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जान  : स्त्री० [फा०] १. वह प्राकृतिक गुण या तत्त्व जिसके द्वारा मनुष्य जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वनस्पतियाँ आदि जीवित रहती तथा अपने सब काम (जैसे–खाना-पीना, फलना-फूलना, अपने वर्ग का अभिवर्धन आदि) अच्छी तरह करती चलती हैं। जीवन। प्राण। पद–जान का गाहक=(क) ऐसा व्यक्ति जो किसी की जान लेने अथवा उसका अंत कर देने पर उतारू हो। (ख) बहुत दिक, तंग या परेशान करनेवाला व्यक्ति। जान का लागू=दे० जान का गाहक। जान जोखिम या जान जोखों-ऐसा काम या बात जिसमें जान जाने या मरने का डर हो। मुहावरा–(किसी में) जान आना=किसी मरती हुई या बेदम वस्तु का फिर से सक्रिय और स्वस्थ होना। (जान में) जान आना=धैर्य तथा स्थिरता होना। जान के लाले पड़ना=ऐसे संकट में फँसना कि जान बचना कठिन हो जाय। प्राण संकट में पड़ना। (किसी की) जान को रोना=ऐसे व्यक्ति को कोसना जिसके कारण बहुत दुख उठाना पड़ा हो। (किसी की) जान खाना=बार-बार दिक या परेशान करना। जान खोना=प्राण गवाँना। (किसी काम से) जान चुराना=परिश्रम का काम करने से कतराना या भागना। जी चुराना। जान छुड़ाना=झँझट या संकट से पीछा छुड़ाना या छुटकारा पाने का प्रयत्न करना। जान छूटना=झंझट या संकट से छुटकारा मिलना। जान जाना=प्राण निकलना। मरना। जान तोड़कर=बहुत अधिक परिश्रम करके। जान दूर भर होना=जीवन-यापन में बहुत अधिक कष्ट होना। जीना कठिन होना। (अपनी) जान देना=(क) प्राण-त्यागना। (ख) बहुत अधिक परिश्रम करना। (किसी पर) जान देना=(क) प्यार करना। बहुत अधिक प्रेम या स्नेह करना। (ख) जान निछावर करना। (किसी वस्तु के पीछे या लिए) जान देना=किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए बहुत अधिक व्यग्र होना। (अपनी जान को) जान न समझना=किसी बहुत बड़े काम की सिद्धि में अपने प्राणों तक को सकट में डालना। (दूसरे की जान को) जान न समझना-किसी के साथ बहुत ही निष्ठुरतापूर्ण व्यवहार करना। जान निकलना= (क) प्राण निकलना। मरना। (ख) किसी से बहुत अधिक भयभीत होना। जैसे–वहाँ जाने पर अथवा उनके सामने होने पर उसकी जान निकलती है। (किसी में) जान पड़ना=(क) मृत शरीर में प्राणों का फिर से संचार होना। (ख) फिर से प्रफुल्लित, प्रसन्न तथा स्वस्थ होना। (किसीकी) जान पर आ बनना=ऐसी स्थिति उत्पन्न होना जिससे जीवित रहना बहुत कठिन जान पड़ता हो। (अपनी) जान पर खेलना=(क) प्राणों को संकट में डालकर जोखिम काकाम करना। (ख) किसी के लिए वीरतापूर्वक जान देना। जान पर नौबत आना=जान पर आ बनना। (दे०) जान बचाना=(क) प्राण रक्षा करना। (ख) पीछा छुड़ाना। (किसी की) जान मारना या लेना=(क) वध या हत्या करना। (ख) अधिक कष्ट देना या सताना। जान सूखना=चिंता,भय आदि के कारण निर्जीव सा होना। जान से जाना=प्राण गवाना। मर जाना। जान से मारना=वध या हत्या करना। जान से हाथ धोना=जान से जाना। जान हलाकान करना=बहुत अधिक दुःखी और परेशान करना (होना)। २. शीरीरिक बल या सामर्थ्य। ३. कोई ऐसी चीज या बात जो किसी दूसरी चीज या बात को सजीव या सार्थक करती अथवा उसे यथेष्ठ प्रभावशाली तथा सबल बनाती हो। मूल तत्त्व। सार भाग। जैसे–यही पंक्ति तो इस कविता की जान है। ४. लाक्षणिक रूप में, वह चीज जिसके कारण किसी दूसरी वस्तु की महत्ता या शोभा बहुत अधिक बढ़ जाती हो। मुहावरा–(किसी चीज में) जान आना=बहुत अधिक शोभा बढ़ाना। जैसे–चित्र टाँगने से इस कमरे में जान आ गई है। वि० प्रिय। उदाहरण–जान महा सहजे रिझवार।-आनंदघन। स्त्री० [सं० ज्ञान] १. जानकारी। परिचय। परिज्ञान। पद–जान पहचान=परिचय। जान में=ध्यान या जानकारी में। २. ख्याल। समझ। वि० जाननेवाला। जानकार। पुं० १. यान। २. जानु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जान-पहचान  : स्त्री० [हिं० जानना+पहचानना] आपस में एक दूसरे को जानने तथा पहचानने की क्रिया, अवस्था या भाव (केवल व्यक्तियों के संबंध में प्रयुक्त। विशेष–दो व्यक्तियों में जान-पहचान होने के लिए यह आवश्यक है कि उनमें परस्पर परिचय हुआ हो और कई बार-बात-चीत भी हुई हो।
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जान-पहचानी  : वि० [हिं० जान-पहचान] (व्यक्ति) जिससे जान-पहचान हो। परिचित।
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जान-बख्शी  : स्त्री० [फा०] १. प्राण-दंड जिसे दिया जा सकता हो उसे कृपाकर छोड़ देने की क्रिया या भाव। २. किसी को दिया जानेवाला ऐसा आश्वासन या वचन कि तुम्हें प्राण-दंड नही दिया जायगा।
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जान-बीमा  : पुं० [फा० जान+अ० बीमा] वह संविधा या व्यवस्था जिसमें बीमा करनेवाला कुछ निश्चित समय के अनंतर बीमा करानेवाले को अथवा उसकी मृत्यु हो जाने पर उसके उत्तराधिकारी को कुछ निश्चित धन देता है। विशेष–बीमा करानेवाले को भी संविधा के अनुसार कुछ धन किस्तों के रूप में कुछ समय तक देना पड़ता है।
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जानकार  : वि० [हिं० जानना+कार (प्रत्य)] १. जाननेवाला। अभिज्ञ। २. परिचित। ३. किसी बात या विषय में कुशल या उसका अच्छा ज्ञाता।
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जानकारी  : स्त्री० [हिं० जानकार] जानकार होने की अवस्था गुण या भाव।
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जानकी  : स्त्री० [सं० जनक+अण्-ङीप्] जनक की पुत्री सीता।
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जानकी रवन  : पुं० दे० ‘जानकी रमण’।
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जानकी-जानि  : पुं० [सं० जानकी-जाया, ब० स०, नि० आदेश] श्री रामचंद्र।
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जानकी-नाथ  : पुं० [ष० त०] श्री रामचंद्र।
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जानकी-रमण  : पुं० [ष० त०] श्री रामचंद्र।
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जानदार  : वि० [फा०] १. जिसमें जान हो। सजीव। जीवधारी। २.जिसमें जीवन-शक्ति हो। प्रबल। शक्तिशाली। जैसे–जानदार पौधा। ३. बहुत ही महत्त्वपूर्ण। जैसे–जानदार बात। पुं० प्राणी।
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जाननहार  : पुं० [हिं० जानना+हार(प्रत्यय)] जाननेवाला। ज्ञाता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जानना  : सं० [सं० ज्ञान] १. किसी बात, वस्तु विषय आदि के संबंध की वस्तु स्थिति का ज्ञान होना। जैसे–(क) किसी का घर या पता जानना। (ख) अँगरेजी या हिंदी जानना। पद–जान बूझकर=अच्छी तरह समझते हुए और इच्छापूर्वक। मुहावरा–जान कर अनजान बनना=किसी बात के विषय में जानकारी रखते हुए भी किसी को चिढ़ाने, धोखा देने या मतलब निकालने के लिए अपनी अनभिज्ञता प्रकट करना। जान रखना=सचेत तथा सावधान रहना। जैसे–जान रखो, ईंट का जबाब पत्थर से मिलेगा। २. परिचय या सूचना पाना। पद–जान कर=सूचना मिलने पर। जैसे–आप के पत्र से यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप काशी पधार रहे हैं। ३. इस बात की जानकारी तथा समर्थता होना कि कोई काम कैसे किया जाता है। जैसे–वह इंजन तथा मोटर चलाना जानता है। ४. किसी क्रिया बात आदि की सत्यता पर विश्वास होना। जैसे–मैं जानता हूँ कि पिता जी ऐसे कामों से अवश्य असंतुष्ट होंगे। ५. मनोभाव के संबध में, (क) भाँप लेना। जैसे–मेरे बिना कुछ कहे ही वह मेरे आंतरिक भाव जान लेता है। (ख) अनुभूत करना। जैसे–वैष्णव जन तो तेने जो पीर पराई जाने रे।–नरसी मेहता।
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जानपद  : वि० [सं० जनपद+अण्] १. जनपद। संबंधी। जनपद का। पुं० १. जनपद। प्रदेश। २. जनपद का निवासी। जन। ३. जमीन पर लगनेवाला कर। माल-गुजारी। ४. मिताक्षरा के अनुसार लेख्य (दस्तावेज) के दो भेदों में एक जो प्रजावर्ग के पारस्परिक व्यवहार के संबंध में होता है।
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जानपदी  : स्त्री० [सं० जानपद+ङीप्] १. वृत्ति। २. महाभारत में एक अप्सरा जिसने इंद्र के कहने के अनुसार शरद्वान ऋषि की तपस्या भंग की थी।
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जानपना  : पुं० [हिं० जान+पन (प्रत्यय)](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) १. जानकार होने का भाव। २. चतुराई। बुद्धिमत्ता।
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जानपनी  : स्त्री०=जानपना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जानमनि  : पुं० [हिं० जान+सं० मणि] बहुत बड़ा ज्ञानी या विद्वान।
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जानराय  : पुं० [हिं० जान+राय] बहुत बड़ा जानकार या ज्ञानी पुरुष।
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जानवर  : पुं० [फा०] १. वह जिसमें जान या प्राण हो। प्राणी। २. मनुष्य से मिलने, चलने-फिरने, उड़ने या तैरनेवाले अन्य जीव। जैसे–समुद्र में हजारों प्रकार के जानवर होते हैं। ३. उक्त जीवों में से विशेषतः वे जीव जिनके चार पैर हों। चौपाया। पशु। जैसे–वह जानवर चराने गया है। ४. लाक्षणिक अर्थ में, कम अक्लवाला उजड्ड या गँवार आदमी। ५. पशुओं का सा आचरण या व्यवहार करनेवाला।
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जानहार  : वि० [हिं० जाना+हारा (प्रत्यय)](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. जानेवाला। २. जो हाथ से निकल जाने को हो। ३. जो नष्ट होने को हो। वि० [हिं० जानना+हार(प्रत्यय)] जाननेवाला।
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जानहु  : अव्य० [हिं० जानना] जानों। मानों।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जानाँ  : स्त्री० [फा० जान का बहु] प्रेमपात्र। प्रेयसी।
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जाना  : अ० [अ० या प्रा जा+हिं० प्र० ना] १. एक स्थान से चलकर अथवा और किसी प्रकार की गति में होकर दूसरे स्थान तक पहुँचने के लिए आगे या उसकी ओर बढ़ना। गमन या प्रस्थान करना। जैसे–(क) अपने मित्र के घर जाना। (ख) रेल पर बैठकर कलकत्ते अथवा हवाई जहाज पर बैठकर अमेरिका जाना। मुहावरा–(कहीं) जा पड़ना=अचानक कहीं पहुँचना या उपस्थित होना। २. किसी उद्देश्य की सिद्धि या कार्य की पूर्ति के लिए कहीं प्रस्थान करना। जैसे–लड़के का कहीं का खेलने या पढ़ने जाना। (ख) कर्मचारी का अधिकारी के पास जाना। (ग) सेना का युद्ध जाना। ३. यानों, आदि के संबंध में, अथवा उनसे भेजी जानेवाली चीजों के संबंध में, नियत या नियमित रूप से यात्रा आरंभ करना। जैसे–(क) यहाँ से रोज सन्ध्या को एक नाव या मोटर जाती है। (ख) हजारों रुपये के बरतन बाहर जाते हैं। ४. भौतिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं से होनेवाले कामों या बातों के संबंध में, किसी प्रकार के वाहक साधन के द्वारा प्रसारित या प्रेषित होना। जैसे–(क) अब अनेक स्थानों से हिंदी में भी तार जाने लगे हैं। (ख) अह तो रेडियो के सब जगह खबरें जाने लगी हैं। (ग) हवा चलने पर इस फूल की सुगंध बहुत दूर तक जाती है। ५. तरल पदार्थ का आधार या पात्र में से निकलना, बहना या रसना। जैसे–आँखों से पानी जाना, फोड़ा से मवाद जाना, गले या नाक से खून जाना। ६. रेखा आदि के रूप में होनेवाली कृतियों, रचनाओं आदि के संबंध में एक बिंदु या स्थान से दूसरे बिंदु या स्थान तक विस्तृत रहना या होना। जैसे–यह गली उनके मकान तक अथवा यह सड़क दिल्ली से अमृतसर तक जाती है। ७. मन, विचार आदि के संबंध में, किसी की ओर उन्मुख या प्रवृत्त होना। जैसे–किसी काम, बात या व्यक्ति की ओर ध्यान या मन जाना। मुहावरा–किसी बात पर या किसी की बात पर जाना=महत्त्वपूर्ण समझकर उसकी ओर ध्यान देना। जैसे–आप इनकी बातों पर न जाएँ, ये तो यों ही बकते रहते हैं। ८. किसी स्थान से किसी चीज का उठाने या हटाने पर वर्तमान न रहना। जैसे–मेज पर से घड़ी चोरी जाना, घर से माल या समान जाना। ९. किसी के अधिकार, कार्यक्षेत्र, वश आदि से निकलना या बाहर होना। जैसे–(क) मुकदमेबाजी में उनके दोनों मकान गये। (ख) हमारी घड़ी जायगी तो तुम्हें दाम देना पड़ेगा। मुहावरा–जाने देना=(क) अधिकार, नियम आदि शिथिल रखकर किसी की प्रस्थान आदि की अनुमति देना। जैसे–लड़कों को खेलने कूदने के लिए भी जाने दिया करो। (ख) किसी को उपेक्ष्य या तुच्छ समझकर उसकी चिंता या विचार न करना अथवा उस पर ध्यान न देना। जैसे–अब लड़ाई-झगड़े की बातें जाने दो, और काम की बातें करो। १॰. कहीं या किसी से छूटकर अलग होना या रहना। जैसे–(क) घर से बीमारी या रोग जाना। (ख) किसी की नौकरी या यजमानी जाना। ११. न रह जाना। नष्ट होना। जैसे–आँखों की ज्योति जाना। पद–गया गुजरा या गया बीता-जो बहुत नष्ट या विकृत हो चुका हो। मुहावरा–क्या जाता है=कुछ चिंता नहीं। कोई हानि नहीं है। जैसे–हमारा क्या जाता है, वह जो चाहे सो करे। १२. मरना। जैसे–(क) उसके माँ-बाप तो पहले ही जा चुके थे। (ख) जो आया है वह जायगा ही। १३. काल या समय व्यतीत होना। गुजरना। बीतना। जैसे–इस महीने में भी चार दिन जा चुके हैं। १४. बेचा जाना या बिकना। जैसे–यह मकान दस हजार रुपए से कम में नहीं जायगा। विशेष–‘जाना’ क्रिया प्रायः दूसरी क्रियाओं के साथ संयोज्य क्रिया के रूप में प्रयुक्त होकर कई प्रकार के अर्थ देता या भाव सूचित करता है। यथा–(क) मुख्य क्रिया की पूर्णता या समाप्ति। जैसे–बन जाना, मर जाना, मिट जाना हो जाना। (ख) कुछ जल्दी या सहज में, परन्तु पूरी तरह से। जैसे–खा जाना, निगल जाना, समझ जाना। (ग) कोई कठिन बड़ा या महत्वपूर्ण कार्य कौशलपूर्वक कर डालना। जैसे–(क) आप भी कभी-कभी बहुत-कुछ कह जाते हैं। (ख) वह भी बहुत कुछ कर जायँगे।
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जानि  : स्त्री० [सं० जाया] स्त्री। भार्या। वि० [सं० ज्ञानी] जानकार। उदाहरण–सेनापति देखत ही जानि सब जानि गई-सेनापति। अव्य० तुल्य। समान। उदाहरण–वाणी पाणि सुवानि जानि दधिजा हंसा रसा आसनी।–चंदवरदायी।
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जानिब  : स्त्री० [अ०] ओर। तरफ। दिशा।
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जानिबदार  : वि० [फा०] [भाव० जानिबदारी] तरफदारी या पक्षपात करनेवाला।
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जानिबदारी  : स्त्री० [फा०] विवाद आदि में, किसी का पक्ष लेने की क्रिया या भाव। तरफदारी करना।
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जानी  : वि० [फा०] १. जान या प्राणों से संबंध रखनेवाला। जैसे–जानी दुश्मन। २. जान या प्राणों के समान परम प्रिय। जैसे–जानी दोस्त या जानी मित्र। स्त्री० [फा० जान] परमप्रिय स्त्री।
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जानु  : पुं० [सं०√जन्+त्रुण्] १. टाँग के बीच का जोड़। घुटना। स्त्री० [फा० जान] परमप्रिय स्त्री। २. उक्त जोड़ तथा उसके आस-पास का स्थान। जैसे–जानु में दर्द होता है। ३. जंघा। रान।
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जानु-पाणि  : क्रि० वि० [द्व० स०] घुटनों और हाथों से। घुटनों और हाथों के बल।
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जानु-विजानु  : पुं० [सं०] तलवार चलाने का एक ढंग।
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जानुपानि  : क्रि० वि०=जानु-पाणि।
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जानुवाँ  : पुं० [सं० जानु] पशुओं विशेषतः हाथियों को होनेवाला एक रोग जिसमें उनके घुटनों में पीड़ा होती है तथा जिसमें कभी कभी घुटनों की हड्डियों उभर भी आती हैं।
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जानू  : पुं० [सं० जानु से फा० जानू] जंघा। जाँघ।
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जाने  : अव्य० [हिं० न जाने] ज्ञान या जानकारी नहीं कि। मालूम नहीं कि। उदाहरण–जाने किसकी दौलत हूँ मैं।–दिनकर। पद–न जाने=नहीं जानता हूँ कि।
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जानो  : अव्य [हिं० जानना] १. ऐसा या इस प्रकार प्रतीत या भासित होता है कि। २. इस प्रकार जान या समझ लो कि।
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जान्य  : पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि। (हरिवंश)।
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