शब्द का अर्थ
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ऋक् :
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स्त्री० [सं० ऋच् (स्तुति करना)+क्विप्] १. वेद की ऋचा। २. स्तुति। पुं०=ऋग्वेद। |
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ऋक्-तंत्र :
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पुं० [ष० त०] सामवेद का परिशिष्ट भाग। |
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ऋक्-संहिता :
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स्त्री० [सं० ष० त०] ऋग्वेद के मंत्रों का वर्ग या संग्रह। |
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ऋक्थ :
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पुं० [सं०√ऋच् (स्तुति करना)+थक्] १. धन-संपत्ति। पूँजी। २. वह धन-संम्पत्ति या पूँजी जिसे कोई छोड़कर मरा हो। ३. सोना। स्वर्ण। |
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ऋक्थग्राह :
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पुं० [सं० ऋक्थ√ग्रह(ग्रहण करना)+अण्] दे० ‘ऋक्थभागी’। |
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ऋक्थभागी (गिन्) :
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पुं० [सं० ऋक्थ-भाग, ष० त०+इनि] किसी के द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति का भागीदार। उत्तराधिकारी। |
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ऋक्ष :
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पुं० [सं०√ऋष् (गति)+स] १. भालू। रीछ। २. तारा। नक्षत्र। ३. वह नक्षत्र जिसमें किसी का जन्म हुआ हो। ४. श्योनाक वृक्ष। सोनापाढ़ा। ५. सप्त ऋषि। ६. दे० ‘ऋक्षवान’ (पर्वत)। |
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ऋक्ष-नाथ :
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पुं० [ष० त०] १. तारिकाओं के राजा, चंद्रमा। २. रीछों के राजा जाबवान। |
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ऋक्ष-नेमि :
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पुं० [ष० त०] विष्णु। |
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ऋक्ष-पति :
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पुं०=ऋक्षनाथ। |
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ऋक्ष-राज :
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पुं० [ष० त०] जांबवान्। |
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ऋक्षवान् (वत्) :
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पुं० [सं० ऋक्ष्+मतुप् मव] रैवतक पर्वत का वह अश जो नर्मदा के किनारे-किनारे गुजरात तक चला गया है। |
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ऋक्षा :
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स्त्री० [सं० ऋक्ष+अच्-टाप्] उत्तर दिशा। |
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ऋक्षीक :
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वि० [सं० ऋक्ष्+ईकन] भालू की तरह मांस खानेवाला। |
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ऋक्षीका :
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स्त्री० [सं० ऋक्षीक+टाप्] एक देवी। |
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ऋक्षेश :
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पुं० [सं, ऋक्ष-ईश, ष० त०] १. चंद्रमा। २. जांबवान्। |
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