शब्द का अर्थ
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घोड़ा :
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पुं० [सं० घोटक,प्रा० घोड़ा] [स्त्री० घोड़ी] १. तेज दौड़ने वाला एक प्रसिद्ध पालतू चौपाया जिस पर लोग सवारी करते हैं तथा जो गाड़ियाँ, टाँगे, रथ आदि भी खींचता है। मुहावरा–घोड़ा उठाना=घोड़े को तेज दौड़ाना। घोड़ा उलाँगना=किसी नये घोड़े पर पहले पहल सवारी करना। घोड़ा कसना=सवारी के लिए घोड़े पर जीन या चारजामा कसना। घोड़ा खोलना= (क) घोड़े का साज या चारजामा उतारना। (ख) घोड़े को बन्धन मुक्त करना। घोड़ा छोड़ना= (क) किसी के पीछे घोड़ा दौड़ाना। (ख) दिग्विजय के लिए अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ना। (ग) घोड़े का साज या चारजामा उतारकर उसे चरने के लिए खुला छोड़ना। (किसी के पीछे) घोड़ा डालना=किसी को पकड़ने के लिए उसके पीछे तेजी से जाना। घोड़ा निकालना= (क) घोड़े के सिखलाकर सवारी के योग्य बनाना। (ख) दौड़ आदि में घोड़े को आगे बढ़ा ले जाना। घोड़े पर चढ़े आना=अपना काम पूरा कराने के लिए बहुत जल्दी मचाना। घोड़ा फेरना=घोड़े को दौड़ाने का अभ्यास कराने के लिए एक वृत्त में घुमाना। कावा देना। घोड़ा बेचकर सोना=निश्चित या बेफ्रिक होकर गहरी नींद सोना। २. बंदूक, मशीन आदि का वह खटका या पेंच जो घोड़े के मुख के आकार का होता है, और जिसे दबाने के लिए कोई विशिष्ट क्रिया होती है। ३. बच्चों के खेलने का घोड़े का आकृति का खिलौना। ४. शतरंज में घोड़े की आकृति का एक मोहरा जो २½ घर चलता है। ५. घोड़े के मुख के आकार का लकड़ी, पत्थर आदि का बना हुआ टोंटा जो भार संभारने के लिए छज्जे के नीचे दीवार में लगाया जाता है। ६. कसरत करने के लिए वह मोटा कुंदा जो चार पायों पर ठहरा होता है और जिसे लड़के दौड़कर लाँघते हैं। ७. दीवार में लगी हुई कपड़े टाँगने की खूँटी। |
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समानार्थी शब्द-
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घोड़ा-करंज :
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पुं० [सं० घृतकरंज] एक प्रकार का करंज जो चर्मरोग और बवासीर को ठीक करता है तथा विष-नाशक माना जाता है। |
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घोड़ा-गाडी :
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स्त्री० [हिं० घोड़ा+गाड़ी] वह गाड़ी जिसे घोड़ा या घोड़े खींचते हों। |
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घोड़ा-बच :
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स्त्री० [हिं० घोड़ा+बच] बच नामक वनस्पति का एक भेद जिसका रंग सफेद और गंध उग्र होती है। |
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घोड़ा-बाँस :
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पुं० [हिं० घोडा़+बाँस] एक प्रकार का बड़ा और मोटा बाँस। |
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घोड़ा-बेल :
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स्त्री० [हिं० घोड़ा+बेल] एक बेल जिसकी पत्तियाँ एक बालिश्त भर लंबे सींकों में लगती है। |
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घोड़ाचोली :
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स्त्री० [हिं० घोड़ा+चोला=शरीर] वैद्यक की एक प्रसिद्ध ओषधि जो अनेक रोगों को दूर करनेवाली मानी गई है। |
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घोड़ानस :
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स्त्री० [हिं० घोड़ा+नस] पिंडली के नीचे और एडी़ के पीछे की मोटी नस। कूँच। पै। |
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घोड़ानीम :
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स्त्री० [हिं० घोड+नीम] बकायन (वृक्ष)। |
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घोड़ापलास :
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पुं० [देश०] मालखंभ की एक कसरत जिसमें एक हाथ मालखंभ पर घुमाकर सामने रखते और दूसरे से मोंगरा पकड़ते हैं। |
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