शब्द का अर्थ
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बेर :
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पुं० [सं० बदरी] १. एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके कांड रेखा युक्त और विदीर्ण होते हैं, पत्र गोल, काँटेदार तथा वक्र, फल हरे तथा पकने पर पीले होते हैं। २. उक्त के फल जिनमें लम्बोतरी या गोल गुठली भी होती है। स्त्री० [सं० बेला, हि० वार] १. बार। दफा। २. देर। विलंब। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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बेर-जरी :
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स्त्री० [हिं० बेर+झड़ी ?] झड़बेरी। जंगली बेर। |
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बेर-हड्डी :
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स्त्री० [बेर ?+ हि० हड्डी] घुटने के नीचे की हड्डी में का उभार। |
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बेरंग :
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वि० [फा०] निर्लज्ज। वि० [अ० बियरिंग] (डाक द्वारा भेजा हुआ वह पत्र) जिस पर टिकट लगा ही न हो अथवा कम मूल्य का लगा हुआ हो। |
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बेरजा :
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पुं०=बिरोजा। |
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बेरवा :
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पुं० [देश०] कलाई पर पहनने का एक प्रकार का कड़ा। पुं०=ब्योरा (विवरण)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरस :
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वि० [फा० बे+हिं० रस] १. जिसमें रस का अभाव हो। नीरस। रस-हीन। फीका २. जिसमें कुछ स्वाद न हो। ३. जिसमें कोई आनन्द या मजा न हो। |
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बेरहमी :
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स्त्री० [फा़] बेरहम होने की अवस्था या भाव। निर्दयता। निष्ठुरता। |
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बेरा :
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पुं० [सं० वेला] १. समय। वक्त। बेला। २. प्रभाव का समय तड़का। पुं० [हिं० मेझरा ?] एक में मिला हुआ जौ और चना। बेरी। पुं०=बेड़ा। पुं० [अ० बेअरर= वाहक] चपरासी, विशेषत |
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बेरादरी :
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स्त्री०=बिरादरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेराम :
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वि० [हिं० बे+आराम] बीमार। रोगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरामी :
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स्त्री० [हिं० वे+आरामी] बीमारी। रोग। |
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बेरास :
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पुं०=विलास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरिआ :
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स्त्री० [सं० वेला=समय] बेला। समय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरियाँ :
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स्त्री० [हिं० वेर] समय। वक्त। काल। बेला। |
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बेरी :
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स्त्री० [हिं० वेर (फल) १. हिमालय में होनेवाली एक प्रकार की लता। इसे ‘भुरकूल’ भी कहते हैं। २. बेर का छोटा वृक्ष। स्त्री० [?] एक में मिली हुई तीसी और सरसो। स्त्री० [हिं० बार=दफा] १. उतना अनाज जितना एक बार चक्की में पीसने के लिए डाला जाता है। २. बेर। दफा। स्त्री० १.=बेड़ी (पैरों की)। २. बेड़ी (नाव)। उदा०—नाव फाटी प्रभु पाल बाँधों बूड़त है बेरी।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरी-छत :
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पुं० [देश०] एक पद जो महावत लोग हाथी को किसी काम से मना करने के लिए कहते है। |
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बेरी-बेरी :
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पुं० [सिंह, बेरी=दुर्बलता] एक प्रकार का भीषण संक्रामक ज्वर। विशेष दे० ‘वातवलासक’। |
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बेरुआ :
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पुं० [देश०] बाँस का वह टुकड़ा जो नाव खींचने की गुन में आगे की ओर बँधा रहता है और जिसे कंधे पर रखकर मुल्लाह नाव खींचते हुए चलते हैं। |
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बेरुई :
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स्त्री० [हिं० बेड़िन] वेश्या। रंडी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेरुकी :
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स्त्री० [देश०] बैलों का एक रोग जिसमें उनकी जीभ पर काले छाले हो जाते हैं। |
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बेरुख :
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वि० [फा० बेरुख] [भाव० बेरुखी] १. जो समय पड़ने पर (मुँह) फेर ले। बेमुरव्वत। २. अप्रसन्न। नाराज। कि० प्र०—पड़ना। होना। |
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बेरोक :
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वि० [फा० बे+हि० रोक] जिस पर रोक न लगी हुई हो। अव्य० बिना रोक के। स्वच्छंद रूप में। |
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बेर्रा :
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पुं० [देश०] १. मिले हुए जौ और चले का आटा। २. कोई का फल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बेर्रा-बरार :
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पुं० [हिं० बेर्रा=जौ और चना+फा० बरार=लादा हुआ] अन्न की उगाही। |
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