शब्द का अर्थ
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शस्त :
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पुं० [सं०√शंस् (कल्याण करना)+क्त] १. शरीर। बदन। २. कल्याण। मंगल। भू० कृ० १. प्रशस्त। घायल। २. प्रशंसित। ३. जो मार डाला गया हो। निहत। ४. आहत। घायल। ५. मांगलिक। पुं० [फा०] १. वह हड्डी या बालों का छल्ला जो तीर चलाने के समय अंगूठे में पहना जाता था। २. निशाना। लक्ष्य। क्रि० प्र०—बाँधना।—लगाना। ३. दूरबीन की तरह का वह यंत्र जिससे जमीन नापने के समय उसकी सीध देखी जाती है। ४. मछली फँसाने का काँटा। बंसी। |
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समानार्थी शब्द-
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शस्तक :
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पुं० [सं० शस्त+कन्] हाथ में पहनने का चमड़े का दस्ताना। अंगुलित्र। |
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शस्ति :
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स्त्री० [सं०√शस् (कल्याण करना)+क्तिन्] स्तुति। प्रशंसा। प्रशस्ति। |
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शस्त्र :
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पुं० [सं०√शंस्+ष्ट्रन्] १. कोई ऐसी चीज जिससे लड़ाई-झगड़े या युद्ध के समय शत्रु पर प्रहार किया जाता हो। हथियार। २. लाक्षणिक रूप में कोई ऐसी चीज या बात जिसके द्वारा विपक्षी या विरोधी को दबाया या शांत किया जाता हो। (बेपन)। ३. किसी प्रकार का उपकरण या औजार। ४. लोहा। ५. फौलाद। ६. स्तोत्र। ७. कुछ पढ़कर सुनाना। पाठ। |
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शस्त्र-कर्म (कर्म्मन्) :
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पुं० [सं०] घाव या फोड़े में नश्तर लगाना। फोड़ों आदि की चीड़-फाड़ का काम। शल्यकारी। |
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शस्त्र-क्रिया :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] १. शस्त्र-कर्म। २. शल्योपचार। |
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शस्त्र-गृह :
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पुं० [सं० ष० त० स०]=शस्त्रागार। |
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शस्त्र-विद्या :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. शस्त्र चलाने का कौशल या ज्ञान। २. यजुर्वेद का उपवेद, धनुर्वेद जिसमें सब प्रकार के अस्त्र चलाने की विधियों और लड़ाई के संपूर्ण भेदों का वर्णन किया गया है। |
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शस्त्रक :
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पुं० [सं० शस्त्र+कन्] लोहा। |
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शस्त्रजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० शस्त्र√जीव् (जीवित रहना)+णिनि] योद्धा। सैनिक। |
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शस्त्रदेवता :
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पुं० [सं० ष० त० स०] युद्ध का अधिष्टाता। देवता। |
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शस्त्रधर :
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पुं० [सं० ष० त०] योद्धा। सैनिक। |
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शस्त्रधारी (रिन्) :
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वि० [सं० शस्त्र√धृ+णिनि] [स्त्री० शस्त्रधारिणी] शस्त्र धारण करनेवाला। हथियार बंद। पुं० १. योद्धा। सैनिक। २. एक प्राचीन देश। ३. सिलहपोश नाम का जंतु। |
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शस्त्रपाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] शस्त्रधारी। |
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शस्त्रभूत :
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पुं० [सं०]=शस्त्रधारी। |
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शस्त्रशाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०]=शस्त्रगार। |
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शस्त्रशास्त्र :
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पुं० [सं० ष० त०]=शस्त्रविद्या। |
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शस्त्रहत चतुर्दशी :
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स्त्री० [सं० शस्त्र-हत, तृ० त०-चतुर्दशी, ष० त०] गौण आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी और गौण कार्तिक चतुर्दशी। इन दोनों तिथियों में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी हत्या शस्त्रों द्वारा होती है। |
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शस्त्राख्य :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का केतु (बृहत्संहिता)। |
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शस्त्रागार :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. शस्त्र आदि रखने का स्थान। शस्त्रशाला। शस्त्रालय। सिलहखाना। २. वह स्थान जहाँ पर अनेक प्रकार के शस्त्र प्रदर्शित किए अथवा सुरक्षित रखे जाते हों। |
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शस्त्राजीव :
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पुं० [सं० शस्त्र-आ√जीव् (जीवित रहना)+अच्, ब० स०]=शस्त्रजीवी। |
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शस्त्रायस :
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पुं० [सं० मध्यम० स० समा-अच्] ऐसा लोहा जिससे शस्त्र बनाये जाते हैं। |
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शस्त्रालय :
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पुं० [सं० ष० त०]=शस्त्रागार। |
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शस्त्री :
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पुं० [सं० शस्त्र+इनि शस्त्रिन्] १. वह जो शस्त्र आदि चलाना जानता हो। २. वह जिसके पास शस्त्र हो। ३. छोटा शस्त्र विशेषतः छुरी या चाकू। |
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शस्त्रीकरण :
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पुं० [सं० शस्त्र+च्वि√कृ+ल्युट-अन, दीर्घ] आक्रमण आदि से राष्ट्र की रक्षा के उद्देश्य से सेना तथा निवासियों को शस्त्रों आदि से सज्जित करना। |
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शस्त्रोपजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० शस्त्र-उप√जीव् (जीवित रहना)+णिनि] शस्त्रजीवी। (दे०) |
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