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शब्द का अर्थ
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उपसर्ग :
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पुं० [सं० उप√सृज् (त्याग)+घञ्] १. वह अव्यय या शब्द जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषतः उत्पन्न करता है। जैसे—अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है। २. बुरा लक्षण या अपशगुन। ३. किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न। ४. वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है। (बाई प्राडक्ट) जैसे—गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उपसर्ग :
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पुं० [सं० उप√सृज् (त्याग)+घञ्] १. वह अव्यय या शब्द जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषतः उत्पन्न करता है। जैसे—अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है। २. बुरा लक्षण या अपशगुन। ३. किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न। ४. वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है। (बाई प्राडक्ट) जैसे—गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है। |
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समानार्थी शब्द-
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