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खयाल  : पुं० [ अ०] १. किसी पुरानी अथवा भूली हुई बात की स्मृति। याद। जैसे– न जाने क्यों मुझे आज कई वर्षों बाद अपने मित्र का खयाल आया है। २. मन में उपजने अथवा होनेवाली कोई नई बात। विचार। जैसे– नया खयाल। ३. आदरपूर्ण ध्यान। जैसे– वे उनका बहुत खयाल रखते हैं। ४. मन में होने वाली किसी प्रकार की धारणा या विचार। जैसे– इस बारे में आपका क्या खयाल है। मुहावरा–(किसी को) खयाल में लाना=महत्वपूर्ण समझना। जैसे– आप तो किसी को खयाल में ही नहीं लाते। ५. उदारता या कृपा की दृष्टि। जैसे– इस अनाथ बालक का भी खयाल रखिएगा। ६. किसी राग या रागिनी का वह रूप जो एक विशिष्ट प्राचीन थैली में गाया जाता है। जैसे– केदारे या देश का खयाल। विशेष–(क) यह गायन की गति के विचार से प्रायः दो प्रकार (विलंबित और द्रुत) का होता है। (ख) इस रूप या शैली का प्रचलन ई० १५ वीं शताब्दी के अंत में जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की ने ध्रुपद के अनुकरण पर और उसके विकसित रूप में किया था। (ग) उसका मुख्य विषय ईश्वर या राग रागिनी के स्वरूप का चिंतन या ध्यान होता है, और इसी लिए इसका नाम ‘खयाल’ पड़ा है। ७. लावनी गाने का एक ढंग या प्रकार। ८. एक प्रकार का लोक नाट्य जो नौटंकी से बहुत कुछ मिलता जुलता होता है। इसमें पात्र प्रायः पद्यबद्ध रचनाओं को गाते हुए वार्तालाप करते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
खयाली  : वि० [फा०] १. खयाल संबंधी। २. केवल खयाल या विचार में रहने या होनेवाला। ३.कल्पित। मुहावरा– खयाली पुलाव पकाना=केवल कल्पना के आधार पर या निराधार मनसूबे बाँधना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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