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शब्द का अर्थ
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द्वित :
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पुं० [सं०] १. एक देवता का नाम। २. एक प्राचीन ऋषि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
द्वितय :
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वि० [सं० द्वि+तयप्] १. दो अंगों या अवयवोंवाला। २. जो दो प्रकार की चीजों से मिलकर बना हो। ३. दोहरा। |
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द्वितीय :
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वि० [सं० द्वितीय] [स्त्री० द्वितीया] १. गिनती में दूसरा। २. महत्त्व, मान आदि की दृष्टि से दूसरी श्रेणी का। मध्यकोटि का। पुं० पुत्र, जो अपनी आत्मा का ही दूसरा रूप माना जाता है। |
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द्वितीय-त्रिफला :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] गंभारी। |
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द्वितीयक :
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वि० [सं० द्वितीय+कन्] १. दूसरा। २. किसी एक चीज के अनुकरण पर या अनुरूप बना हुआ वैसा ही दूसरा। (डुप्लिकेट)। |
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द्वितीया :
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स्त्री० [सं० द्वितीय+टाप्] १. चांद्रमास के प्रत्येक पक्ष की दूसरी तिथि। दूज। २. वाम-मार्गियों की परिभाषा में, खाने के लिए पकाया हुआ मांस। |
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द्वितीयाकृत :
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वि० [सं० द्वितीय+डाच्] कृतके योग में (खेत) जो दो बार जोता गया हो। |
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द्वितीयाभा :
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स्त्री० [सं० द्वितीया-आ√भा (दीप्ति)+क—टाप्] दारुहल्दी। |
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द्वितीयाश्रम :
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पुं० [सं० द्वितीय-आश्रम कर्म० स०] गार्हस्थ्य आश्रम जो ब्रह्मचर्य आश्रम के बाद पड़ता है। |
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द्वित्व :
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पुं० [सं० द्वि+त्व] १. एक साथ दो होने की अवस्था या भाव २. दोहरे होने की अवस्था या भाव। ३. व्याकरण में एक ही व्यंजन का एक साथ दो बार या दोहरा होनेवाला संयोग। जैसे—‘विपन्न’ में का ‘न्न’ और ‘सम्पत्ति’ में क ‘त्त’ द्वित्व है। ४. भाषा विज्ञान में, जोर, देने के लिए किसी शब्द का दो बार होनेवाला उच्चारण। जैसे—जल्दी जल्दी काम पूरा करो। |
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