शब्द का अर्थ
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तापन :
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वि० [सं०√तप् (तपना)+णिच्+ल्यु–अन] १. ताप या गरमी देनेवाला। २. ताप या कष्ट देनेवाला। पुं० १. तप्त करने या तपाने की क्रिया या भाव। २. सूर्य। ३. सूर्यकांत मणि। ४. कामदेव के पाँच वर्णों में से एक जो विरही प्रेमी को ताप या कष्ट पहुँचाता है। ५. एक नरक का नाम। ६. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जो शत्रु को ताप या कष्ट पहुँचाने के लिए किया जाता है। ७. आक का पौधा। मदार। ८. ढोल। |
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समानार्थी शब्द-
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तापना :
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अ० [सं० तापन] १. अधिक सरदी लगने पर आग जलाकर उसके ताप से अपना शरीर या कोई अंग गरम करना। २. तपस्या आदि के प्रसंग में, ताप सहने के लिए आग जलाकर उसके पास या सामने बैठना। जैसे–धूनी तापना, पंचग्नि तापना। स० १. आग पर रखकर गरम करना करना या तपाना। २. जलाना। ३. बहुत बुरी तरह से व्यय करते हुए धन संपत्ति नष्ट करना। जैसे–दो-तीन बरस के अन्दर ही उन्होंने लाखों रुपए फूँक-ताप डालें। विशेष–ऐसे अवसरों पर मुख्य आशय यही है कि जिस प्रकार शीत का कष्ट दूर करने और गरमी का सुख लेने के लिए लकड़ियाँ जलाते है उसी प्रकार धन को लकड़ियों की तरह जलाकर उसकी गरमी या ताप का सुख भोगा गया है ४. दे० ‘तपाना’। |
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तापनिक :
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वि० [सं० तापन+ठक्-इक] १. तापने या तपाने से संबंध रखनेवाला। २. तापन या तपाने के रूप में होनेवाला। |
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तापनीय :
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वि० [सं० तापनीय+अण्] सोनहला। पुं० एक उपनिषद् का नाम। |
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