमें कोई चीज रखी जाए या रखी जा सके। पात्र। (रिसेप्टेकल) ६. घेरा। ७. प्रयत्न। ८. कोई चीज किसी के पास बंधक या रेहन रखना। |
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आधानवती :
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वि० स्त्री० [सं० आधान+मतुप्० वत्व-ङीष्] गर्भवती। |
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आधानिक :
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पु० [सं० आधान+ठञ वत्व-ङीष्] गर्भाधान से पहले होनेवाला एक संस्कार। |
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आधायक :
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पुं० [सं० आ√धा+ण्वुल्-अक] १. आधान करने (लाकर रखने, बैठाने या स्थापित करने) वाला। जैसे—दोषाधायक-दोष से युक्त करनेवाला। २. प्रभावित करनेवाला। ३. देनेवाला। |
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आधार :
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पुं० [सं० आ√धृ (धारण)+घञ्] १. नीचे की वस्तु जिसके ऊपर कोई दूसरी वस्तु टिकी ठहरी या रखी हो। जैसे—इस जल का आधार यह घड़ा (या लोटा) है। २. वह जो किसी को किसी प्रकार का आश्रय या सहारा देता हो। जैसे—जीवन का आधार भोजन है। ३. वह जिसके बल पर कोई काम या बात चलती या होती है। अवलंब। भरोसा। सहारा। जैसे—(क) जल-पान कर लिया, इससे दिन भर के लिए आधार हो गया। (ख) यहाँ तो बस भगवान का ही आधार है। ४. जड़। नींव। बुनियाद। ५. आधान। पात्र। ६. वृक्ष का थाँवला। थाला। आल-बाल। ७. व्याकरण में अधिकरण कारक। ८. योगशास्त्र में शरीर के अंदर के छः चक्रों में से एक जिसका स्थान गुदा का ऊपरी भाग कहा गया है। यह लाल रंग का और चार दलों वाला माना गया है। और इसके देवता गणेश कहे गये हैं। ९. ज्यामिति में वह रेखा या तल जिस पर कोई आकृति या घनपिंड ठहरा हुआ या स्थित माना जाता है। (बेस)। |
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आधार-रूपा :
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स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] गले का एक आभूषण। |
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आधार-शक्ति :
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स्त्री० [ष० त०] १. सृष्ट उत्पन्न करनेवाली मूल प्रकृति। २. माया। |
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आधार-शिला :
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स्त्री० [ष० त०] वह पहला पत्थर जो नींव में रखा जाता है और जिसके ऊपर भवन या इमारत बनता है। (फाउन्डेशन स्टोन) |
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आधार-स्तंभ :
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पुं० [ष० त०] वह जिसके ऊपर किसी का सारा ढाँचा या अस्तित्व आश्रित हो। |
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आधारक :
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पुं० [सं० आधार+कन्] १. वह जिसके ऊपर कोई ढाँचा खड़ा हो। आधार। नींव। |
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आधारण :
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पुं० [सं० आ√धृ+णिच्+ल्युट्-अन] धारण करने या अपने ऊपर लेने की क्रिया या भाव। |
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आधाराधेयभाव :
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पुं० [सं० आधार-आधेय, द्व० स० आधाराधेय-भाव, ष० त०] परस्पर उस प्रकार का भाव या संबंध, जैसा आधार और आधेय में होता है। |
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आधारिक :
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वि० [सं० आधार+ठक्-इक] १. आधार-संबंधी। २. जो किसी काम या बात के लिए आधारस्वरूप हो। (बेसिक) जैसे—आधारिक भाषा। आधारिक शिक्षा। |
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आधारिक-भाषा :
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स्त्री० [कर्म० स०] किसी भाषा का वह बहुत हलका और सब के समझने योग्य रूप जिसमें थोड़े से परम प्रचलित शब्दों से ही सब काम चलाये जाते हैं। (बेसिक लैग्वेज) विशेष—ऐसी भाषा का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि अन्य भाषा-भाषियों में सहज में उसका यथेष्ट प्रचार हो सके। |
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आधारित :
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वि० [सं० आधार+णिच्+क्त] जो किसी के आधार पर टिका या ठहरा हो। किसी को आधार बनाकर उस पर आश्रित रहनेवाला। आधृत। |
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आधारी (रिन्) :
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पुं० [सं० आधार+इनि] [स्त्री०आधारिणी] १. वह जो किसी आधार पर ठहरा या टिका हो। २. लकड़ी का वह ढाँचा जिसके सहारे साधु लोग बैठते है। टेवकी। |
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