शब्द का अर्थ
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आरो :
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पुं० [सं० आख] घोर शब्द। नाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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आरोग :
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पुं० =आरोग्य। |
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आरोगना :
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स० [सं० आरोग्य] भोजन करना। खाना। (आदरार्थक)। |
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आरोग्य :
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पुं० [सं० अरोग+ष्यञ्] अरोग होने की अवस्था या भाव। |
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आरोग्य-प्रमाणक :
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पुं० [ष० त०] किसी व्यक्ति के संबंध का वह प्रमाणपत्र जो यह सूचित करता है कि अमुख व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से बिलकुल निरोग और स्वस्थ है। (हेल्थ सर्टिफिकेट)। |
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आरोग्य-शाला :
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स्त्री० [ष० त०] दे० स्वास्थ्य-निवास। |
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आरोग्य-स्नान :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वह स्नान जो बहुत दिनों का रोगी से मुक्त और स्वस्थ होने पर पहले पहल करता है। |
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आरोग्यता :
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स्त्री० [सं० आरोग से] अरोग होने की अवस्था या भाव। |
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आरोध :
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पुं० [सं० आ√रुध्(रोकना)+घञ्] १. अच्छी तरह से खड़ी की हुई बाधा या रूकावट।२. अवरोध। घेरा। ३. ऐसी आज्ञा या उसके अनुसार होनेवाली रूकावट जिसमें कोई माल कहीं भेजा या कहीं से मँगाया न जा सके। (एम्बार्गो)। |
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आरोधना :
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स० [सं० आ+रुंधन-छेकना] १. बाधा या रुकावट खड़ी करना। २. काँटों की बाढ़ लगाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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आरोप :
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पुं० [सं० आ√रुह् (बीज उत्पन्न करना)+णिच्,पुक्+घञ्] [भू०कृ०आरोपित,वि० आपोप्य०कर्त्ता आरोपक] १. ऊपर से या कहीं से लाकर बैठाना या लगाना। जैसे—कही से कोई पेड़-पौधा लाकर उसका आरोप करना। २. साहित्य में किसी वस्तु में दूसरी वस्तु का गुण या धर्म लाकर लगाना या उसकी कल्पना करना। ३. किसी के संबंध में यह कहना कि अमुक अनुचित दंडनीय या नियम-विरुद्ध कार्य किया है। (एलिगेशन) मुहावरा—(किसी पर कोई) आरोप लगाना=(क) साधारण रूप में यह कहना कि इसने अमुक अनुचित काम किया है। (ख) विधिक क्षेत्र में, आरंभिक जाँच गवाही आदि के बाद न्यायालय का यह स्थिर करना कि अभियुक्त अमुक अपराध का कर्त्ता हो सकता है। दफा लगाना। ४. अधिकारपूर्वक किसी पर कोई कर या शुल्क नियत करना। (लेवी)। |
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आरोप-फलक :
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पुं० [ष० त०] वह फलक या लेख्य, जिसमें न्यायालय द्वारा किसी पर लगाये हुए आरोपों आदि का विवरण लिखा होता है। (चार्ज शीट)। |
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आरोपक :
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वि, [सं० आ√रुह्+णिच्,पुक्+ण्वुल्-अक] १. आरोप करनेवाला। २. अभियोग या दोष लगानेवाला। |
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आरोपण :
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पुं० [सं० आ√रुह्+णिच्+पुक्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आरोपित, वि० आरोप्य] आरोप करने की क्रिया या भाव। |
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आरोपना :
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स० [सं० आरोपण] आरोप या आरोपण करना। लगाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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आरोपित :
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भू० कृ० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+क्त] १. जिसका आरोपण हुआ हो। स्थापित किया या लगाया हुआ। २. रोपा हुआ। |
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आरोपी (पिन्) :
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वि० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+णिनि]-आरोपक। |
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आरोप्य :
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वि० [सं० आ√रुह्+णिच्,पुक्+यत्] १. आरोप किये जाने के योग्य। जिसपर आरोप करना उचित या संगत हो। २. रोपे जाने के योग्य। |
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आरोप्यमाण :
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वि० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+यक्+शानच्] जिसमें किसी वस्तु या तत्त्व का आरोप किया जाए। जैसे—दूध ही मेरा जीवन है में दूध आरोप्यमाण और ‘जीवन’ आरोप्य है। |
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आरोह :
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पुं० [सं० आ√रुह्+घञ्] १. किसी के ऊपर आरूढ़ होना या चढ़ना। सवार होना। २. नीचे से क्रमात् ऊपर की ओर जाना या बढ़ना। चढ़ाव। ३. वेदांत में, जीवात्मा की उत्तरोत्तर होनेवाली उन्नति या ऊर्ध्व गति। क्रमशः उत्तमोत्तम योनियों की होनेवाली प्राप्ति। ४. दर्शन और विज्ञान में कारण से कार्य का आविर्भाव होना या किसी पदार्थ का आरंभिक या हीन अवस्था से बढ़कर उन्नत और विकसित अवस्था में पहुँचना। जैसे—बीज से अंकुर या अंकुर से वृक्ष बनना, अथवा अल्प, चेतना वाले जीवों क्रमात् प्राणियों की सृष्टि होना। ५. संगीत में, पहले नीचे वाले स्वरों का उच्चारण करते हुए उत्तरोत्तर ऊँचे स्वरो का उच्चारण करना। जैसे—सा,रे,ग,म,प,ध,नि, अथवा रे,ग,प,नि,सा। ६. ऐसा मार्ग जो क्रमशः ऊँचा होता गया हो। चढ़ाई। (एस्सेन्ट, सभी अर्थों के लिए)। ७. फलित ज्योतिष में ग्रहण लगने का एक विशिष्ट प्रकार का भेद। ८. प्राचीन भारत में पशुओं के वे चमड़े जो ऊपर ओढ़ें जाते थे। ९. चूतड़। नितंव। |
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आरोहक :
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वि० [सं० आ√रुह्+ण्वुल्-अक] आरोहण करने या चढ़ानेवाला। |
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आरोहण :
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पुं० [सं० आ√रुह्+ल्युट्-अन] [कर्त्ता आरोहक, भू० कृ० आरोहित] १. ऊपर की ओर जाना या बढ़ना। २. किसी के ऊपर चढ़ना या सवार होना। ३. चढ़ाई का मार्ग का रास्ता। ४. सीढ़ी। |
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आरोहना :
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अ० [सं० आरोहण] ऊपर चढ़ना। आरोहण करना। उदाहरण—दरसन लागि लोग अदनि आरो हैं।—तुलसी। |
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आरोहित :
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भू० कृ० [सं० आरोह+इतच्] १. जिसने आरोहण किया हो। चढ़ा हुआ। २. ऊपर गया या ऊपर की ओर बढ़ा हुआ। |
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आरोही (हिन्) :
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पुं० [सं० आ√रुह्+णिनि] [स्त्री०आरोहिणी] १. आरोहण करने या ऊपर चढ़नेवाला। (एसेंडिग)। २. वह जो किसी के ऊपर चढ़ा हो। सवार। ३. संगीत में, स्वर-साधन का वह भेद जिसमें पहले नीचे के स्वरो का उच्चारण करते हुए क्रमशः ऊँचे स्वरों का उच्चारण किया जाता है। इसका विपर्याय अवोरही है। जैसे—सा,रे,ग,म,प,ध,नि,सा। |
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