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परोक्ष  : वि० [सं० अक्षि-पर अव्य० स०, टच्] [भाव० परोक्षत्व] १. जो दृष्टिके क्षेत्र या पथ के बाहर हो और इसीलिए दिखाई न देता हो। आँखों से ओझल। २. जो सामने उपस्थिति या मौजूद न हो। अनुपस्थित। गैर-हाजिर। ३. छिपा हुआ। गुप्त। ‘प्रत्यक्ष’ का विपर्याय। ४. किसी काम या बात से अनभिज्ञ। अनजान। अपरिचित ५. जिसका किसी से प्रत्यक्ष या सीधा संबंध न हो, बल्कि किसी दूसरे के द्वारा हो। ६. जो उचित और सीधी या स्पष्ट रीति से न होकर किसी प्रकार के घुमाव-फिराव या हेर-फेर से हो। जो सरल या स्पष्ट रास्ते से न होकर किसी और या दूर रास्ते से हो। (इनडाइरेक्ट) जैसे—परोक्ष रूप से आग्रह या संकेत करना। पुं० १. आँखों के सामने न होने की अवस्था या भाव। अनुपस्थिति। २. बीता हुआ समय या भूतकाल जो इस समय सामने न हो। ‘प्रत्यक्ष’ का विपर्याय। ३. व्याकरण में पूर्ण भूतकाल। ४. वह जो तीनों कालों की बातें जानता हो; अर्थात् त्रिकालज्ञ या परम ज्ञानी। ५. ऐसी दशा, स्थान या स्थिति जो आँखों के सामने न हो, बल्कि दृष्टि-पथ के बाहर या इधर-उधर छिपी हुई हो। जैसे—परोक्ष से किसी के रोने का शब्द सुनाई पड़ा। अव्य० किसी की अनुपस्थिति या गैर हाजिरी में। पीठ-पीछे। जैसे—परोक्ष में किसी की निंदा करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परोक्ष  : वि० [सं० अक्षि-पर अव्य० स०, टच्] [भाव० परोक्षत्व] १. जो दृष्टिके क्षेत्र या पथ के बाहर हो और इसीलिए दिखाई न देता हो। आँखों से ओझल। २. जो सामने उपस्थिति या मौजूद न हो। अनुपस्थित। गैर-हाजिर। ३. छिपा हुआ। गुप्त। ‘प्रत्यक्ष’ का विपर्याय। ४. किसी काम या बात से अनभिज्ञ। अनजान। अपरिचित ५. जिसका किसी से प्रत्यक्ष या सीधा संबंध न हो, बल्कि किसी दूसरे के द्वारा हो। ६. जो उचित और सीधी या स्पष्ट रीति से न होकर किसी प्रकार के घुमाव-फिराव या हेर-फेर से हो। जो सरल या स्पष्ट रास्ते से न होकर किसी और या दूर रास्ते से हो। (इनडाइरेक्ट) जैसे—परोक्ष रूप से आग्रह या संकेत करना। पुं० १. आँखों के सामने न होने की अवस्था या भाव। अनुपस्थिति। २. बीता हुआ समय या भूतकाल जो इस समय सामने न हो। ‘प्रत्यक्ष’ का विपर्याय। ३. व्याकरण में पूर्ण भूतकाल। ४. वह जो तीनों कालों की बातें जानता हो; अर्थात् त्रिकालज्ञ या परम ज्ञानी। ५. ऐसी दशा, स्थान या स्थिति जो आँखों के सामने न हो, बल्कि दृष्टि-पथ के बाहर या इधर-उधर छिपी हुई हो। जैसे—परोक्ष से किसी के रोने का शब्द सुनाई पड़ा। अव्य० किसी की अनुपस्थिति या गैर हाजिरी में। पीठ-पीछे। जैसे—परोक्ष में किसी की निंदा करना।
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परोक्ष-कर  : पुं० [कर्म० स०] अर्थशास्त्र में, दो प्रकार के करों में से एक (प्रत्यक्ष कर से भिन्न) जो लिया तो किसी और व्यक्ति (उत्पादक, आयातक आदि) से जाता है परंतु जिसका भार दूसरों (अर्थात् उपभोक्ताओं) पर पड़ता है। (इनडाइरेक्ट टैक्स) जैसे—उत्पादनकर, आयात-निर्यात कर।
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परोक्ष-कर  : पुं० [कर्म० स०] अर्थशास्त्र में, दो प्रकार के करों में से एक (प्रत्यक्ष कर से भिन्न) जो लिया तो किसी और व्यक्ति (उत्पादक, आयातक आदि) से जाता है परंतु जिसका भार दूसरों (अर्थात् उपभोक्ताओं) पर पड़ता है। (इनडाइरेक्ट टैक्स) जैसे—उत्पादनकर, आयात-निर्यात कर।
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परोक्ष-दर्शन  : पुं० [ष० त०] विशिष्ट प्रकार की आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाओं, वस्तुओं, व्यक्तियों आदि के दृश्य या रूप दिखाई देना जो बहुत दूरी पर हों और साधारण मनुष्यों के दृश्य के बाहर हों। अतीन्द्रिय दृष्टि। (कलेरवायंस)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परोक्ष-दर्शन  : पुं० [ष० त०] विशिष्ट प्रकार की आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाओं, वस्तुओं, व्यक्तियों आदि के दृश्य या रूप दिखाई देना जो बहुत दूरी पर हों और साधारण मनुष्यों के दृश्य के बाहर हों। अतीन्द्रिय दृष्टि। (कलेरवायंस)
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परोक्ष-निर्वाचन  : पुं० [सं० त०] निर्वाचन की वह पद्धति जिसमें उच्चपदों के लिए अधिकारी या प्रतिनिधि सीधे जनता द्वारा नहीं चुने जाते हैं, बल्कि जनता के प्रतिनिधियों, निर्वाचन मंडलों आदि के द्वारा चुने जाते हैं। (इनडाइरेक्ट इलेक्शन)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परोक्ष-निर्वाचन  : पुं० [सं० त०] निर्वाचन की वह पद्धति जिसमें उच्चपदों के लिए अधिकारी या प्रतिनिधि सीधे जनता द्वारा नहीं चुने जाते हैं, बल्कि जनता के प्रतिनिधियों, निर्वाचन मंडलों आदि के द्वारा चुने जाते हैं। (इनडाइरेक्ट इलेक्शन)
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परोक्ष-श्रवण  : पुं० [ष० त०] विशिष्ट प्रकार की आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसे शब्द सुनाई देना या ऐसे कथनों का परिज्ञान होना जो बहुत दूर पर हो रहे हों और साधारण मनुष्यों के श्रवण-क्षेत्र के बाहर हों। अतींद्रिय-श्रवण। (क्लेअर ऑडिएन्स)
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परोक्ष-श्रवण  : पुं० [ष० त०] विशिष्ट प्रकार की आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसे शब्द सुनाई देना या ऐसे कथनों का परिज्ञान होना जो बहुत दूर पर हो रहे हों और साधारण मनुष्यों के श्रवण-क्षेत्र के बाहर हों। अतींद्रिय-श्रवण। (क्लेअर ऑडिएन्स)
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परोक्षत्व  : पुं० [सं० परोक्ष+त्वन्] परोक्ष या अदृश्य होने की दशा या भाव।
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