शब्द का अर्थ
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बेग :
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पुं० [अ० बैग] कपड़े, चमड़े, प्लस्टिक आदि लचीले पदार्थों का कोई ऐसा थैला जिसमें चीजें रखी जाती हों और जिसका मुँह ऊपर से बंद किया जा सकता हो। थैला। पुं० [तृ०] [स्त्री० बेगम] १. अमीर। धनवान्। २. नेता। सरदार। ३. मुगलों का अल्ल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)पुं०=वेग। कि० वि० वेगपूर्वक। जल्दी से। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बेगड़ी :
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पुं० [देश०] १. हीरा काटनेवाला कारीगर। हीरा तराश। २. जौहरी। ३. नगीने बनानेवाला कारीगर। हक्काक। |
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बेगती :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली। |
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बेगना :
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अ० [हिं० वेग] १. वेगपूर्वक कोई काम करना। २. जल्दी करना या मचाना। |
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बेगना :
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पुं० बैगनी (पकवान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगम :
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स्त्री० [तु० बेग का स्त्री०] [बहु० बेगमात] १. भले घर की स्त्री। महिला। २. किसी बड़े नवाब, बादशाह या सरदार की पत्नी। ३. ताश का वह पत्ता जिस पर रानी या स्त्री का चित्र बना रहता है। |
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बेगम-फूली :
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पुं० [तु० बेगम हिं० फूल+ई (प्रत्य०)] एक प्रकार का बढ़िया आम। |
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बेगम-बेलिया :
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पुं० [अ० ब्रिगनोलिया] एक प्रकार की लता जिसमें कई रंगों के फूल लगते हैं। |
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बेगमा :
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स्त्री० ‘हिं० ‘बेगम’ का सम्बोधन कारक में रूप। |
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बेगमी :
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वि० [तु० बेगम+ई (प्रत्य०)] १. बेगम-संबंधी। बेगम का। २० बेगमों के लिए उपयुक्त अर्थात् उत्तम। बहुत बढ़िया। वि० [फा० बे+अ० गमी] निश्चितता। बेफिकी। पुं० १. एक प्रकार का बढ़िया कपूरी पान। २. एक प्रकार का बढ़िया चावल। ३. एक प्रकार का पनीर जिसमें नमक कम होता है। |
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बेगर :
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अव्य०=बगैर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगरज :
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वि० [फा० बे+अ० ग़रज] [भाव० बेगरजी] जिसे कोई गरज या परवा न हो। कि० वि० बिना किसी गरज। प्रयोजन या मतलब के। निःस्वार्थ रूप से। |
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बेगरजी :
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स्त्री० [फा० बे+अ० ग़रज+ई (प्रत्य)] बेरगज होने की अवस्था या भाव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)वि०=बेगरज। जैसे—बेगरजी नौकर, बेगरजी सैंया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगरा :
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वि० [?] १. अलग। २. दूर का। अव्य० दूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगल :
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अव्य०=बैगर। |
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बेगला :
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वि०, अव्य०=बेगरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगवती :
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स्त्री, [सं० वेग+मतुप्, म=व, ङीष्] एक प्रकार का वर्णा-र्द्धवृत्त जिसके विषमपादों में ३ सगण, १ गुरु और समपादों में ३ भगड़ और २ गुरु होते हैं। |
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बेगसर :
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पुं० [सं० वेद√सृ (जाना)+अच्]। खच्चर। (डिं०) |
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बेगा :
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पु० [?] आत्मीय। ‘पराया’ का विपर्याय। उदा०—वेगा० कै मुदई मिलत।—घाघ। |
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बेगानगी :
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स्त्री० [फा०] १. बेगाना होने की अवस्था या परायापन। २. अपरिचय। |
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बेगाना :
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वि० [फा० बेगाना] १. जो अपना न हो। ग़ैर। पराया। २. जिससे आत्मीयता पूर्ण जान-पहचान, परिचय या सम्बन्ध न हो। ३. जो किसी काम या बात से अनजान या अपरिचित हो। ना-बाकिफ। |
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बेगार :
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स्त्री० [फा०] १. वह काम जो किसी से जबरदस्ती और बिना कुछ अथवा उचित पारिश्रमिक दिये कराया जाय। २. उक्त के आधार पर बिना किसी पारिश्रमिक या पुरस्कार की संभावना के चलता किया जानेवाला काम। मुहा०—बेगार टालना=बिना चित्त लगाये कोई काम यों ही चलता करना। पीछा छुड़ाने के लिए कोई काम जैसे—तैसे पूरा करना। ३. ऐसा व्यर्थ और झगड़े का काम जिसका कोई अच्छा फल न हो। उदा०—नाहि तो भव बेगारि महँ परिहौ छूटत अति कठिनाई रे।—तुलसी। |
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बेगारी :
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पुं० [फा०] १. वह मजदूर जिसमें बिना मजदूरी दिये जबरदस्ती का लिया जा। बेगार में काम करनेवाला आदमी। कि० प्र०—पकड़ना। २. मन लगाकर काम न करनेवाला। काम चलता करनेवाला। स्त्री०=बेगार। |
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बेगि :
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वि० [सं० वेग] १. जल्दी से। शीघ्रतापूर्वक। २. चटपट। तुरंत। |
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बेगुन :
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पुं०=बैंगन। वि०=विगुण (गुण रहित)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेगुनाह :
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वि० [फा०] [भाव० बेगुनाही] १. जिसने कोई गुनाह न किया हो। जिसने कोई पाप न किया हो। निष्पाप। २. जिसने कोई अपराध न किया। निरपराध। |
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बेगुनी :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार की सुराही। वि०=विगुण (गुण रहित)। |
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बेगैरत :
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वि० [फा० बे०+अ० गैरत] [भाव० बेगैरती] निर्लज्ज। |
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