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बंद  : पुं० [सं० बंध से फा०] १. वह चीज जो किसी दूसरी चीज को बाँधती हो। जैसे—डोरी रस्सी आदि। २. लोहे आदि की वह लम्बी पट्टी जो बड़ी-बड़ी गठरियों संदूकों आदि पर इसलिए रक्षा के विचार से बाँधी जाती है ताकि माल बाहर भेजते समय उसमें से कुछ चुराया या निकाला न जा सके। ३. किसी प्रकार की लम्बी धज्जी या पट्टी। जैसे—कपड़े या कागज का बन्द। ४. वास्तु रचना में, पत्थर की वह पटियाँ या पत्थरों की वह श्रृंखला जो दीवारों में मजबूती के लिए लगाई जाती है और जिसके ऊपर फिर दीवार उठायी जाती है। ५. पानी की बाढ़ आदि रोकने के लिए बनाया जानेवाला घुस्स। बाँध। ६. फीते की तरह सी कर बनायी हुई कपड़े की वह डोरी या फीता जिससे अँगरखे चोली आदि के पल्ले आपस में बाँधे जाते हैं। ७. कागज धातु आदि की पतली लम्बी धज्जी। पट्टी। ८. लाक्षणिक रूप में किसी प्रकार का नियंत्रण या बंधन। जैसे—बंदे के जाये बंदी में नहीं रहते। ९. उर्दू कविता में वह पद या पाँच या छः चरणों का होता है। १॰. कविता का कोई चरण या पद। ११. शरीर के अंगों का जोड़ या संधिस्थान। जैसे—बंद बंद जकड़ना या ढीला होना। १२. कोई काम कौशलपूर्वक करने का गुण, योग्यता या शक्ति। १३. तरकीब। युक्ति। उदाहरण—कस्बोहुनर के याद हैं जिनको हजार बन्द।—नजीर। वि० १. (पदार्थ या व्यक्ति) जो चारों ओर से घिरा या रुका हुआ हो। जैसे—(क) कोठरी में सब सामान बन्द है। (ख) पुलिस ने उसे थाने में बन्द कर रखा है। २. (स्थान) जो चारों ओर से खुलता या खुला हुआ न हो फलतः जो इस प्रकार घिरा हो कि उसके अन्दर कुछ या कोई आ-जा न सके। जैसे—वह मकान जो चारों तरफ से बन्द हैं, अर्था्त उसमें प्रकाश, वायु आदि के आने का यथेष्ठ मार्ग नहीं हैं। ३. (स्थान) जिसके अन्दर लोगों के अन्दर आने जाने की मनाही या रुकावट हो। जैसे—जन-साधारण के लिए किला आज-कल बन्द हो गया है। ४. (किसी प्रकार का मार्ग या रास्ता) जो अवरुद्ध हो अर्थात् जिसके आगे ढकना, ताला दरवाजा या ऐसी ही कोई और बाधक चीज या बात लगी हो जिसके कारण उसके अन्दर पहुँचना या बाहर निकलना न हो सकता हो। जैसे—नाली का मुँह बन्द हो गया है, जिससे छत पर पानी रुकता है। ५. ढकने, दरवाजे पल्ले आदि के संबंध में जो इस प्रकार भेड़ा या लगाया गया हो कि आने-जाने या निकालने रखने क रास्ता न रह जाय। जैसे—कमरा (या संदूक) बन्द कर दो। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग ढकने, दरवाजे आदि के संबंध में भी होता है और उस चीज के संबंध में भी जिसके आगे वे लगे रहते हैं। ६. शरीर के अंगों, यंत्रों आदि के संबंध में जिनकी क्रिया या व्यापार पूरी तरह से रुक गया हो अथवा रोक दिया गया हो। जैसे—(क) बुढ़ापे के कारण उनके कान बन्द हो गये हैं। (ख) घोड़े के पिछले पैर दो दिन से बन्द है अर्थात् ठीक तरह से हिल-डुल नहीं सकते। (ग) पानी की कल (या बिजली) बन्द कर दो। ७. किसी प्रकार के मुख या विवर के संबंध में जिसका अगला भाग अवरूद्ध या सम्पुटित हो। जैसे—(क) कमल रात में बन्द हो जाता है और दिन में खुलता( या खिलता) है। (ख) थोड़ी मिट्टी डालकर यह गड्ढा बन्द कर दो। ८. (कार्य करने का स्थान) जहाँ अस्थायी या स्थायी रूप से कार्य रोक दिया गया हो या स्थगित हो चुका हो। जैसे—(क) जाड़े में रात को ९ बजे सब दुकानें बन्द हो जाती है। जैसे—(ख) उनका छापाखाना (या विद्यालय) बहुत दिनों से बंद पड़ा है। ९. कोई ऐसा कार्य, गति या व्यापार जो चल न रहा हो बल्कि थम या रूक गया हो। जैसे—(क) अब थोड़ी देर में वर्षा बन्द हो जायगी। (ख) उन्होंने प्रकाशन का काम बन्द कर दिया है। १॰. (व्यक्ति) जो अक्रिय तथा उदास होकर बैठा हो। (क्व० ) जैसे—आज-सबेरे से तुम इस तरह बन्द से क्यों बैठे हो। ११. लेन-देन या हिसाब-किताब जिसके व्यवहार का अन्त हो चुका हो। जैसे—आज-कल हमारा सारा लेन-देन बन्द है। १२. (व्यक्ति) जिसके साथ समाजिक व्यवहार का अन्त हो चुका हो। जैसे— वह साल भर से बिरादरी से बन्द है। १३. कोई परिमित अवधि जिसकी समाप्ति हो गयी हो या हो चली हो। जैसे—एक दो दिन में यह महीना (या साल) बन्द हो रहा है। १४. शस्त्रों की धार आदि के संबंध में जिसमें कार्य करने की शक्ति न रह गयी हो, जो कुंठित हो गया ह। जैसे—यह चाकू (या कैंची) तो बिलकुल बन्द हैं, अर्थात् इससे काटने या कतरने का काम नहीं हो सकता। वि० शब्दों के अन्त में प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होने पर जड़ने बाँधने या लगाने वाला। जैसे—कमर-बन्द, नालबन्द, नैचा बन्द। वि०=वंद्य (वंदनीय)। पुं०=विंदु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंद-गोभी  : स्त्री० [हिं० बंद+गोभी] १. कमरकल्ला। पातगोभी का पौधा। २. उक्त पौधे का फल जिसकी तरकारी बनायी जाती है
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बंदक  : वि० १.=वंदक (वंदना करनेवाला)। २. बंधक (बाँधनेवाला)। वि० [हिं० बंद+क(प्रत्यय)] बन्द करनेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदगी  : स्त्री० [फा०] १. किसी के सामने यह मान लेना कि मैं बन्दा (सेवक) हूँ और आप मालिक (स्वामी) हैं। अधीनता और दीनता स्वीकृत करना। २. मन में उक्त प्रकार का भाव या विचार रखकर की जानेवाली ईश्वर की वंदना। ईश्वरारधन। ३. किसी को आदरपूर्वक किया जानेवाला अभिवादन। नमस्कार। सलाम। ४. आज्ञा-पालन। ५. टहल। सेवा। उदाहरण—जैसी बन्दगी वैसा इनाम।—(कहा०)
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बंदन  : पुं० [सं० बंदगी-गोरोचन] १. रोचन। रोली। २. ईंगुर सिंदूर। पुं०=वंदन।
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बंदनवान  : पुं० [सं० बंधन] कारागार का प्रधान अधिकारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदनवार  : पुं० [सं० वंदनमाला] आम, अशोक आदि की पत्तियों को किसी लम्बी रस्सी में जगह-जगह टाँकने पर बननेवाली श्रृखला जो शुभ अवसरों पर दरवाजों, दीवारों आदि पर लटकायी जाती है। तोरण।
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बंदनसाल  : स्त्री० [सं० बंधन+शाला] कारागार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदना  : स० [सं० वंदन] १. वंदना या आराधना करना। २. नमस्कार या प्रणाम करना। स्त्री०=वंदना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदनी  : स्त्री० [सं० वंदनी=माथे पर बनाया हुआ चिन्ह] स्त्रियों का एक आभूषण जो सिर पर आगे की ओर पहना जाता है। इसे बंदी या सिरबंदी भी कहते हैं। वि०=वंदनीय। जैसे—जग-बंदनी।
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बंदनीमाल  : स्त्री० [सं० बंदनमाला] वह लम्बी माला जो गले से पैरों तक लटकती हो। घुटनों तक लटकती हुई लम्बी माला।
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बंदर  : पुं० [सं० वानर] [स्त्री० बँदरिया, बँदरी] १. एक प्रसिद्ध स्तनपायी चौपाया जो अनेक वृक्षों आदि पर रहता है। कपि। मर्कट। शाखा-मृग। पद—बंदर का घाव=दे० ‘बंदर-खत’ बंदर घुड़की या बंदर भभकी=बंदरों की तरह डराते हुए दी जानेवाली ऐसी धमकी जो दिखावे भर की हो, पर जो पूरी न की जाय। २. राजा सुग्रीव की सेना का सैनिक। पुं० [फा०] बंदरगाह।
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बंदर-खत  : पुं० [हिं० बंदर+क्षत-घाव] १. बन्दर के शरीर में होनेवाला घाव जिसे प्रायः नोच-नोच कर बढ़ाता रहता है। २. ऐसा कार्य या बात जिसकी खराबी या बुराई जान-बूझकर बढ़ायी जाय। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदर-बाँट  : स्त्री० [हिं० बंदर+बाँटना] न्याय के नाम पर किया जानेवाला ऐसा स्वार्थपूर्ण बँटवारा जिसमें न्याकर्ता सब कुछ स्वयं हजम कर लेता है और विवादी पक्षों को विवाद-ग्रस्त सम्पत्ति में से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
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बंदरगाह  : पुं० [फा०] समुद्र के किनारे का वह स्थान जहाँ जहाज ठहरते हैं।
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बँदरा  : पुं० दे० ‘बनरा’। २. दे० ‘बन्दर’।
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बंदरिया  : स्त्री० [हिं० ] बंदर का स्त्री० रूप।
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बंदरी  : स्त्री० [फा० बन्दर] १. बन्दर या बन्दरगाह-संबंधी। २. बन्दरगाह में होकर आनेवाला अर्थात् विदेशी। जैसे—बंदरी तलवार। स्त्री० हिं० बन्दर (जानवर) का स्त्री। मादा बन्दर।
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बंदली  : पुं० [देश] रूहेलखंड में पैदा होनेवाला एक प्रकार का धान जिसे रायमुनिया और तिलोकचंदन भी कहते हैं।
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बंदवान  : पुं० [सं० बंदी+वान] बंदीगृह का रक्षक। कैदखाने का प्रधान अधिकारी।
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बंदसाल  : पुं० [सं० बंदी+वान] बंदीगृह। कैदखाना।
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बंदा  : पुं० [फा० बंदः] १. दास। सेवक। २. भक्त। ३. मनुष्य। विशेष—वक्ता नम्रता सूचित करने के लिए इसका प्रयोग अपने लिए भी करता है। जैसे—लीजिए बन्दा हाजिर हैं। पुं० [सं० बंदी] कैदी। बंदी।
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बंदा-नवाज  : वि० [फा० बंदा नवाज] [भाव० बंदा-नवाजी] १. आश्रितों और दीनों पर अनुग्रह या कृपा करनेवाला। दीन-दयालु। २. भक्त वत्सल।
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बंदा-परवर  : पं० [फा० बंदपर्वर] [भाव० बंदा-परवरी] बंदा नवाज।
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बंदानी  : पुं० [?] गोलंदाज। तोप चलानेवाला। (लश्करी)। पुं० [?] एक प्रकार का हलका गुलाबी रंग जो प्याजी से कुछ गहरा होता है। वि० उक्त प्रकार के रंग का।
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बंदारू  : वि० [सं० वंदारू√वन्द+आरू] आदरणीय और पूज्य। वंदनीय। पुं० बंदाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदाल  : पुं० [?] देवदाली। घघरबेल।
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बंदि  : स्त्री० [सं० वंदि] बंधन। २. कैद। स्त्री०=बंदीगृह। (कारागार)। पुं०=बंदी या वंदी (कैदी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदि कोष्ठ  : पुं० [सं० वंदीकोष्ठ] वंदीगृह (कारागार)।
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बंदि छोर  : वि०=बंदीछोर।
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बंदिया  : स्त्री०=बंदी (आभूषण)।
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बंदिश  : स्त्री० [फा०] १. बाँधने की क्रिया या भाव। २. किसी प्रकार का बन्धन या रुकावट। ३. कविता के चरणों वाक्यों आदि में होनेवाली शब्द योजना शब्द योजना। रचना-प्रबंध। जैसे—गजल या गीत की बंदिश। ४. किसी को चारों ओर से बाँध रखने के लिए की जानेवाली योजना। ५. कोई बड़ा काम छेडने अथवा किसी प्रकार की रचना आरम्भ करने से पहले किया जानेवाला आयोजन या आरम्भिक व्यवस्था ६. षड्यंत्र।
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बंदी  : पुं० [सं० चारणों की एक जाति जो प्राचीन काल में राजाओं का कीर्तिगान किया करती थी। भाट। चारण। दे० बंदी।] पुं० [सं० वन्दिन्] कैदी। बँधुआ। स्त्री० वंदनी (शिर पर पहनने का गहना)। वि० फा० बँदा (दास या सेवक) का स्त्री। स्त्री० [फा०] १. बंद करने की क्रिया या भाव। जैसे—दुकान बंदी। २. बाँधने की क्रिया या भाव। जैसे—नाकेंबंदी। ३. व्यवस्थित रूप में लाने का भाव। जैसे—दलबन्दी।
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बंदीखाना  : पुं० [फा० बंदीखानः] जेलखाना। कैदखाना।
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बंदीघर  : पुं० [सं० बंदिगृह] कैदखाना। जेलखाना।
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बंदीछोर  : वि० [फा० बंदी+हिं० छोर (ड़) ना] १. कैद से छुड़ाने वाला। २. २. संकटपूर्ण बंधन से छुड़ानेवाला।
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बंदीवान  : पुं० [सं० वंदिन्] कैदी।
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बंदूक  : स्त्री० [अ०] एक प्रसिद्ध अस्त्र जिसमें कारतूस, गोली आदि भरकर इस प्रकार छोड़ी जाती है कि लक्ष्य पर जाकर गिरती है। क्रि० प्र०—चलाना।—छोड़ना।—दागना। मुहावरा—बंदूक भरना—बंदूक में कारतूस गोली आदि रखना।
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बंदूकची  : पुं० [अं० बंदूक+फा० ची (प्रत्यय)] १. बंदूक चलाने वाला सिपही। २. बंदूक की गोली से लक्ष्य-भेदन करनेवाला व्यक्ति।
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बंदूख  : स्त्री०=बंदूक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदेरा  : पुं० [फा० बन्दः] [स्त्री० बँदेरी] १. दास। २. सेवक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदोड़  : पुं० [फा० बन्दः] गुलाम। दास। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंदोबस्त  : पुं० [फा०] १. प्रबंध। व्यवस्था। २. खेतों की हदबंदी उनकी मालगुजारी आदि निश्चित करने का काम। पज-बंदोबस्त आरिजी-कृषि संबंधी होनेवाली अस्थायी व्यवस्था बंदोबस्त-इस्तमरारी या दवामी-पक्की और सदा के लिए निश्चित कृषि-व्यवस्था। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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