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बाध  : पुं० [सं०√वाध् (रोकना)+घञ्] [वि० बाध्य, भाव० बाधता; कर्ता बाधक] १. अड़चन। बाधा। २. कठिनता। दिक्कत। मुश्किल। ३. साहित्य में किसी कथन या प्रतिपादन में आनेवाली वह असंगति या कठिनता जो उसके अर्थ, आशय या वाक्य-रचना में तर्क-संगत सम्बन्ध के अभाव के कारण स्पष्ट दिखाई देती है। जैसे—जहाँ वाच्यार्थ ग्रहण करने में अर्थ की बाधा हो वहाँ लथ्यार्थ ग्रहण करना चाहिए। ४. तर्क या न्याय में वह पक्ष जिसमें सांध्य का अभाव-सा दिखाई देता हो। ५. आज कल किसी प्रकार की उन्नति, आदि के मार्ग में किसी विशिष्ट उद्देश्य से खड़ी की जानेवाली वह रुकावट जिसे पार करने के लिए विशिष्ट कार्यक्षमता योग्यता, स्थिति आदि दिखानी पड़ती हो। जैसे—बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों में कर्मचारियों को समय समय पर कई बाध पार करने पड़ते हैं। (बार, उक्त सभी अर्थो में) ६. कष्ट। पीड़ा। पुं० [सं० बद्ध] [स्त्री० बाधी] मूँज की रस्सी जो प्रायः साधारण चारपाइयाँ बुनने के काम आती है।
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बाधक  : वि० [सं० बाध् (रोकना)+ण्वुल्,-अक] [स्त्री० बाधिका, भाव० बाधकता] १. बाधा के रूप में होनेवाला। २. बाधा अर्थात् विघ्न उत्पन्न करनेवाला। ३. किसी काम में अड़चन डालनेवाला। ४. ऐसा कष्टदायक जो कुछ हानिकारक भी हो। पुं० स्त्रियों का एक रोग जिसमें उन्हें संतति नहीं होती या संतति होने में बड़ी पीड़ा या कठिनता होती है।
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बाधकता  : स्त्री० [सं० बाधक+तल्+टाप्] १. बाधक होने की अवस्था या भाव। २. बाधा।
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बाधण  : पुं०=बढ़ना। उदा०—बाधण लागा बधाइहार।—प्रिथीराज। स०=बाधना।
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बाधन  : पुं० [सं०√बाध् (रोकना)]+ल्युट्—अन] [वि० बाधित बाधनीय, बाध्य] १. बाधा या विघ्न उत्पन्न करने या रुकावट डालने की किसी या भाव। २. कष्ट देना। पीड़ित करना। ३. किसी अनुचित या निदनीय काम में संबंध में होने वाली मनाही। ४. दे० अभिनिषेध’।
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बाधना  : [सं० बाधन] १. बाधा डालना। रुकावट या विघ्न डालना। २. कष्ट देना पीड़ित करना। स्त्री० बाधा। उदा०—नाम रूप ईश की बाधना।—निराला। स० [सं० वर्द्धन] बढ़ाना। अ०=बढ़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बाधा  : स्त्री० [सं०√ बाध्+अ+टाप्] १. वह बात या स्थिति जो किसी को आगे बढ़ने अथवा कोई काम संपादित करने से रोकती है। उन्नति या प्रगति में बाधक होनेवाली तत्त्व। (आब्स्टैकल) कि० प्र०—डालना।—देना।—पड़ना।—पहुँचना। २. कष्ट। संकट। ३. डर। भय। उदा०—कहु सठ तोहि न प्रान कै बाधा।—तुलसी। ४. भूत-प्रेत आदि के कारण होनेवाला कोई भौतिक या शारीरिक उपद्रव या कष्ट। जैसे—लोग कहते हैं कि उसे रोग नहीं है कोई बाधा है। पुं० [सं० वृद्धि] १. बढ़ती। वृद्धि। २. मुनाफा। लाभ। (पश्चिम) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बाधित  : भू० कृ० [सं०√बाध्+क्त] १. जिसके मार्ग में बाधा खड़ी की गई हो। बाधा से जिसका मार्ग अवरुद्ध हो। २. जो किसी प्रकार की बाधा से ग्रस्त। निषिद्ध ठहराया हुआ। ५. दे० ‘अभिनिष्ठ’।
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बाधियता  : पुं० [सं०√ बाध् (रोकना)+ णिच्+तृच्] वह जो दूसरों के काम या मार्ग में बाधाएँ खड़ी करता हो।
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बाधिर्य  : पुं० [सं० बधिर+ ष्यञ्]=बघिरता (बहरापन)।
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बाधी (धिन्)  : वि० [सं० बाध+इनि, दीर्घ, नलोप] बाधा देनेवाला। बाधक।
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बाध्य  : वि० [सं० बाध् (रोकना)+ण्यत्] [भाव० बाध्यता] १. जिस पर कोई बाधा या बाधक तत्त्व लगा तो या लगाया गया हो। २. जो आज्ञा, नियम, मनोवेग, परिस्थिति आदि से कुछ करने में विवश हो मजबूर।
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बाध्य-रेता (तसं)  : पुं० [सं० ब० स०] क्लीब। नपुंसक।
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