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लोकायत  : पुं० [सं० लोक-आयत=विस्तीर्ण] १. वह जो इस लोक के अतिरिक्त दूसरे लोक को न मानता हो। २. भारतीय दर्शन में एक प्राचीन भूतवादी नास्तिक सम्प्रदाय जिसके प्रवर्तक देव-गुरु बृहस्पति कहे जाते हैं। इसलिए इसे बार्हस्पत्य भी कहते हैं। प्रवाद है कि बृहस्पति ने असुरों का नाश कराने के लिए ही उनमें इस मत का प्रचार किया था। विशेष—कुछ लोगों का मत है कि किसी समय लोक में इसी नास्तिक मत का सबसे अधिक प्रचार था। इसीलिए इसका नाम लोकायत पड़ा। इस मत का मुख्य सिद्धान्त यह है कि आत्मा, परलोक, नरक और स्वर्ग की कल्पनाएँ मिथ्या हैं, और वर्णाश्रम आदि का विधान व्यर्थ है। ३. चार्वाक दर्शन, जिसमें परलोक या परोक्षवाद का खंडन है। ४. दुर्मिल छंद का एक नाम।
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लोकायतिक  : वि० [सं० लोकयत+ठन्—-इक] लोकायत सम्बन्धी। लोकायत का। पुं० १. लोकायत सम्प्रदाय का अनुयायी। २. नास्तिक।
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