शब्द का अर्थ
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लता :
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स्त्री० [सं०√लत् (लपेटना)+अच्+टाप्] १. ऐसे विशिष्ट प्रकार के पौधे की संज्ञा जिनके कांड और शाखाएं पतली नरम तथा लचीली होती हैं तथा जो किसी आधार के सहारे खड़ी होती हैं, और आधार के अभाव में जमीन पर फैल जाती हैं। जैसे—अंगूर की लता। २. कोमल कांड या शाखा। जैसे—पद्यलता। ३. सुंदरी स्त्री। |
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लता-कर :
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पुं० [मध्य० स०] नाचने में हाथ हिलाने का एक प्रकार। |
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लता-करंज :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का करंज या कंजा। कंट-करेज। |
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लता-कस्तूरी :
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स्त्री० [मध्य० स०] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जिसके अंगों का उपयोग वैद्यक में होता है। |
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लता-कुँज :
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पुं० [ष० त०] लताओं से छाया हुआ स्थान। |
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लता-गृह :
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पुं० [मध्य० स०] लता-कुंज। (दे०) |
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लता-जाल :
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पुं० [ष० त०] बहुत-सी लताओं के योग से बना हुआ जाल या उसके नीचे का छायादार स्थान। |
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लता-जिह्न :
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पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। |
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लता-तरु :
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पुं० [उपमित स०] १. नारंगी का पेड़। २. ताड़ का पेड़। ३. शाल वृक्ष। साखू। |
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लता-पता :
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पुं० [सं० लतापत्र] १. लता और पत्ते। पेड़-पत्ते। पेड़ों और पौधों का समूह। २. पौधों, वनस्पतियों आदि की हरियाली। ३. जड़ी-बूटी। ४. निकम्मी और रद्दी चीजें। |
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लता-पनस :
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पुं० [ब० स०] तरबूज। |
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लता-पाश :
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पुं० =लता-जाल। |
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लता-फल :
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पुं० [सं० ब० स०] पटोल। परवल। |
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लता-बंध :
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पुं० [ब० स०] कामशास्त्र में संयोग का एक आसन। बंध या मुद्रा। |
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लता-भवन :
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पुं० =लता-कुंज। |
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लता-मंडप :
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पुं० [मध्य० स०] छाई हुई लताओं से बना हुआ मंडप या छायादार स्थान। |
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लता-मणि :
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पुं० [उपमित स०] प्रवाल। मूँगा। |
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लता-यष्टि :
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स्त्री० [उपमित स०] मंजिष्ठा। मंजीठ। |
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लता-वृक्ष :
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पुं० [उपमित स०] सलई का पेड़। शल्लकी। |
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लता-वेष्ट :
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पुं० [लता-आवेष्ट, ब० स०] १. काम शास्त्र में एक प्रकार का रति-बंध या आसन। २. पुराणानुसार द्वारकापुरी के पास का एक पर्वत। वि० लताओं से घिरा हुआ। |
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लता-साधन :
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पुं० [तृ० त०] तंत्र या वाम मार्ग में एक प्रकार की साधना जिसमें प्रधान अधिकरण लता अर्थात् स्त्री होती है। |
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लतांगी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. कर्कटश्रृंगी। काकड़ासींगी। २. संगीत में कर्णाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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लताड़ :
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स्त्री० [हिं० लताड़ना] १. लताड़ने की क्रिया या भाव। २. कठिनता। दिक्कत। ३. परेशानी। हैरानी। ४. दे० ‘लाथड़’। |
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लताड़ना :
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स० [हिं० लात] १. लातों या पैरों से कुचलना। रौंदना। २. लातों से मारना। ३. किसी लेटे हुए व्यक्ति के विशिष्ट अंगों पर खड़े होकर धीरे-धीरे इस प्रकार चलना कि उसकी पीड़ा या थकावट दूर हो जाय और उसे आराम मिले। ४. तंग या परेशान करना। |
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लतापर्णी :
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स्त्री० [ब० स०+ङीष्] १. तालमूल। २. मधूरिका। मेवड़ी। |
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लताफ़त :
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स्त्री० [अ०] १. लतीफ होने की अवस्था या भाव। सूक्ष्मता। २. कोमलता। ३. उत्तमता। ४. स्वादिष्टता। |
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लतार्क :
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पुं० [लता-अर्क, ब० स०] प्याज का पौधा। |
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