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डेढ़  : वि० [सं० अध्यर्द्ध, प्रा० डिवड्ढ] मान, मात्रा, संख्या आदि की किसी एक इकाई और उसकी आधी इकाई के योग का सूचक विशेषण। जैसे–डेढ़ गज, डेढ़ दिन, डेढ़ सेर आदि। मुहावरा–डेढ ऊंट की जुदा मसजि बनाना=अक्खड़पन के कारण सब से अलग काम करना या रहना। डेढ़ चावल की खिचड़ी पकना=अपना तुच्छ या अमान्य विचार या कार्य सबसे अलग रखना या चलाना। (किसी का) डेढ़ चुल्लू लहू पीना=बहुत ही कठोर दंड देना। (क्रोध-सूचक उक्ति) पद–डेढ़ गाँठ=धागे, डोरी आदि की लगाई जानेवाली एक पूरी और उसके ऊपर एक आधी गाँठ जो आवश्यकता पड़ने पर बहुत सहज में खोली जा सकती है।
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डेढ़ खम्मन  : स्त्री० [हिं० डेड़+फा० खम] एक प्रकार की गोल रुखानी।
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डेढ़ खम्मा  : पुं० [हिं० डेढ़+फा० खम=टेढ़ा] हुक्के का एक प्रकार का नैचा जिसमें कुलफी नहीं होती।
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डेढ़-गोशी  : पुं० [हिं० डेढ़+फा०=गोशी] मध्य युग में एक प्रकार का बहुत छोटा पर मजबूत जहाज।
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डेढ़रा  : पुं० [सं० डुडुभ] मेंढ़क।
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डेढ़ा  : वि०=ड्योढ़ा। पुं=ड्योढ़ा (पहाड़ा)।
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डेढ़ी  : स्त्री० [हिं० डेढ़] वह लेन-देन या व्यवहार जिसमें उधार ली हुई वस्तु डेढ़ गुनी मात्रा में चुकानी या वापस करनी पड़ती है।
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