शब्द का अर्थ
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ज्येष्ठ :
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वि० [सं० वृद्ध+इष्ठन्, ज्य० आदेश] [स्त्री० ज्येष्ठा] १. अवस्था में जो अपने वर्ग के अन्य जीवों से सब से बड़ा हो। जैसे–ज्येष्ठ पुत्र। २. अधिक अवस्थावाला। वृद्ध। बुड्ढा। ३. जो किसी से पद, मर्यादा आदि की दृष्टि से ऊँचा या बढ़कर हो। पुं० १. ग्रीष्म ऋतु का वह महीना जो बैसाख के बाद और असाढ़ से पहले पड़ता है। २. फलित ज्योतिष में वह वर्ष जिसमें बृहस्पति का उदय ज्येष्ठा नक्षत्र में हो। ३. एक प्रकार का सामगान। ४. परमात्मा। परमेश्वर। ५. जीवनी शक्ति। प्राण। |
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ज्येष्ठ-बला :
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स्त्री० [मध्य० स०] सहदेई नाम की वनस्पति। |
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ज्येष्ठ-साम(मन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का साम। आरण्यक साम। |
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ज्येष्ठक :
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पुं० [सं० ज्येष्ठ+कन्] किसी नगर का प्रधान अधिकारी। (प्राचीन भारत)। |
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ज्येष्ठता :
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स्त्री० [सं० ज्येष्ठ+तल्-टाप्] १ ज्येष्ठ होने की अवस्था या भाव। २. बड़प्पन श्रेष्ठता। |
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ज्येष्ठसामग :
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पुं० [सं० ज्येष्ठसामन्√गै (गाना)+क] आरण्यक साम पढ़नेवाला। |
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ज्येष्ठा :
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स्त्री० [सं० ज्येष्ठ+टाप्] १. २७ नक्षत्रों में से अठारहवाँ नक्षत्र जो तीन तारों से मिलकर बना और कुंडल के आकार का है। २. किसी व्यक्ति की कई पत्नियों में से वह जो उसे सब से अधिक प्रिय हो। ३. हाथ की उँगलियों में बीच की उँगली जो और सब उँगलियों में बड़ी होती है। ४. गंगा नदी। ५. पुराणानुसार अ-लक्ष्मी जो समुद्र मथने के समय लक्ष्मी से पहले निकली थी। ६. छिपकली। |
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ज्येष्ठांबु :
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पुं० [सं० ज्येष्ठ-अंबु, कर्म० स०] वह पानी जिसमें चावल धोये गये हों। चावलों की धोवन। |
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ज्येष्ठाश्रम :
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पुं० [सं० ज्येष्ठ-आश्रम, कर्म० स०] गृहस्थाश्रम जो शेष सब आश्रमों का पालक होने के कारण उनमें बड़ा माना गया है। |
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ज्येष्ठाश्रमी(मिन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] गृहस्थाश्रम में रहनेवाला व्यक्ति। गृहस्थ। |
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ज्येष्ठी :
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स्त्री० [सं० ज्येष्ठ+ङीष्] छिपकली। |
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