शब्द का अर्थ
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नायँ :
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पुं०=नाम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य० नहीं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
नाय :
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पुं० [सं०√नी (ले जाना)+घञ्] १. नय। नीति। २. उपाय। युक्ति। ४. अगुआ। नेता। ४. नेतृत्व। स्त्री०=नाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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नायक :
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पुं० [सं०√णी+ण्वुल–अक] १. लोगों को अपनी आज्ञा के अनुसार चलानेवाला व्यक्ति। जैसे–सामाजिक या राजनैतिक नेता। जैसे–सेनानायक। ४. साहित्य-शास्त्र के अनुसार किसी साहित्यिक रचना का प्रधान पुरुष पात्र। धीरललित, धीरशांत, धीरोदात्त और धीरोद्धत इसके ये चार प्रमुख भेद हैं। ५. श्रृंगार रस की कविताओं या पद्यों में आलंबन विभाव। इसके पति, अनुकूल पति, दक्षिणानायक शठनायक, धृष्टनायक, उपपत्ति, वैशिक, मानी, वचन-चतुर, क्रियाचतुर, प्रेषित आदि अनेक भेद हैं। ६. बंजारा। ७. हार के मध्य की मणि या रत्न। ८. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त। ९. एक राग जो दीपक राग का पुत्र माना जाता है। १॰. संगीत-कला में निपुण व्यक्ति। ११. एक जाति जिसके पुरुष नाचने-गाने आदि की शिक्षा देते हैं और स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति भी करती हैं। |
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नायका :
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स्त्री० [सं० नायिका] १. वह वयस्क या वृद्धा स्त्री, जो युवती स्त्रियों को अपने पास रखकर उनसे गाने-बजाने का पेशा और व्याभिचार कराती हों। २. कुटनी। ३. दे० ‘नायिका’। |
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समानार्थी शब्द-
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नायकी :
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वि० [सं० नायक] नायक संबंधी। नायक या नायकों का। जैसे–नायकी कान्हड़ा। स्त्री० नायक होने की अवस्था, पद या भाव। नायकत्व। |
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समानार्थी शब्द-
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नायकी कान्हड़ा :
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पुं० [हिं० नायकी+कान्हड़ा] एक प्रकार का कान्हड़ा (राग) जिसमें सब कोमल स्वर लगते हैं। |
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नायकी मल्लार :
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पुं० [सं० नायक+मल्लार] संपूर्ण जाति का एक प्रकार का मल्लार (राग) जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। |
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नायत :
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पुं० [?] वैद्य। (डिं०) |
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नायन :
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स्त्री० [हिं० नाई का स्त्री० रूप] १. नाई जाति की स्त्री। २. नाई की पत्नी। |
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नायब :
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वि० [अ० नाइब] १. (अधिकारी) जो किसी प्रधान अधिकारी का सहायक हो। जैसे–नायब तहसीलदार। २. स्थानापन्न। ३. किसी का प्रतिनिधि बनकर काम करनेवाला। |
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नायबी :
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स्त्री० [हिं० नायब+ई (प्रत्य०)] नायब होने की अवस्था, पद या भाव। |
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नायाब :
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वि० [फा०] [भाव० नायाबी] १. जो न मिलता हो। अप्राप्य। २. जो सहज में न मिलता हो। दुष्प्राप्य। ३. बहुत बढ़िया या श्रेष्ठ। |
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नायिका :
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स्त्री० [सं० नायक+टाप्, इत्व] १. स्वामिनी। २. पत्नी। ३. साहित्य शस्त्र में, किसी नाटक की प्रधान पात्री। ४. श्रृंगार रस में पुरुष से संबंध रखनेवाली पात्री जिसके धर्म के विचार से स्वकीया, परकीया और सामान्या से तीन प्रमुख भेद। स्वभाव के अनुसार उत्तमा, मध्यमा और अधमा तथा अन्य अनेक दृष्टियों से दूसरे बहुत-से भेद माने गए हैं। ४. कहानी उपन्यास आदि की मुख्य पात्री। |
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नायिकाधिप :
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पुं० [सं० नायिका-अधिप, ष० त०] राजा। |
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