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पढ़ाना  : स० [सं० पाठन] १. हिं० ‘पढ़ना’ क्रिया का प्रे०। ऐसा काम करना जिससे कोई पढ़े। किसी को पढ़ने में प्रवृत्त करना। २. (क) वर्णमाला या लिपि के अक्षरों के उच्चारणों और रूपों का परिचय कराना। (ख) किसी भाषा के शब्दों या पदों के अर्थ, आशय आदि का ज्ञान या बोध कराना; अथवा तत्संबंधी अध्ययन, अभ्यास आदि कराना। जैसे—अरबी, फारसी, बँगला या मराठी पढ़ाना। ३. अंकित, मुद्रित या लिखित बातों का ज्ञान प्राप्त करने का आशय समझने के लिए किसी से उसका पाठ या वाचन कराना। जैसे—किसी से चिट्ठी पढ़ाना। ४. किसी को भाषा,विषय,शास्त्र आदि का ज्ञान कराने के लिए सम्यक् रूप से शिक्षा देना। जैसे—पंडित जी संस्कृत तो पढ़ाते ही हैं, साथ ही दर्शन (या साहित्य) भी पढ़ाते हैं। ५. कोई काम या बात अच्छी तरह से बतलाना,समझाना या सिखाना। अच्छी तरह से किसी के ध्यान में बैठाना। जैसे—मालूम होता है कि किसी ने तुम्हें ये सब बातें पढ़ाकर यहाँ भेजा है। ६. किसी विशिष्ट क्रिया,संस्कार आदि से संबंध रखनेवाले मंत्रों, वाक्यों आदि का विधिपूर्वक उच्चारण सम्पन्न कराना। जैसे—(क) ब्राह्मण से मंत्र पढ़ाकर दान (या संकल्प) कराना। (ख) काजी (या मुल्ला) को बुलाकर निकाह पढ़ाना। ७. मनुष्य की बोली का अनुकरण या नकल करनेवाले पक्षियों के सामने किसी पद या शब्द का इस उद्देश्य से उच्चारण करते रहना कि वे भी इसी तरह बोलना सीख जायँ। जैसे—तुम भी बुड्ढे तोते को पढ़ाने चले हो। संयो० क्रि०—देना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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