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कैंड़ा  : पुं० [सं० कांड] १. कोई काम अच्छी तरह या कौशलपूर्वक करने का उपयुक्त ढंग या प्रकार। ढब। जैसे—हर काम करने का एक कैंडा होता है। उदाहरण—वह आँतों तले से बात को निकालने का कैंड़ा जानता था।—वृन्दावनलाल वर्मा। २. किसी चीज के आकार-प्रकार या बनावट का ऐसा ढंग जिसमें उक्त प्रकार के कौशल से काम लिया गया हो। जैसे—यह लोटा तो कुछ और ही कैंड़े का है। ३. वह उपकरण जिससे किसी प्रकार का निर्माण या रचना करने से पहले उसका रूप, विस्तार आदि निश्चित या स्थिर किया जाता है। जैसे—चारि बेद कडा कियो निरंकार कियो राहु।—कबीर। ४. नापने का पात्र। पैमाना। ५. किसी दीर्घकाल व्यापी विशिष्ट कार्य या परंपरा के विचार से उसके पूर्व-कालीन और उत्तर-कालीन विभागों में से हर विभाग। जैसे—इतना अवश्य था कि पिछले कैंडे की लिखावट उतनी अजनबी नहीं थी जितनी पहले कैंडे वालों की।—रामचंद्र शुक्ल। ६. चित्र-कला में चित्रित आकृतियों, दृश्यों वस्तुओं आदि के अंगों और उपागों का तुलनात्मक पारस्परिक अनुपात।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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