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रू  : पुं० [फा०] १. चेहरा। मुँह। पद—रू-रिआयत= (क) पक्षपात। (ख) शील-संकोच। मुरौवत। मुहावरा—रू से=अनुसार। जैसे—कानून या मजहब की रू से ऐसा नहीं होना चाहिए। २. आगे ऊपर या सामने का भाग। पद—रू-पुश्त=बाहर-भीतर, आगे-पीछे या दोनों ओर। ३. कारण। वजह। ४. आशा। उम्मीद।
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रू-बरू  : अव्य० [फा०] १. आमने-सामने। मुकाबले। सम्मुता में। समक्ष।
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रू-रिआयत  : स्त्री० [फा०+अ०] किसी का ध्यान रखते हुए उसे दिया जानेवाला सुभीता या उसके साथ की जानेवाली रिआयत।
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रूआ  : स्त्री० [हिं० रूसा] एक प्रकार की बहुत सुगंधित घास।
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रूई  : स्त्री० [सं० रोम, प्रा० रोवां=हिं० रोवां० रोईं] १. कपास के ढोंढ़ी या कोश के अन्दर का धूआ। तूल। क्रि० प्र०—तूमना।—धुनकना।—धुनना। पद—रूई का गाला= (क रूई के गाले की तरह कोमल या सफेद। (ख) सुंदर तथा सुकुमार। मुहावरा—रूई की तरह तूम डालना= (क) अच्छी या पूरी तरह से छिन्न-भिन्न या दुर्दशाग्रस्त करना। (ख) बहुत अधिक मारना-पीटना। (ग) गहरी छान-बीन करना। रूई की तरह धुनना=अच्छी तरह मारना पीटना। (अपनी) रूई सूत में उलझना या लिपटना=अपने काम में लगना। अपने काम-काज में फँसना। २. बीजों आदि के ऊपर का रोआँ। जैसे—सेमल की रूई।
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रूईदार  : वि० [हिं० रूई+फा० दार (प्रत्यय)] (सिला हुआ वस्त्र)। जिसमें रूई भरी गई हो। जैसे—रूईदार अंगा, रूईदार बंडी।
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रूक  : पुं० [सं० वृक्ष, प्रा० रुक्ख] एक प्रकार का पेड़ जिसकी पत्तियाँ ओषधि के काम आती हैं। पुं० [सं० रूक] रूँगा हुआ। घलुआ। स्त्री० [सं० रूक्षा] तलवार (डिं०)।
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रूका  : पुं० [?] पुकारने की क्रिया या भाव। पुकार। क्रि० प्र०—पड़ना।
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रूक्ष  : वि० [सं०√रूक्ष् (कठोर)+अच्] [स्त्री० रूक्षा] १. पदार्थ जो चिकना या कोमल न हो रूखा स्निग्ध का उलटा। २. कड़ा तथा खुरदुरा। ३. (व्यक्ति) जिसके स्वभाव में, उदारता, कोमलता, सौजन्य स्नेह आदि बातें न हों।
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रूँख  : पुं० =रूख (वृक्ष)।
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रूख  : पुं० [सं० वृक्ष, प्रा० रूक्खा] १. पेड़। वृक्ष। २. नरकट। नरसल। वि० =रूखा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूँखड़  : पुं० [हिं० रूखा] ‘अलख’ कह कर भिक्षा माँगनेवाले एक प्रकार के साधु। विशेष—ये साधु कमर में एक बड़ा-सा घुँघरू बाँधे रहते हैं। पुं० =रोंगटा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूखड़ा  : पुं० [हिं० रूख] [स्त्री० अल्पा० रूखड़ी] पेड़। वृक्ष। वि० =रूखा।
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रूखरा  : पुं० =रूखड़ा (वृक्ष)। वि० =रूखा।
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रूखा  : वि० [सं० रूक्ष्, प्रा० रूख] १. जिसमें चिकनाहट या स्निग्धता का अभाव हो। अस्निग्ध। ‘चिकना’ का विपर्याय। २. जिसमें घी, तेल आदि चिकने पदार्थ न पड़े या न लगे हों। जैसे—रूखी रोटी। ३. (भोजन) जिसके साथ कोई स्वादिष्ट पदार्थ न हो अथवा जिसे स्वादिष्ट बनाने का प्रयत्न न किया गया हो। जैसे—रूखी-सूखी खाकर दिन बिताना। पद—रूखा-सूखा रूखी, सूखी। (दे०) ४. जिसमें आर्द्रता या रस न हो। शुष्क नीरस। ५. (व्यक्ति या स्वभाव।) जिसमें कोमलता, दयालुता, स्नेह आदि मधुर वृत्तियों का अभाव हो। ६. (कथन या व्यवहार) जिमसें आत्मीयता, उदारता, सौजन्य आदि का अभाव हो। जैसे—रूखी बातें या रूखा व्यवहार। मुहावरा—रूखा पड़ना या होना= (क) बेमुरौवती करना। (ख) क्रुद्ध या नाराज होना। ७. उदासीनता। विरक्त। ८. जिसका तल सम न हो। खुरदुरा। जैसे—यह कागज कुछ रूखा दिखाई पडता है। पद—रूखा माल=नक्काशी किया हुआ बरतन। (कसेरे)। पुं० एक प्रकार की छेनी।
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रूखा-सूखा  : वि० [हिं०] [स्त्री० रूखी-सूखी] (रोटी या भोजन) बिना घी तथा मसाले का बना हुआ।
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रूखापन  : पुं० [हिं० रूखा+पन (प्रत्यय)] १. रूखे होने की अवस्था, गुण या भाव। रूखाई। २. खुश्की। ३. व्यवहार आदि की कठोरता या हृदयहीनता।
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रूँगटा  : पुं० =रोंगटा।
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रूँगटाली  : स्त्री० [हिं० रूँगटा+वाली=आली] भेड़। गाउर।
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रूँगा  : पुं० [सं० रुक=उदारता] खरीददार को संतुष्ट रखने के लिए उसे सौदे से अधिक या अतिरिक्त दी जानेवाली चीज। उदाहरण—जो आप अपने सौजन्य के साथ रूँगे में दे रहे हैं।—अज्ञेय।
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रूचना  : अ० स०=रुचना।
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रूछ  : वि० =रूक्ष (रूखा)।
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रूज  : पुं० [अ] एक प्रकार की बुकनी जिससे सोने-चाँदी पर कलई करते हैं।
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रूझना  : अ०=अरूझना (उलझना)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूठ  : स्त्री० [सं० रूष्ठि, प्रा० रुट्ठि] १. रूठने की क्रिया या भाव। २. क्रोध। गुस्सा।
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रूठन  : स्त्री०=रुठ।
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रूठना  : अ० [सं० रुष्ट, प्रा० रूट्ठ+ना (प्रत्यय)] १. किसी के विरुद्ध आचरण करने के कारण किसी से अप्रसन्न होना। जैसे—पैसा न मिलने के कारण बच्चे का रूठना। २. किसी के अनुचित या अप्रत्याशित व्यवहार से इतना दुःखी होना कि उसके बुलाने तथा मनाने पर भी जल्दी न बोलना तथा न मानना।
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रूड़ा  : वि० =रूरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूढ़  : वि० [सं०√रूह् (उद्भव)+क्त] [स्त्री० रूढ़ा] १. किसी के ऊपर चढ़ा हुआ। आरूढ़। २. उत्पन्न। जात। ३. ख्यात। प्रसिद्ध। मशहूर। ४. लोक में चलता हुआ। प्रचलित। जैसे—इस शब्द का रूढ़ अर्थ तो यही है। ५. उजड्ड। गँवार। ६. कठोर। कड़ा। ७. अविभाज्य (गणित की संख्या) ८. व्याकरण तथा भाषा-विज्ञान में वह शब्द जो यौगिक से भिन्न किसी और अर्थ में प्रयुक्त होता हो।
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रूढ़-यौवना  : स्त्री०=आरूढ़ यौवना (नायिका)।
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रूढा  : स्त्री० [सं० रूढ़+टाप्]=रूढ़ि-लक्षण।
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रूढि  : स्त्री० [सं०√रुह्+क्तिन्] १. चढ़ाई। चढ़ाव। २. बढती। वृद्धि। ३. उठान या उभार। ४. आविर्भाव या उत्पत्ति। ५. ख्याति। प्रसिद्धि। ६. परंपरा से चली आई हुई कोई ऐसी चाल या प्रथा जिसे साधारणतः सब लोग मानते हों अथवा जिसका पालन लोक में होता हो (कन्वेन्शन)। ७. मन में की हुई धारणा निश्चय या विचार। ८. वह शब्द शक्ति जिससे शब्द अपने रूढ़ अर्थ का ज्ञान कराता है।
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रूढि-लक्षणा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में, लक्षणा के दो प्रमुख भेदों में से एक जिसमें मुख्य अर्थ के बाधित होने पर अर्थ-संबंधी कोई दूसरा लक्ष्यार्थ निकलता या लिया जाता है। (दूसरा प्रमुख भेद प्रयोजनवती लक्षणा है)।
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रूतना  : अ० [सं० रत] किसी काम में रत होना। लगना। उदाहरण—णाणा रण रूता नर नेही करै।—कबीर।
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रूँदना  : स० १. =रौंदना। २. =रूँधना।
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रूदाद  : स्त्री० [फा० रूएदाद] १. समाचार। वृत्तांत। हाल। २. अवस्था। दशा। हालत। ३. कैफियत। विवरण। ४. प्रबंध। व्यवस्था। ५. अदालत में किसी मुकदमें के संबंध में होनेवाली कार्यवाही। ६. किसी काम या बात का वह रंग-ढंग जिससे उनके भविष्य का अनुमान हो सकता है।
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रूँध  : स्त्री० [हिं० रूंधना] रूँधने या रूँधे हुए होने की अवस्था, क्रिया या भाव। वि० रुद्ध (रूका हुआ)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूँधना  : स० [सं० रुधना] १. मार्ग आदि रोक या बंद कर देना। रास्ते में रुकावट खड़ी करना या विघ्न डालना। २. खेत आदि को काँटेदार झाड़ों या तारों से घेरना। ३. घेरना।
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रूनुमा  : वि० [फा०] [भाव० रूनुमाई] मुँह दिखानेवाला।
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रूनुमाई  : स्त्री० [फा०] मुँह-दिखाई।
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रूप  : पुं० [सं०√रूप् (बनाना, देखना आदि)+अच्] १. किसी पदार्थ का वह ब्राह्य गुण या विशेषता (आयतन वर्ण आदि से भिन्न) जिससे उसकी बनावट का पता चलता है। पिंड, शरीर आदि की बनावट का प्रकार और स्थिति सूचित करनेवाला तत्त्व। आकृति। शकल। सूरत। पद—रूप रेखा (देखें)। २. देह। शरीर। किसी विशिष्ट प्रकार की आकृति, वेश-भूषा आदि से युक्त शरीर। जैसे—बहुरूपिया नित्य नित्य नए नए रूप धारण करता है। मुहावरा—रूप भरना= (क) भेस बनाना। वेश धारण करना। (ख) किसी तरह का तमाशा, मजाक या स्वांग खड़ा करना। ३. किसी तत्त्व, बात या वस्तु की वह स्थिति जिसके फलस्वरूप वह किसी पृथक् तथा स्वतंत्र गुण या विशेषता से युक्त होकर कुछ अलग या नए प्रकार का काम करता या परिणाम दिखलाता है। प्रकार। भेद। जैसे—(क) प्राचीन भारत में शासन के कई रूप प्रचलित थे। (ख) उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर किसी शब्द के अनेक रूप बनाये जा सकते हैं। (ग) इस योजना को अब एक नया रूप देने का प्रयत्न किया जा रहा है। ४. कोई कार्य करने की नियत और व्यवस्थित पद्धति या प्रणाली। जैसे—(क) उनके कुल में विवाह सदा इसी रूप में होता चला आया है। (ख) यह मंत्र सदा इसी रूप में लिखा जाना चाहिए। ५. दृश्य पदार्थ या वस्तु। जैसे—प्रकृति कहीं पर्वत के रूप में और कहीं समुद्र के रूप में व्यक्त होती है। ६. खूबसूरती। सुंदरता। (किसी का) रूप हरना=अपनी बढ़ी हुई सुन्दरता के फल-स्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न करना कि सामनेवाली चीज या व्यक्ति कुछ भी सुन्दर न जान पड़े। ७. प्रकृति स्वभाव। ८. प्रकार। भेद। ९. नमूना। प्रतिमान। १॰. बराबरी। समता। समानता। ११. गणित में एक की सूचक संज्ञा। १२. नाटक। ‘रूपक’। वि० खूबसूरत। रूपवान्। सुन्दर। अव्य०किसी के रूप के तुल्य या सदृश्य बराबर या समान। उदाहरण—बोलहु सुआ पियारे नाहाँ। मोरे रूप कोऊ जग माहाँ।—जायसी। पुं० =रूपा (चाँदी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रूप-गर्विता  : स्त्री० [सं० तृ० त०] साहित्य में, वह नायिका जिसे अपने रूप का गर्व या अभिमान हो।
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रूप-घनाक्षरी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] ३२ वर्णों वाला एक प्रकार का मुक्तक दंडक छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ वर्णों पर यति होती है। इसके अंत में लघु होना आवश्यक है।
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रूप-चतुर्दशी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] कार्तिक बदी चौदस। नरक चतुर्दशी।
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रूप-जीवनी  : स्त्री० [सं० रूप√जीव् (जीना)+णिनि+ङीष्] रूप जिसकी जीविका का आधार हो। रंडी। वेश्या।
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रूप-धेय  : पुं० [सं० रूप+धेय] किसी प्रकार के ठोस पदार्थ (पिंड, भूमि आदि) की समोच्च रूप रेखा। कॉन्टूर।
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रूप-नाशक  : पुं० [सं० ष० त०] उल्लू। वि० रूप नष्ट करनेवाला।
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रूप-पति  : पुं० [सं० ष० त०] विश्वकर्मा।
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रूप-भेद  : पुं० [सं० ष० त०] किसी काम या बात के रूप में किया हुआ आंशिक परिवर्तन।
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रूप-मंजरी  : स्त्री० [सं० रूप+मंजरी] १. एक प्रकार का फूल। २. संगीत में एक प्रकार की रागिनी। पुं० एक प्रकार का धान और उसका चावल।
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रूप-मनी  : वि० [हिं० रूपमान्] रूपवती।
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रूप-मांजरी  : स्त्री० पुं० =रूप-मंजरी।
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रूप-माला  : स्त्री० [सं० ष० त०] १, एक प्रकार का सम-वृत मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १४ और १0 के विश्राम से २४ मात्राएँ होती हैं। २. एक प्रकार का सम वृत्त वर्णिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में क्रम से रगण, मगण, जगण, भगण और अंत में गुरु लघु होता है।
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रूप-रूपक  : पुं० [सं० मध्य० स०] केशव के अनुसार रूपक अलंकार के ‘सावयव रूपक’ भेद का एक नाम।
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रूप-रेखा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. रेखाओं आदि के रूप में होनेवाला वह अंकन जिससे किसी पदार्थ के आकार-प्रकार का स्थूल ज्ञान होता हो, फिर भी जिससे उस पदार् के उभार, गहराई मोटाई ज्ञान आदि का हो। रेखाओं द्वारा अंकित चित्र। २. किसी कार्य के संबंध की वह मुख्य बात जो उसके स्थूल रूप की सूचक तथा ब्योरे आदि की बातों से रहित होती और उसके संक्षिप्त विवरण या सारांश के रूप में होती है। ३. किसी चित्र की वह बाहरी रेखा जिससे वह चित्र घिरा रहता है (आउट लाइन सभी अर्थो में)।
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रूप-विधान  : पुं० [सं० ष० त०] १. भाषा विज्ञान और व्याकरण का वह अंग या शाखा जिसमें शब्दों की बनावट या रूप और उसमें होनेवाले विकारों आदि का विवेचन होता है। (माँरफाँलोजी) २. दे० ‘आकृति विज्ञान’।
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रूप-श्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] सम्पूर्ण जाति की एक संकर रागिनी।
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रूप-संपत्ति  : स्त्री० [सं० ष० त०] सौन्दर्य। उत्तम रूप। सुन्दरता।
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रूप-साधक  : वि० [सं० ष० त०] शब्दों का रूप साधन करनेवाला। जैसे—फलतः मुख्यतः आदि में ‘तः’ रूप साधक प्रत्यय है।
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रूप-साधन  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० कर्ता रूपसाधक] व्याकरण में भिन्न-भिन्न कारकों, लिगों, वचनों आदि में किसी एक शब्द के होनेवाले अलग-अलग रूप या उनके वे रूप बनाने की प्रक्रिया। डिक्लरेन्शन।
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रूप-साम्य  : पुं० [सं० स० त० या ष० त०] वस्तुओं के रूपों में होनेवाली पारस्परिक समानता।
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रूपक  : वि० [सं०√रूप्+णिच्+ण्वुल्-अक] जिसका कोई रूप हो। रूप से युक्त। रूपी। पुं० १. किसी रूप की बनाई हुई प्रतिकृति या मूर्ति। २. किसी प्रकार का चिन्ह या लक्षण। ३. प्रकार। भेद। ४. प्राचीन काल का एक प्रकार का प्राचीन परिमाण। ५. चाँदी। ६. रुपया नाम का सिक्का जो चाँदी का होता है। ७. चाँदी का बना हुआ गहना। ८. ऐसा काव्य या और कोई साहित्यिक रचना, जिसका अभिनय होता हो, या हो सकता हो। नाटक। विशेष—पहले नाटक के लिए रूपक शब्द ही प्रचलित था और रूपक के दस भेदों में नाटक भी एक भेद मात्र था। पर अब इसकी जगह नाटक ही विशेष प्रचलित हो गया है। रूपक के दस भेद ये हैं—नाटक प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामृग, अंक, वीथी और प्रहसन। ९. साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। इसके सांग रूपक अभेद रुपक, तद्रूप, रूपक न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं। १॰. बोल-चाल में कोई ऐसी बनावटी बात, जो किसी को डरा धमकाकर अपने अनुकूल बनाने के लिए कही जाय। जैसे—तुम जरो मत, यह सब उनका रूपक भर है। क्रि० प्र०—कसना।—बाँधना। ११. संगीत में सात मात्राओं का एक दो ताला ताल, जिसमें दो आघात और एक खाली होता है।
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रूपक-कार्यक्रम  : पुं० [सं० ष० त०] आकाशवाणी द्वारा प्रसारित होनेवाले नाटकों, प्रहसनों आदि से सम्बन्ध रखनेवाला कार्यक्रम। (फीचर प्रोग्राम)।
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रूपकर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] विश्वकर्मा।
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रूपकातिशयोक्ति  : स्त्री० [सं० रूपक-अतिशयोक्ति, कर्म० स०] अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें वर्णन तो रूपक की तरह का ही होता है, पर केवल उपमान का उल्लेख करके उपमेय का स्वरूप उपस्थित किया जाता है।
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रूपकृत्  : पुं० [सं० रूप√कृ (करना)+क्विप्] विश्वकर्मा।
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रूपक्रांता  : स्त्री० [सं०] सत्रह अक्षरों का एक वर्णवृत्त।
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रूपण  : पुं० [सं०√रूप+णिच्+ल्युट-अन] १. आरोप करना। आरोपण। २. प्रमाण। सबूत। ३. जाँच। परीक्षा।
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रूपता  : स्त्री० [सं० रूप+तल्+टाप्] रूप का गुण, धर्म या भाव। २. खूब सूरती। सौन्दर्य।
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रूपधर  : वि० [सं० ष० त०] [स्त्री० रूपधरा] सुंदर। खूबसूरत।
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रूपमय  : वि० [सं० रूप+मयट्] [स्त्री० रूपमती] रूप अर्थात् सौन्दर्य से भरा हुआ या पूर्णतः युक्त। परमसुन्दर।
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रूपमान  : वि० [स्त्री० रूपमनी]=रूपवान्।
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रूपमाली (लिन्)  : स्त्री० [सं० रूपमाला+इनि] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तीन मगण या नौ दीर्घ वर्ण होते हैं।
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रूपव  : वि० =रूपवान्।
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रूपवंत  : वि० [सं० रूपवत्] [स्त्री० रूपवंती] जिसमें सौन्दर्य हो। खूब सूरत। रूपवान्।
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रूपवती  : स्त्री० [सं० रूप+मतुप्, +ङीष्] १. केशव के अनुसार एक प्रकार का छंद, जिसे छंदप्रभाकर ‘गौरी’ कहा गया है। २. चंपक माला वृत्त का एक नाम। वि० सुंदरी (स्त्री)।
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रूपवान् (वत्)  : वि० [सं० रूप+मतुप्] [स्त्री० रूपवती] सुंदर रूप वाला। खूबसूरत।
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रूपशाली (लिन्)  : वि० [सं० रूप√शाल् (शोभित होना)+णिनि] [स्त्री० रूपशालिनी] रूपवान्। सुन्दर।
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रूपंसी  : स्त्री० [सं० रूप से] बहुत सुन्दर स्त्री।
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रूपस्वी  : वि० [सं० रूपवान्] [स्त्री० रूपस्विनी] रूपवान्। सुन्दर।
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रूपा  : पुं० [सं० रूप] १. चाँदी। २. ऐसी घटिया चाँदी जिसमें कुछ खोट या मिलावट हो। ३. सफेद रंग का बैल जो परिश्रमी माना जाता है। ४. सफेद रंग का घोड़ा। नुकरा। स्त्री० [सं०] रूपवती स्त्री। सुन्दरी।
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रूपांकक  : पुं० [सं० रूप-अंकक, ष० त०] किसी चीज का निर्माण करने से पहले उसकी आकृति, रचना प्रकार आदि को रेखाओं नक्शों आदि द्वारा दरशानेवाला व्यक्ति। अभिकल्पक। (डिजाइनर)
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रूपांकन  : पुं० [सं० रूप-अंकन] रेखाओं, नक्शों आदि के द्वारा किसी चीज का रूप रंग तथा आकार-प्रकार दरशाने की क्रिया या भाव। अभिकल्पन (डिजाइनिंग)।
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रूपाजीवा  : स्त्री० [सं० रूप-आ√जीव् (जीना)+अच्+टाप्] वेश्या। रंडी।
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रूपांतर  : पुं० [सं० रूप-अंतर, ष० त०] १. रूप का बदलना। दूसरे रूप की प्राप्ति। रूपांतरण। २. प्राप्त होनेवाला दूसरा रूप।
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रूपांतरण  : पुं० [सं० रूप-अंतरण] दूसरे रूप में आना या लाया जाना। रूप बदलना या बदला जाना। (ट्रान्सफारमेशन)
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रूपाधिबोध  : पुं० [सं० रूप-अधिबोध, ष० त०] १. जिसके रूप का ज्ञान इंद्रियों से प्राप्त होता है। दृश्य या अदृश्य पदार्थ। २. उक्त पदार्थ का इंद्रियों से होनेवाला ज्ञान।
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रूपाध्यक्ष  : पुं० [सं० रुप-अध्ययन, ष० त०] १. टकसाल का प्रधान अफसर। २. कोषाध्यक्ष।
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रूपामक्खी  : स्त्री० [हिं० रूपा=चाँदी+मक्खी] एक प्रकार का खनिज पदार्थ जिसकी गणना हमारे यहाँ उप-धातुओं में की गई है, वैद्यक में इसका व्यवहार प्रायः चाँदी के अभाव में किया जाता है क्योंकि इसमें चाँदी का कुछ अंश और गुण पाया जाता है।
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रूपायन  : पुं० [सं०] [भू० कृ०रूपायित] १. किसी वस्तु का रूप या ढाँचा। प्रस्तुत करना। २. किसी बात या विचार को कार्यरूप में परिणित करना।
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रूपायित  : भू० कृ० [सं०] जिसने कोई रूप प्राप्त किया हो या जिसे कोई रूप दिया गया हो।
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रूपावचर  : पुं० [सं०] १. एक प्रकार का देवता (बौद्ध) २. चिन्ता की वह अवस्था जिसमें उसे रूप-जगत् अर्थात् दृश्य पदार्थों का ज्ञान होता है। ३. इस प्रकार प्राप्त होनेवाला ज्ञान। ४. योग में ध्यान की एक भूमि जिसके प्रथम आदि चार भेद कहे गये हैं।
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रूपाश्रय  : वि० [सं० रूप-आश्रय, ष० त०] रूपवान्। सुन्दर।
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रूपास्त्र  : पुं० [सं० रूप-अस्त्र, ब० स०] कामदेव।
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रूपिका  : स्त्री० [सं०√रूप्+ठन्-इक, +टाप्]सफेद फूलोंवाला मदार का पौधा।
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रूपित  : पुं० [सं० रूप+इतच्] एक प्रकार का उपन्यास, जिसमें ज्ञान, वैराग्यादि पात्र बनाए जाते हैं। भू० कृ० जिसे कोई रूप दिया गया या मिला हो।
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रूपी (पिन्)  : वि० [सं०√रूप्+इनि] [स्त्री० रूपिणी] १. रूप या आकार प्रकार वाला। २. रूपधारी। रूपवान्। सुन्दर। ३. तुल्य। सदृश्य समान।
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रूपेंद्रिय  : स्त्री० [सं० रूप+इंद्रिय, मध्य० स०] जिससे रूप का ज्ञान होता है चक्षु।
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रूपेश्वर  : पुं० [सं० रूप-ईश्वर, ष० त०] [स्त्री० रूपेश्वरी] एक शिवंलिंग।
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रूपेश्वरी  : स्त्री० [सं० रूप-ईश्वरी, ष० त०] एक देवी का नाम।
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रूपोपजीविनी  : स्त्री० [सं० रूप+उप√जीव् (जीना)+णिनि+ङीष्] वेश्या रंडी।
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रूपोपजीवी (विन्)  : पुं० [सं० रुप-उप√जीव्+णिनि] [स्त्री० रुपोपजीवनी] बहुरूपिया।
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रूपोश  : वि० [फा०] १. जो मुँह छिपाए हुए हो। २. जो दंड आदि से बचने के लिए छिप या भाग गया हो।
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रूपोशी  : वि० [फा०] १. रूपोश होने की अवस्था या भाव।
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रूप्य  : वि० [सं० रूप+यत्] १. सुन्दर। खूबसूरत। २. उपमेय। पुं० रूपा। चाँदी।
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रूप्यक  : पुं० [सं० रूप्य+कन्] रुपया।
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रूप्याध्यक्ष  : पुं० [सं० रूप्य-अध्यक्ष, ष० त०] टकसाल का प्रधान अधिकारी। नैष्ठिक।
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रूबकार  : पुं० [फा०] १. सामने उपस्थित करने की क्रिया या भाव। पेशी। २. वह पत्र जिसके द्वारा किसी को कहीं उपस्थित होने की आज्ञा दी जाय। ३. आज्ञापत्र। हुक्मनामा। वि० दत्त-चित्त।
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रूबकारी  : स्त्री० [फा०] १. किसी के सामने उपस्थित होने की क्रिया या भाव। २. अदालत में मुकदमे की पेशी। २. मुकदमे से सम्बन्ध रखने वाली कार्यवाही। ४. दत्त चित्त होने की अवस्था या भाव।
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रूबंद  : पुं० [फा०] १. घूँघट। २. बुरका।
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रूम  : पुं० [फा०] टर्की या तुर्की देश का पुराना नाम। पुं० [अं०] कमरा।
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रूमना  : अ० हिं० झूमना का अनु०।
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रूमानिया  : पुं० [अं०] पूर्वी यूरोप का एक देश।
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रूमानी  : पुं० [अं०] रूमानिया का निवासी। वि० रूमानिया देश का। स्त्री० रूमानिया देश की भाषा।
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रूमाल  : पुं० [फा०] १. जेब में रखने का कपड़े का छोटा चौकोर टुकड़ा जिसके किनारे सिले होते हैं तथा जिससे मुँह नाक पोंछा जाता है। करपट। २. चौकोना शाल या चिकन का टुकड़ा जिसके चारों ओर बेल और बीच में काम बना रहता है और जो तिकोने दोहर कर ओढ़ने के काम में लाया जाता है। मुसलमानी शासन-काल में यह कमर में भी लपेटा जाता था। ३. पायजामे की काट में वह चौकोर कपडा जो दोनों मोहरियों की सन्धि में लगाया जाता है। मियानी। ४. ठगों का वह रुमाल जिसके एक कोने में चाँदी का एक टुकड़ा बँधा रहता था। क्रि० प्र०—लगाना।
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रूमाली  : स्त्री० [फा० रुमाल] १. छोटा रुमाल। २. एक प्रकार का लँगोट। ३. दे० ‘रूमाली’।
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रूमी  : वि० [फा०] १. रूम देश संबंधी। रूम का। २. जो रूम देश में उत्पन्न हो या वहाँ से आता हो। जैसे—रूमी मस्तगी। पुं० रूम देश का निवासी। स्त्री० रूम देश की भाषा।
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रूरना  : अ० [सं० रोरवण] १. ऊँचे स्वर में बोलना। चिल्लाना। २. दहाड़ना। गरजना।
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रूरा  : वि० [सं० रूढ़=प्रशस्त] [स्त्री० रूरी] १. श्रेष्ठ। उत्तम। अच्छा। २. खूबसूरत। सुन्दर।
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रूल  : पुं० [अं०] १. नियम। कायदा। २. शासन। ३. वह डंडा या पट्टी जिसकी सहायता से सीधी रेखाएँ या लकीरें खींची जाती है। रूलर। ४. सीधी खींची हुई रेखा या लकीर। क्रि० प्र०—खींचना।
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रूलदार  : वि० [अं० रूल+फा० दार] जिस पर समानान्तर तथा सीधी रेखाएं खींची या बनी हों।
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रूलर  : पुं० [अं०] १. लकीर खींचने का डंडा या पट्टी। सलाका। २. शासक।
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रूष  : पुं० =रूख (वृक्ष)।
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रूषक  : पुं० [सं०√रूष् (सजाना, ढकना)+ण्वुल्-अक] अडूसा वासक।
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रूषण  : पुं० [सं०√रूष्+ल्युट-अन] १. अलंकृत या भूषित करना। २. लेप लगाना। अनुलेपन। ३. ढकना। आच्छादन।
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रूषा  : वि० =रूखा।
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रूस  : पुं० [फा०] एक प्रसिद्ध देश जिसका आधा भाग युरोप में और आधा एशिया में पड़ता है। स्त्री० [फा० रविश] चाल (क्व०) स्त्री० [हिं० रूसना] रूसने की क्रिया या भाव।
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रूसना  : अ० [हिं० रोष] १. रुष्ट होना। रूठना। संयो० क्रि०—जाना। बैठना। २. क्रुद्ध होना।
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रूसा  : पुं० [सं० रोहिष] एक प्रकार की सुगंधित घास भूतृण। पुं०=अडूंसी।
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रूसी  : वि० [फा०] १. रूस देश का। रूस देश संबंधी। २. रूस देश में उत्पन्न या प्रचलित। पुं० रूस देश का निवासी। स्त्री० रूस देश की भाषा। स्त्री० [देश] सिर में पड़ी हुई भूसी की तरह दिखाई पड़नेवाली मैल।
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रूह  : स्त्री० [अं०] १. आत्मा। २. प्राणवायु। ३. अंतःकरण। जैसे—वहाँ जाने को मेरी रूह नहीं कर रही है। ४. कई बार का खींचा हुआ अरक या इत्र।
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रूह-अफ़जा  : वि० [अ०+फा०] जीवन बढ़ानेवाला। प्राणवर्धक।
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रूहड़  : पुं० [हिं० रूई] १. पुराने गद्दों तकियों, लिहाफों आदि में की वह पुरानी रूई जो जमकर गुठलों या गूदड़ के रूप में हो गई हो। २. रूई का गुठला।
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रूहना  : अ० [सं० रोहण] १. ऊपर चढ़ना। २. वेगपूर्वक आगे बढ़ना। उमड़ना। स०=रूँधना।
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रूहानियत  : स्त्री० [अ०] १. आत्मवाद। २. अध्यात्मवाद।
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रूहानी  : वि० [अ०] १. रूह या आत्मा संबंधी। आत्मिक जैसे—रूहानी ताकत। २. अंतःकरण संबंधी। हार्दिक। दिली।
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रूही  : वि० [देश०] एक वृक्ष।
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रूहीमूल  : पुं० [हिं० रूही+मूल] रूही नामक वृक्ष की छाल और जड़। ईसरमूल।
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