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बीस  : वि० [सं० विशर्ति, प्रा० वीशति, वीसा] १. जो संख्या में दस का दूना या उन्नीस से एक अधिक हो। पद—बीस बिस्वै=(क) इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि। अधिकतम संभावित रूप में। जैसे—बीस बिस्वे वे आज ही यहाँ आ जायँगे। (ख) भली-भाँति। अच्छी तरह। बीसहू कै=बीस बिस्वे। भली-भाँति। उदा०—मातु-पिता बंधु हित...मोको बीसहू कै ईस अनुकूल आज भो।—तुलसी। २. किसी की तुलना में अच्छा या बढ़कर। जैसे—कुश्ती में यह लड़का औरों से बीस पड़ता है। कि० प्र०—ठहरना।—पड़ना। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती हैं— २॰।
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बीसना  : स० [सं० वेशन] शतरंज या चौसर आदि खेलने के लिए बिसात बिछाना। खेल के लिए बिसात फैलाना।
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बीसरना  : अव्य०=बिसरना (भूलना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बीसवाँ  : विं० [हिं० बीस+वाँ (प्रत्य०)] [स्त्री० बीसवीं] कम, गिनती आदि में बीस के स्थान पर पड़नेवाला।
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बीसी  : स्त्री० [हिं० बीस] १. एक ही तरह की बीस चीज़ों का समूह। कोड़ी। २. गिनती का वह प्रकार जिसमें बीस बीस वस्तुओं के समूह को एक-एक इकाई मान कर गिना जाता है। ३. गणित ज्योतिष में, साठ संवत्सरों विष्णुबीसी और तीसरी रुद्रबीसी कहलाती है। ४. भूमि की एक प्रकार की नाप जो एकड़ से कुछ कम होती है। ५. उतनी भूमि जिसमें बीस नालियाँ हों। ६. वह लगान जो बीस बिस्वे अर्थात् पूरे बीघे के हिसाब से लगता हो। स्त्री० पुं० [सं० विशिख] तौलने का काँटा। तुला।
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