शब्द का अर्थ
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पिंडा :
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पुं० [सं० पिंड] [स्त्री० अल्पा० पिंडी] १. ठोस या गीली वस्तु का टुकड़ा। पिंड। २. गोल-मटोल टुकड़ा। लोंदा। जैसे—जौ के आटे, भात आदि का पिंडा जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी पर रखा जाता है। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—पिंडा-पानी देना=मृतक के उद्देश्य से श्राद्ध और तर्पण करना। पिंडा पारना=मृतक के उद्देश्य से पिंड-दान करना। ४. देह। शरीर। मुहा०—पिंडा धोना=स्नान करना। नहाना। पिंडा फीका होना=जी अच्छा न होना। तबियत खराब होना। ५. स्त्रियों की भग। योनि। मुहा०—(किसी को) पिंडा दिखाना या देना=स्त्री का पर-पुरुष से संभोग कराना। स्त्री० [सं० पिंड-टाप्] १. एक प्रकार की कस्तूरी। २. वंशपत्री। ३. इस्पात। ४. हलदी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिंडा :
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पुं० [सं० पिंड] [स्त्री० अल्पा० पिंडी] १. ठोस या गीली वस्तु का टुकड़ा। पिंड। २. गोल-मटोल टुकड़ा। लोंदा। जैसे—जौ के आटे, भात आदि का पिंडा जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी पर रखा जाता है। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—पिंडा-पानी देना=मृतक के उद्देश्य से श्राद्ध और तर्पण करना। पिंडा पारना=मृतक के उद्देश्य से पिंड-दान करना। ४. देह। शरीर। मुहा०—पिंडा धोना=स्नान करना। नहाना। पिंडा फीका होना=जी अच्छा न होना। तबियत खराब होना। ५. स्त्रियों की भग। योनि। मुहा०—(किसी को) पिंडा दिखाना या देना=स्त्री का पर-पुरुष से संभोग कराना। स्त्री० [सं० पिंड-टाप्] १. एक प्रकार की कस्तूरी। २. वंशपत्री। ३. इस्पात। ४. हलदी। |
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पिंडाकार :
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वि० [पिंड-आकार, ब० स०] पिंड अर्थात् प्रायः गोलाकार बँधे लोंदे के आकार का। गोलाकार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिंडाकार :
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वि० [पिंड-आकार, ब० स०] पिंड अर्थात् प्रायः गोलाकार बँधे लोंदे के आकार का। गोलाकार। |
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पिंडात :
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पुं० [सं० पिंड√अत् (गति)+अच्] शिलारस। |
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पुं० [सं० पिंड√अत् (गति)+अच्] शिलारस। |
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पिंडाभ :
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पुं० [सं० पिंड-आ√भा (दीप्ति)+क] लोबान। |
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पुं० [सं० पिंड-आ√भा (दीप्ति)+क] लोबान। |
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पिंडाभ्र :
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पुं० [सं० आम्र, अम्र+अण्,-पिंड-आम्र, उपमि० स०] सफेद और चमकीला पिंड अर्थात् ओला। |
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पुं० [सं० आम्र, अम्र+अण्,-पिंड-आम्र, उपमि० स०] सफेद और चमकीला पिंड अर्थात् ओला। |
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पिंडायस :
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पुं० [पिंड-आयस, कर्म० स०] इस्पात। |
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पुं० [पिंड-आयस, कर्म० स०] इस्पात। |
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पिंडार :
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पुं० [सं० पिंड√ऋ (गति)+अण्] १. एक प्रकार का फल। २. क्षपणक। ३. भैंस का चरवाहा। गोप। ४. विकंकत का पेड़। |
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पुं० [सं० पिंड√ऋ (गति)+अण्] १. एक प्रकार का फल। २. क्षपणक। ३. भैंस का चरवाहा। गोप। ४. विकंकत का पेड़। |
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पिंडारक :
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पुं० [सं० पिंडार+कन्] १. एक नाग का नाम। २. वसुदेव और रोहिणी का एक पुत्र। ३. एक पवित्र नद। ४. गुजरात देश में समुद्र-तट का एक प्राचीन तीर्थ। |
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पुं० [सं० पिंडार+कन्] १. एक नाग का नाम। २. वसुदेव और रोहिणी का एक पुत्र। ३. एक पवित्र नद। ४. गुजरात देश में समुद्र-तट का एक प्राचीन तीर्थ। |
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पिंडारा :
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पुं० [सं० पिंडारा] एक प्रकार का शाक जो वैद्यक में शीतल रौ पित्तनाशक माना गया है। पुं०= पिंडारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पुं० [सं० पिंडारा] एक प्रकार का शाक जो वैद्यक में शीतल रौ पित्तनाशक माना गया है। पुं०= पिंडारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पिंडारी :
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पुं० [देश०] दक्षिण भारत की एक जाति जो पहले कर्णाट, महाराष्ट्र आदि में बसकर खेती-बारी करती थी, पर पीछे मध्यप्रदेश और उसके आस-पास के स्थानों में लूटमार करने लगी और मुसलमान हो गई थी। |
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पुं० [देश०] दक्षिण भारत की एक जाति जो पहले कर्णाट, महाराष्ट्र आदि में बसकर खेती-बारी करती थी, पर पीछे मध्यप्रदेश और उसके आस-पास के स्थानों में लूटमार करने लगी और मुसलमान हो गई थी। |
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पिंडालक्तक :
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पुं० [पिंड-अलक्तक, कर्म० स०] महावर। |
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पुं० [पिंड-अलक्तक, कर्म० स०] महावर। |
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पिंडालु :
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पुं० [पिंड-आलु, उपमि० स०]=पिंडालू। |
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पुं० [पिंड-आलु, उपमि० स०]=पिंडालू। |
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पिंडालू :
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पुं० [सं० पिंड+हिं० आलू] १. एक प्रकार का कंद या शकरकन्द जिसके ऊपर कड़े सूत की तरह के रेशे होते हैं। सुथनी। पिंडिया। २. एक प्रकार का रतालू या शफतालू। |
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पिंडालू :
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पुं० [सं० पिंड+हिं० आलू] १. एक प्रकार का कंद या शकरकन्द जिसके ऊपर कड़े सूत की तरह के रेशे होते हैं। सुथनी। पिंडिया। २. एक प्रकार का रतालू या शफतालू। |
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पिंडाशक :
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पुं० [पिंड-आशक, ष० त०] भिक्षुक। |
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पुं० [पिंड-आशक, ष० त०] भिक्षुक। |
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समानार्थी शब्द-
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पिंडाशी (शिन्) :
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पुं० [सं० पिंड√अश्+णिनि]=पिंडाशक । |
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पिंडाशी (शिन्) :
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पुं० [सं० पिंड√अश्+णिनि]=पिंडाशक । |
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पिंडाह्वा :
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स्त्री० [सं० पिंड-आ√ह्वे (स्पर्द्धा करना)+क+टाप्] नाड़ी हींग। |
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पिंडाह्वा :
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स्त्री० [सं० पिंड-आ√ह्वे (स्पर्द्धा करना)+क+टाप्] नाड़ी हींग। |
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