शब्द का अर्थ
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ताम :
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पुं० [सं०√तम् (खेद करना)+धञ्] १. दोष। विकार। २. चित्त या मन का विकार। मनोविकार। ३. कष्ट। तकलीफ। ४. क्लेश। व्यथा। ५. ग्लानि। वि० १. डरावना। भीषण। विकराल। ३. दुखी। पीड़ित। ३. परेशान। व्याकुल। पुं० [सं० तामस] १. क्रोध। रोष। २. अन्धकार। अँधेरा। अव्य० [सं० तु ?] तब। तो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० ताम्र] ताँबे की तरह का लाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तामजान(म) :
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पुं० [हिं० थामना+सं० यान=सवारी] एक तरह की खुली पालकी (सवारी) जिसे दो या चार कहार कन्धे पर लेकर चलते हैं। |
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तामड़ा :
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वि० [सं० ताम्र, हिं० ताँबा+डा (प्रत्यय)] ताँबे का रंग का। लाली लिए हुए भूरा। पुं० १. ताँबे के रंग का सा स्वच्छ आकाश। २. गंजी खोपड़ी जिसका रंग प्रायः तांबे का-सा होता है। मुहावरा–तामड़ा निकल आना=सिर के बाल झड़ जाने के कारण खोपड़ी गंजी होना। ३. उक्त रंग का एक प्रकार का मोटा देशी कागज। ४. भट्ठे में पकी हुई ईंट जिसका रंग अधिक ताप लगने के कारण कुछ-कुछ काला पड़ा गया हो। पुं० [सं० ताम्रश्म] ताँबे के रंग का एक प्रकार का रत्न। पद्मराग। मणि। |
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तामना :
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स० [देश०] खेत जोतने से पहले उसमें की घास आदि खोदकर निकालना। |
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तामर :
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पुं० [सं० ताम√रा (दान)+क] १. पानी। २. घी। |
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तामरस :
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पुं० [सं० तामर√सस् (सोना)+ड] १. कमल। २. सोना। स्वर्ण। ३. धतूरा। ४. तांबा। ५. सारस पक्षी। ६. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण, दो जगण और तब एक यगण होता है। |
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तामरसी :
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स्त्री० [सं० तामरस+ङीप्] यह तालाब जिसमें कमल खिले या खिलते हों। |
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तामलकी :
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स्त्री० [सं०] भूम्यामलकी । भू-आँवला। |
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तामलूक :
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पुं० [सं० ताम्रलिप्त] बंगाल राज्य के मेदिनीपुर जिले के आस-पास के प्रदेश का पुराना नाम। |
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तामलेट :
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पुं० [अं० टंबलर] टीन का गिलास जिसपर चमकदार रोगन या लुक लगाया गया हो। |
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तामलोट :
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पुं०=तामलेट। |
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तामंस :
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पुं०=तामस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तामस :
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वि० [सं० तमस्+अण्] १. जिसमें तमोगुण की अधिकता या प्रधानता हो। जैसे–तामस स्वभाव। पुं० १. अंधकार। अँधेरा। २. अज्ञान और उससे उत्पन्न होनेवाला मोह। ३. दुष्ट प्रकृति का मनुष्य। खल। ४. क्रोध। गुस्सा। ५. सर्प। सांप। ६. उल्लू। ७. पुराणानुसार चौथे मनु का नाम। ८. एक प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। ९. दे० ‘तामस-कीलक’। |
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तामस-कीलक :
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पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार के केतु जो राहु के पुत्र माने और संख्या में ३३ कहे हैं, इनका चन्द्रमंडल में दिखाई पड़ना शुभ और सूर्यमंडल में दिखाई पड़ना अशुभ माना जाता है। |
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तामस-मद्य :
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पुं० [कर्म० स०] कई बार की खींची हुई शराब जो बहुत तेज हो जाती है। |
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तामस-वाण :
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पुं० [कर्म० स०] एक तरह का शस्त्र। |
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तामसिक :
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वि० [सं० तमस्+ठञ्–इक] १. अंधकार। संबधी। २. तमोगुण संबंधी। |
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तामसी :
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वि० [सं०तामस+ङीष्] तमोगुण संबंधी। तामसिक। जैसे–तामसी प्रकृति। स्त्री० १. अँधेरी रात। २. महाकाली। ३. जटामासी पौधा। बालछड़। ४. पुराणानुसार माया फैलाने की एक कला या विद्या जो शिव ने मेघनाद के निकुमिला यज्ञ के प्रसन्न होकर उसे सिखाई थी। |
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तामस्स :
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पुं०=तामस। |
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तामा :
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पुं० [सं० ताम्र] ताँबा नामक धातु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तामिल :
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पुं० स्त्री०=तमिल। |
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तामिस्र :
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पुं० [सं० तमिस्रा+अण्] १. क्रोध, द्वेष, राग आदि दूषित और तामसिक मनोविकार। २. पुराणानुसार अविद्या का वह रूप जो भोग-विलास की पूर्ति में बाधा पड़ने पर उत्पन्न होता है, और जिससे मनुष्य क्रोध वैर आदि करने लगता है। |
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तामी :
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स्त्री० [हिं० ताँबा] १. ताँबे का तसला। २. एक प्रकार का बरतन जिससे मध्ययुग में द्रव पदार्थ नापे जाते थे। |
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तामीर :
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स्त्री० [अ०] [वि० तामीरी, बहु० तामीरात] १. इमारत या भवन आदि बनाने के काम० निर्माण। २. इमारत। भवन। ३. रचना। |
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तामील :
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स्त्री० [?] १. अमल में लाने अर्थात् कार्य रूप में परिणत करने की क्रिया या भाव। २. आज्ञा, निर्णय आदि का निर्वहण या पालन। |
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तामेसरी :
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स्त्री० [देश०] गेरू के मेल से बनाया हुआ एक तरह का तामड़ा रंग। |
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तामोल :
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पुं० १.=तांबूल। २.=तमोल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ताम्मुल :
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पुं० [अ० तअम्मुल] १. सोच-विचार। आगा-पीछा। संकोच। २. देर। बिलंब। |
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ताम्र :
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पुं० [सं०√तम् (आकांक्षा)+रक्, दीर्घ] १. एक प्रसिद्ध धातु। ताँबा। २. एक प्रकार का कुष्ट रोग या कोढ़। |
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ताम्र-दुग्धा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] छोटी दुद्धी। |
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ताम्र-पट्ट :
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पुं० [मध्य० स०] ताम्र-पत्र। |
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ताम्र-पत्र :
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पुं० [ष० त०] १. ताँबे का पत्तर। २. ताँबे का वह पत्तर जिस पर स्थायी रूप से रहने के लिए कोई महत्वपूर्ण बात लिखी गई हो। विशेष–प्रा० चीन काल में प्रायः ताँबे के पत्तर पर अक्षर खोदकर दान-पत्र, विजय-पत्र आदि लिखे जाते थे जो अब तक कहीं कहीं मिलते और ऐतिहासिक शोधों में सहायक होते हैं। |
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ताम्र-पर्णि :
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स्त्री० [ब० स०, ङीष्] १. छोटा पक्का तालाब। बावली। २. दक्षिण भारत की एक छोटी नदी। |
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ताम्र-पल्लव :
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पुं० [ब० स०] अशोक वृक्ष। |
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ताम्र-पादी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] लाल रंग की लज्जालु लता। हंसपदी। |
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ताम्र-पुष्प :
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पुं० [ब० स०] लाल फूल का कचनार। |
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ताम्र-पुष्पिका :
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स्त्री० [ब० स० कप्–टाप्–इत्व] निसोथ। |
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ताम्र-पुष्पी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. धव का पेड़। धातकी। २. पाढ़र का पेड़। पाटल। |
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ताम्र-फल :
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पुं० [ब० स०] अंकोल का वृक्ष। टेरा। |
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ताम्र-मूला :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] १. जवासा। धमासा। २. छूई-मुई। लज्जावंती। ३. कौंछ। केवाँच। |
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ताम्र-युग :
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पुं० [मध्य० स०] इतिहास का वह आरंभिक युग जब लोग ताँबे के औजार, पात्र आदि काम में लाया करते थे। विशेष–आधुनिक पुरातत्व के अनुसार यह युग लौह युग से पहले और पत्थर युग के बाद का है। |
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ताम्र-वर्ण :
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वि० [ब० स०] १. तामड़ा रंग का। २. लाल रंग का। रक्त वर्ण का। पुं० १. पुराणानुसार सिंहल द्वीप का पुराना नाम। २. वैद्यक में, मनुष्य के शरीर पर की चौथी त्वचा। |
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ताम्र-वर्णा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] गुड़हर का पेड़। अड़हुल। |
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ताम्र-वल्ली :
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स्त्री० [कर्म० स०] १. मजीठ। २. चित्रकूट के आस-पास होनेवाली एक प्रकार की लता। |
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ताम्र-वृक्ष :
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पुं० [कर्म० स०] १. कुलथी। २. लाल चंदन का वृक्ष। |
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ताम्र-वृंत :
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पुं० [ब० स० टाप्] कुलथी। |
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ताम्र-सार :
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पुं० [ब० स०] लाल चंदन का वृक्ष। |
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ताम्रक :
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पुं० [सं० ताम्र+कन्] ताँबा। |
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ताम्रकर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] पश्चिम के दिग्गज अंजन की पत्नी का नाम। |
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ताम्रकार :
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पुं० [सं० ताम्र√कृ (करना)+अण्] ताँबे के बरतन आदि बनानेवाला कारीगर। |
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ताम्रकूट :
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पुं० [ष० त०] तमाकू का पौधा। |
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ताम्रकृमि :
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पुं० [मध्य० स०] इन्द्रगोप या बीरबहूटी नामक कीड़ा। |
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ताम्रगर्भ :
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पुं० [ब० स०] तूतिया। |
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ताम्रचूड़ :
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पुं० [ब० स०] १. कुकरौंधा नामक पौधा। २. कुक्कुट। मुरगा। |
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ताम्रपाकी(किन्) :
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पुं० [सं० ताम्र-पाक, कर्म० स०+इनि] पाकर का पेड़। |
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ताम्रवीज :
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पुं० [ब० स०] कुलथी। |
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ताम्रशिखी(खिन्) :
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पुं० [सं० ताम्रा-शिखा, कर्म० स०+इनि] मुरगा। |
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ताम्रसारक :
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पुं० [सं० ताम्रसार+कन्] १. लाल चंदन का पेड़। २. [ब० स० कप्] लाल खैर। |
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ताम्रा :
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स्त्री० [सं० ताम्र+टाप्] १. सिंहली पीपल। २. दक्ष प्रजापति की एक कन्या जो कश्यप ऋषि को ब्याही थी और जिसके गर्भ से पाँच कन्याएँ उत्पन्न हुई थी। |
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ताम्राक्ष :
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पुं० [ताम्र-अक्षि, ब० स० षच्० समा] कोकिल। वि० लाल आँखोवाला। |
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ताम्राभ :
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पुं० [ताम्रा-आभा, ब० स०] लाल चंदन। |
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ताम्रार्द्ध :
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पुं० [ताम्र-अर्ध, ब० स०] काँसा। |
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ताम्राश्म(न्) :
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पुं० [ताम्र-अश्मन्, कर्म० स०] पद्मराग मणि। |
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ताम्रिक :
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पुं० [सं० ताम्र+ठञ्-इक] वह जो ताँबे के बरतन आदि बनाता हो। |
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ताम्रिका :
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स्त्री० [सं० ताम्रिक+टाप्] गुंजा। घुंघची। |
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ताम्रिमा(मन्) :
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स्त्री० [सं० ताम्र+इमनिच्] ताँबे का रंग। |
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ताम्री :
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स्त्री० [सं० ताम्र+अण्+ङीप्] एक तरह का ताँबे का बाजा। |
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ताम्रेश्वर :
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पुं० [ताम्र-ईश्वर, ष० त०] ताँबे की भस्म। |
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ताम्रोपजीवी(दिन्) :
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पुं० [सं० ताम्र+उप√जीव् (जीना)+णिनि] १. वह जिसकी जीविका का साधन ताँबा हो। ताँबे का रोजगारी। २. कसेरा। |
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ताम्र्लिप्त :
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पुं० [सं०] तमलूक। (दे०)। |
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