शब्द का अर्थ
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लंग :
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पुं० [फा०] लँगड़ापन। मुहावरा—लंग खाना=चलने में कुछ लँगड़ाना। पुं० [सं०√लंग् (गति) +अच्] १. मेल। योग। २. उपपति या प्रेमी। स्त्री० =लांग। |
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लंग-ग्रीव :
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वि० [सं० ब० स०] लंबी गरदनवाला। पुं० ऊँट। |
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लंग-बालूस :
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पुं० [?] १. मध्यकालीन साहित्य में लंका द्वीप। २. दे० ‘लंका’। |
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लंगक :
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पुं० [सं० लंग+क] उपपति। यार। |
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लंगटा :
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वि० [स्त्री० +लँगटी०] =नंगटा (नंगा) उपेक्षासूचक। |
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लंगड़ा :
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वि० =लँगडा। पुं० =लंगर। |
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लँगड़ा :
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वि० [फा० लंग०] [स्त्री० लँगड़ी, भाव० लँगड़ापन] १. जिसका एक पैर बेकार हो गया हो या टूटा हो। २. पैर में किसी प्रकार का कष्ट, दोष या विकार होने के कारण जो लचककर चलता हो। ३. जिसका कोई एक आधार नष्ट या विकृत हो गया हो, और इसीलिए जो ठीक तरह से या सीधा खड़ा न रह सकता हो। ३. (पैर) जो टूटने के कारण या किसी और प्रकार का टेढ़ा हो गया हो। पुं० पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में होनेवाला एक प्रकार का बढ़िया मीठा आम और उसका पेड़। |
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लँगड़ाना :
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अ० [हिं० लंगड़ी] चोट आदि के फलस्वरूप चलने में दोनों या चारों पैरों का ठीक-ठीक और बराबर न बैठना बल्कि किसी एक पैर का कुछ रुक या दबकर पड़ना। लँगड़े होने के कारण कुछ दबते और कुछ उचकते हुए चलना। |
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लँगड़ापन :
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पुं० [हिं० लँगड़ा+पन (प्रत्यय)] लँगड़े होने की अवस्था या भाव। |
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लँगड़ी :
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स्त्री० [हिं० लँगड़ा] एक प्रकार का छंद। वि० [हिं० लँगर] बलवान्। शक्तिशाली। (डि०) |
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लंगन :
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पुं० =लँघन। |
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लंगनी :
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स्त्री० =अलगनी। |
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लंगर :
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वि० [?] १. नटखट। २. दुष्ट। पाजी। |
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लंगर :
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पुं० [फा० मि० अं० एन्कर] १. लोहे का बना हुआ एक प्रकार का बहुत बड़ा काँटा जिसे नदी, समुद्र आदि में गिराकर नाव, जहाज आदि रोके जाते हैं। पद—लंगरगाह। मुहावरा—लंगर उठाना=जहाज या नाव का लंगर उठाकर चलने को तैयार होना। लंगर छोड़ना, डालना या फेंकना=जहाज या नाव ठहराने अथवा रोकने के लिए लंगर गिराना। २. लकड़ी का वह कुंदा जो किसी हरहाये पशु विशेषतः गौ के गले में रस्सी से इसलिए बाँध दिया जाता है कि वह भागकर दूर न जा सके। ठेंगुर। ३. लोहे में इसलिए बाँधी जाती थी कि वे भाग न सकें। क्रि० प्र०—डालना। पड़ना। ४. रस्सी तार आदि से बाँधी और लटकती हुई कोई भारी चीज, जिसका व्यवहार कई प्रकार की कलों में उनकी गति ठीक रखने के लिए होता है। क्रि० प्र०—चलना।—चलाना। ५. जहाजों पर काम आनेवाला बड़ा और मोटा रस्सा। ६. बागडोर। लगाम। ७. चाँदी का बना हुआ तोड़ा जो पैर में पहना जाता है। ८. किसी चीज के नीचे का भारी और मोटा अंग का अंश। ९. कमर के नीचे का भाग। १॰. पहलवानों के पहनने का लँगोटा। मुहावरा—लंगर बाँधना=पहलवान बनने के उद्देश्य से कसरत करना और कुश्ती लड़ना। ११. वह उभरी हुई रेखा, जो अंडकोश के नीचे के भाग से आरम्भ होकर गुदा तक जाती है। सीयन। सीवन। १२. अंडकोष (बाजारू)। १३. कपड़े की सिलाई में वे टाँके, जो दूर-दूर इसलिए डाले जाते हैं जिसमें मोड़ा हुआ कपड़ा अथवा एक साथ सिये जानेवाले पल्ले अपने स्थान से हट जायँ। इस प्रकार के टाँके पक्की सिलाई के पूर्व डाले जाते हैं, इसलिए इसे कच्ची सिलाई भी कहते हैं। क्रि० प्र०—डालना।—भरना। १४. वह स्थान जहाँ बहुत लोगों को भोजन एक साथ पकता है। १५. वह पका हुआ भोजन जो प्रायः नित्य किसी निश्चित समय पर आगंतुकों, दरिद्रों आदि को बाँटा जाता है। पद—लंगर खाना। क्रि० प्र०—देना।—बाँटना।—लगाना। १६. ऐसा व्यक्ति या स्थान जिसके द्वारा किसी को संकट के समय आश्रय मिलता हो। वि० जिसमें अधिक बोझ हो। भारी वजनी। वि० लँगर (दुष्ट और पाजी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लंगर-गाह :
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पुं० [फा०] किनारे पर का वह स्थान जहाँ लंगर डालकर जहाज ठहराये जाते हैं। बन्दरगाह। विशेष—यद्यपि फा में गाह (जगह) स्त्री ही है फिर भी हिन्दी में उससे बने हुए बन्दरगाह, लंगरगाह आदि शब्द प्रायः पुं० रूप में ही प्रचलित हैं। |
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लँगरई :
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स्त्री० [हिं० लँगर] लँगर (अर्थात् दुष्ट या पाजी) होने की अवस्था या भाव। नटखटी। पाजीपन। शरारत। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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लंगरखाना :
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पुं० [फा०] वह स्थान जहाँ आगन्तुकों या दरिद्रों को बना-बनाया भोजन बाँटा जाता हो। |
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लँगराई :
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स्त्री० [हिं० लंगर+आई (प्रत्यय)] लंगर अर्थात् दुष्ट या पाजी होने की अवस्था, क्रिया या भाव। नटखटी। शरारत। |
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लँगराना :
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अ०=लँगड़ाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लँगरैया :
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स्त्री० =लँगराई। |
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लंगल :
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पुं० [सं०√लंग्+कलच्] हल। |
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लंगी :
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स्त्री० [फा० लंग=लँगड़ा] कुश्ती का एक दाँव जिसमें अपनी एक टाँग लँगड़ी करके विपक्षी की टाँग में अड़ाकर उसे गिराया जाता है। |
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लंगुरा :
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पुं० [?] एक तरह का धान्य। |
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लंगूर :
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पुं० [सं० लांगूलिन्] १. एक प्रकार का बन्दर जिसका मुँह और हाथ-पैर काले, सारा शरीर भूरा या सफेद और दुम बहुत लंबी होती है, जिससे वह प्रायः कोडे की तरह आघात करता है। २. दुम। पूँछ। |
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लंगूर-फल :
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पुं० [हिं० लंगूर+सं० फल] नारियल। |
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लँगूरी :
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स्त्री० [हिं० लंगूर+ई (प्रत्यय)] १. घोड़े की एक प्रकार की चाल जिसमें वह लंगूरों की तरह उछल-उछल कर चलती हैं। २. वह इनाम जो चोरी गए हुए मवेशियों का पता लगाने पर दिया जाता है। |
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लंगूल :
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पुं० [सं० लांगूल] पूँछ। दुम। |
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लंगोचा :
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पुं० [?] कीमे से भरकर तली हुई जानवर की आँत। कुलमा। गुलमा। |
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लँगोट :
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पुं० [सं० लिंग+पट] [स्त्री० लँगोटी] कमर में बाँधने का एक प्रकार का वस्त्र, जिससे केवल उपस्थ ढका जाता है। रुमाली। पद—लँगोट बंद। मुहावरा—लंगोट का ढीला=जो सुयोग मिलने पर पर-स्त्री से निस्संकोच संभोग कर सकता हो। लँगोट का सच्चा=जो कभी पर-स्त्री से संभोग न करता हो। |
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लँगोट-बंद :
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वि० [हिं०] [भाव० लँगोटबंदी] जिसने स्त्री-संभोग या पर-स्त्री संभोग न करने की प्रतिज्ञा कर रखी हो। |
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लँगोटा :
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पुं० =लँगोट। |
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लँगोटी :
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स्त्री० [हिं० लँगोट] १. छोटा लँगोट। २. वह छोटा-सा कपड़ा, जो बच्चों की कमर में उपस्थ आदि ढकने के लिए बाँधा जाता है। पद—लँगोटिया यार=उस समय का मित्र जब कि दोनों लंगोटी बाँधकर फिरते थे। बचपन का मित्र। ३. गरीबों, साधुओं आदि के पहनने का बहुत छोटा पतला वस्त्र। कोपीन। पद—लँगोटी में मस्त=पास में कुछ न रहने पर भी प्रसन्न रहनेवाला। मुहावरा—लँगोटी पर फाग खेलना=पास में कुछ भी न होने पर या बहुत ही कम धन होने पर भी आनंद-मंगल और भोग-विलास करना। (किसी की) लँगीटी बँधवाना=बहुत दरिद्र कर देना। इतना धनहीन कर देना कि पास में पहनने की लँगोटी के सिवा और कुछ न रह जाय। (किसी की) लँगोटी बिकवाना=इतना दरिद्र कर देना कि पहनने को लँगोटी तक न रह जाय। |
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