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चंगुल  : पुं० [हिं० चौ=चार+अंगुल वा० फा० चंगाल] १. पक्षियों (जैसे कौआ, चील आदि) तथा पशुओं (जैसे–चीते, शेर आदि) का टेढ़ा पंजा जिससे वे किसी पर प्रहार करते अथवा कोई चीज पकड़ते हैं। २. हाथ की उँगलियों को हथेली की ओर कुछ झुकाने पर बननेवाली एक विशिष्ट मुद्रा जो कोई चीज पकड़ने के समय स्वभावतः बन जाती है। जैसे–एक चंगुल आटा उठा लाओ। ३. किसी व्यक्ति के प्रभाव अथवा वश में होने की वह स्थिति जिसमें से निकलना सहज न हो। मुहावरा–(किसी के) चंगुल में फँसना=पूरी तरह से किसी के अधिकार या वश में पड़ना या होना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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