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शब्द का अर्थ

ऊह  : अव्य० [अनु०] कष्ट या पीड़ा-सूचक अव्यय। ओह।पुं० [सं०√ऊह् (तर्क करना)+घञ] =ऊहा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊह  : अव्य० [अनु०] कष्ट या पीड़ा-सूचक अव्यय। ओह।पुं० [सं०√ऊह् (तर्क करना)+घञ] =ऊहा।
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ऊहन  : पुं० [सं०√ऊह्+ल्युट-अन] १. ऊह या तर्क-वितर्क करना। २. परिवर्त्तन करना। बदलना। ३. संस्कार या सुधार करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊहन  : पुं० [सं०√ऊह्+ल्युट-अन] १. ऊह या तर्क-वितर्क करना। २. परिवर्त्तन करना। बदलना। ३. संस्कार या सुधार करना।
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ऊहनीय  : वि० [सं०√ऊह्+अनीयर] (विषय) जो तर्क-वितर्क या बुद्धि के द्वारा जाना या समझा जा सके।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊहनीय  : वि० [सं०√ऊह्+अनीयर] (विषय) जो तर्क-वितर्क या बुद्धि के द्वारा जाना या समझा जा सके।
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ऊहा  : स्त्री० [सं०√ऊह्+अ-टाप्] १. अनुमान, कल्पना, तर्क-वितर्क, व्युत्पत्ति आदि द्वारा किसी बात का अर्थ या आशय जानना या समझना। २. बुद्धि। समझ। ३. तर्क। ४. किंवदंती। जन-प्रवाद।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊहा  : स्त्री० [सं०√ऊह्+अ-टाप्] १. अनुमान, कल्पना, तर्क-वितर्क, व्युत्पत्ति आदि द्वारा किसी बात का अर्थ या आशय जानना या समझना। २. बुद्धि। समझ। ३. तर्क। ४. किंवदंती। जन-प्रवाद।
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ऊहापोह  : पुं० [सं०√ऊह-अपोह, द्व० स०] किसी विषय में कुछ निश्चय न होने की दशा में मन में होनेवाला तर्क-वितर्क या सोच-विचार।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊहापोह  : पुं० [सं०√ऊह-अपोह, द्व० स०] किसी विषय में कुछ निश्चय न होने की दशा में मन में होनेवाला तर्क-वितर्क या सोच-विचार।
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ऊही (हिन्)  : वि० [सं० ऊह+इनि] ऊहा करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊही (हिन्)  : वि० [सं० ऊह+इनि] ऊहा करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊह्य  : वि० [सं०√ऊह्+ण्यत्] (बात या विषय) जिसके संबंध में ऊह (तर्क-वितर्क या सोच-विचार) हो सके। ऊहनीय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊह्य  : वि० [सं०√ऊह्+ण्यत्] (बात या विषय) जिसके संबंध में ऊह (तर्क-वितर्क या सोच-विचार) हो सके। ऊहनीय।
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