शब्द का अर्थ
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डंड :
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पुं० [सं० दंड] १. डडा। सोंटा० २. बाहु-दंड। बाँह। भुजा। ३. एक प्रकार का प्रसिद्ध भारतीय व्य़ायाम जो मुख्य रूप से बाँहों को पुष्ट और सबल करने के लिए जमीन पर पेट के बल झुककर बाँहों के सहारे बार-बार कुछ ऊपर उठने के रूप में होता है। क्रि० प्र०–करना।–पेलना। मुहावरा–डंड पेलना=खूब मौज से समय बिताना। जैसे–बाप इतनी दौलत छोड़ गये हैं, इसलिए बेटा दिन भर खूब दंड पेलता है। पद–डंड पेल। (देखें)। ४. अपराध आदि के लिए मिलनेवाला दंड। सजा। ५. जुरमाना। क्रि० प्र०–भोगना। ६. किसी को हानि के बदले में उसकी पूर्ति के लिए दिया जानेवाला धन या रकम। मुहावरा–(किसी पर) डंड डालना=किसी पर क्षति-पूर्ति का भार डालना। डंड भरना=किसी की किसी प्रकार की हानि होने पर उसकी पूर्ति के लिए या बदले में अपने पास से धन देना। जैसे–उनकी कलम खो जाने से हमें १०) डंड भरने पड़े हैं। ७. समय का दंड नामक बहुत छोटा मान। ८. दे० ‘दंड’। |
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समानार्थी शब्द-
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डंड-पेल :
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पुं० [हिं० डंड पेलना] १. वह जो डंड पेलता हो। डंड करनेवाला व्यक्ति अर्थात् तन्दुरुस्त और हट्टा-कट्ठा। २. वह जो खूब मौज-मस्ती करता और आनन्द लेता हो। |
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डंडक :
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पुं०=दंडक। |
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डँडका :
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पुं० [हिं० डंडा] सीढ़ी का डंडा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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डंडकारन :
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पुं०=दण्यकारण्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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डंडना :
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स० [हिं० डंड, सं० दंड] १. दंडित करना। दंड या सजा देना। २. जुरमाना लगाना। |
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डंडल :
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स्त्री० [देश०] बंगाल, बरमा आदि की नदियों में मिलनेवाली एक तरह की लंबी मछली। |
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डंडवत् :
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पुं०=दंडवत्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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डँडवारा :
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पुं० [हिं० डाँड=खेत की मेंड़+वारा (प्रत्य०)] [स्त्री० अल्पा० डँडवारी] किसी खुले स्थान को किसी ओर से घेरने के लिए उठाई जानेवाली ऊंची दीवार। क्रि० प्र०–उठाना। मुहावरा–डंडवारा खींचना=डँडवारा उठाना या खड़ा करना। पुं० [हिं० दक्खिन+वारा (प्रत्यय)] दक्षिण दिशा की वायु। दखिनैया। क्रि० प्र०–चलना। |
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डँडवारी :
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स्त्री० [हिं० डँडवारा का स्त्री०] छोटा डँडवारा। |
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डँडवी :
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पुं० [हिं० डंड=दंड] वह अधिकारी जो दंड दे अथवा जिसमें दंड देने की क्षमता हो। |
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डँडवै :
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पुं०=डँडवी। उदाहरण–-डंडवै डाँड़ दीन्ह जहँ ताई, आइ सो डंडवत कीन्ह सबाई।– जायसी। |
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डँडहरा :
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पुं० [हिं० डंडा] १. वह पतली, गोल लंबोत्तरी लकड़ी जो दरवाजों को खुलने से रोकने के लिए अंदर से लगाई जाती है। २. दरवाजों को बंद करने के लिए उसमें लगाया जानेवाला लोहे आदि का वह उपकरण जिसमें ताला आदि भी लगता है। |
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डँडहरी :
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स्त्री० [देश०] एक तरह की छोटी मछली। |
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डँड़हिया :
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पुं० [हिं० डंडा] वह डंडा जिसकी सहायता से बैलों की पीठ पर लदे दो बोरे फँसाए रहते हैं। |
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डंडा :
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पुं० [हिं० दंड] १. पेंड़ की शाखा, बाँस आदि का टुकड़ा, विशेषतः सीधा और लंबा सूखा तथा छीला और गढ़ा हुआ टुकड़ा। जैसे–गुल्ली के साथ खेलने का डंडा। विशेष–डंडे की लंबाई अपेक्षया अधिक होती है और मोटाई तथा चौड़ाई कम। मुहावरा–डंडा चलाना=डंडे से किसी पर आघात या प्रहार करना। डंडे के जोर से=डंड या बाहुबल के आधार पर। जैसे–आप तो डंडे के जोर से सब काम कराना चाहते हैं। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के गढ़कर बनाये हुए उक्त प्रकार के छोटे टुकड़ों का जोड़ा जो प्रायः खेलों में एक दूसरे पर आघात करके बजाने के काम आता है। ३. उक्त प्रकार के लकड़ी के टुकड़ों को बजाते हुए खेले जानेवाले कई प्रकार का खेल। क्रि० प्र०–खेलना। मुहावरा–डंडे बजाते फिरना=व्यर्थ या यों ही इधर-उधर घूमते रहना। कुछ काम न करके केवल घूम-घूमकर समय बिताना। ४. लकड़ी की सीढ़ी में के छोटे-छोटे खंडो मे से हर एक जिस पर पैर रख कर ऊपर चढ़ा जाता है। ५. किसी पदार्थ का अपेक्षाकृत कम चौड़ा तथा कम मोटा परन्तु अधिक लंबा टुकड़ा। जैसे–साबुन का डंडा। पुं०=डाँड (सीमा पर की छोटी दीवार या मेंड़)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०–उठाना।–खींचना। |
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डंडा-डोली :
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स्त्री० [हिं० डंडा+डोली]=डोली-डंडा (खेल) |
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डंडा-बेड़ी :
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स्त्री० [हिं०] बेड़ियाँ और उनके साथ रहनेवाला लोहे का डंडा जो विकट कैदियों को इस लिए पहनाया जाता है कि वे बैठ न सके। |
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डंडा-मुर्री :
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स्त्री० दे० ‘पेचक’ (चित्रकला की बेल)। |
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डंडाल :
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पुं० [हिं० डंडा] दुंदुभी। नगारा। |
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डँड़िया :
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स्त्री० [हिं० डाँड़ी=रेखा] १. पुरानी चाल की वह साड़ी जिसमें डाँड़ों या लंबी लकीरों के रूप में गोटा-पट्टा टंका होता था। २. गेहूँ, जौ आदि की बालों की लंबी सींक। पुं० [हिं० डाँडा-सीमा=रेखा] वह व्यक्ति जो सीमा पर रहकर कर या महसूल उगाहने का काम करता हो। |
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डँड़ियाना :
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स० [हिं० डाँड़ी] १. किसी कपड़े के दो या अधिक पाटों को सी कर जोड़ना। दो कपड़ों की लंबाई के किनारों को एक में सीना। २. साड़ी में गोटे आदि टाँककर डंडे अर्थात् लकीरे बनाना। |
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डँड़ियारा गोला :
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पुं० [हिं० डंडा+गोला] दोहरे सिरे का लंबा (तोप का) गोला। लठिया। (लश०)। |
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डंडी :
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स्त्री० [हिं० डंडा का स्त्री० अल्पा०] १, लकड़ी या धातु का गढ़ा हुआ कोई छोटा पतला, लंबा टुकड़ा जो कई प्रकार के उपकरणों में प्रायः उन्हें पकड़कर चलाने, रखने, हिलाने आदि के काम में आता है। जैसे–कलछी, छाते या पंखे की डंडी। २. धातु या लकड़ी का उक्त प्रकार का वह लंबा टुकड़ा जिसके दोनों सिरों पर तराजू के पलड़े बँधे रहते हैं। मुहावरा–डंडी मारना=तराजू की डंडी इस प्रकार चालाकी से कुछ दबाते हुए पकड़ना कि तौली जानेवाली चीज उचित मान से कुछ कम रहे। जैसे–यह बनिया डंडी मारकर लोगों को ठगता है। ३. कुछ विशिष्ट प्रकार के पौधों का वह बड़ा और लंबा डंठल जिसके सिरे पर बड़े और भारी पत्ते या फूल लगते हैं। जैसे–कमल की डंडी। ४. पेड़-पौधों में की वह छोटी पतली सींक जिसमें पत्तियाँ और छोटे फूल लगते हैं। जैसे–गुलाब या गेदें की डंडी। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के गहनों में उक्त आकार-प्रकार का लगा हुआ वह छोटा पतला टुकड़ा जिसके सहारे वे गहने शरीर के अंग पर अटकाये, खोंसे या फँसाये जाते हैं। जैसे–आरसी या सीसफूल की डंडी। ६. झंपान या डाँड़ी नाम की पहाड़ी सवारी। ७. पुरुष की लिंगेंन्द्रिय। (बाजारू) वि० [हिं० डंड=दंड] आपस में लड़ाई-झगड़ा करानेवाला। पुं०=दंडी (दंड धारण करनेवाला सन्यासी)। वि० [सं० द्वंद] चुगलखोर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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डँडीर :
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स्त्री० [हिं० डाँड़ी] सीधी लकीर। |
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डंडूरना :
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अ० [?] हवा का धूल से भर जाना। |
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डँडोरना :
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स०=ढूँढ़ना। |
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डंडौत :
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पुं०=दंडवत्।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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