शब्द का अर्थ
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शाल :
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पुं० [सं०√शल् (प्रशस्त होना)+घञ्] १. साखू (वृक्ष)। २. पेड़। वृक्ष। ३. एक प्राचीन नद। ४. एक प्रकार की मछली। ५. धूना। राल। ६. राजा शालिवाहन का एक नाम। स्त्री० [फा०] ओढ़ने की एक प्रकार की गरम चादर। |
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शाल-कल्याणी :
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स्त्री० [सं० उपमि० स०] एक प्रकार का साग जो चरक के अनुसार भारी, रूखा, मधुर शीतवीर्य और पुरीष-भेदक होता है। |
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शाल-दोज :
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पुं० [फा०] वह जो शाल के किनारे पर बेल-बूटे आदि बनाता हो। |
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शाल-निर्यास :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. राल। घूना। २. शाल या सर्ज नामक वृक्ष। |
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शाल-पत्रा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] शालपर्णी। |
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शाल-भंजिका :
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स्त्री० [सं० शाला√भंज् (बनाना)+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] १. कठ-पुतली। २. गुड़िया। पुतली। ३. प्राचीन भारत में राज-दरबार में नाचनेवाली स्त्री। ४. रंडी। वेश्या। |
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शाल-युग्म :
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पुं० [सं० ष० त० स०] दोनों प्रकार के शाल अर्थात् सर्जवृक्ष और विजय सार। |
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शालक :
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पुं० [सं० शाल+कन्] १. पटुआ। २. मसखरा। हँसोड़। |
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शालंकटांकह :
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पुं० [सं०] सुकेशी राक्षस का एक नाम जो वामन पुराण के अनुसार विद्युतकेशी का पुत्र था। |
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शालंकायन :
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पुं० [सं० शलंक+फक्-आयन] १. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। २. शिव का नंदी। |
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शालंकायनि :
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पुं० [सं० शालंकायन+ङीप्] एक प्राचीन गोत्र प्रवर्तक ऋषि। |
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शालंकि :
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पुं० [सं० शलंक+इञ्] पाणिनि। |
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शालंकी :
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स्त्री० [सं० शालंक-ङीष्] १. गुड़िया। २. कठ-पुतली। |
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शालग्राम :
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पुं० [सं० ब० स०] गोलाकार बटिया के रूप में गंडक नदी में मिलनेवाले पत्थर के टुकड़े जिनकी पूजा की जाती है। |
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शालज :
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पुं० [सं० शाल√जन् (उत्पन्न करना)+ड] एक प्रकार की मछली। वि० शाल (शाखू) से उत्पन्न या बना हुआ। |
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शालपर्णिका :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. मुरा नामक गंध द्रव्य। २. एकांगी नामक वनस्पति। |
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शालपर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] सरिवन नामक वृक्ष। |
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शालबाफ :
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पुं० [फा०] [भाव० शालबाफी] १. शाल या दुशाला बुननेवाला। २. लाल रंग का एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। |
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शालबाफी :
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स्त्री० [फा०] १. दुशाला बुनने का काम। शालबाफ का काम। २. शाल बुनने की मजदूरी। |
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शालभ :
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पुं० [सं० शलभ+अण्] बिना सोचे-विचारे उसी प्रकार आपत्ति में कूद पड़ना जिस प्रकार पतंगा आग या दीपक पर कूद पड़ता है। वि० शलभ संबंधी। शलभ का। |
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शालभंजी :
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स्त्री० [सं०]=शाल भंजिका। |
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शालमत्स्य :
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पुं० [सं० मध्य० स०] शिलिंद नामक मछली। |
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शालरस :
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पुं० [सं० ष० तस०] राल। धूना। |
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शालव :
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पुं० [सं० शाल√वल् (जाना आदि)+ड०] लोध्र। लोध। |
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शालवानक :
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पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का निवासी। |
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शालवाहन :
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पुं० [सं० ब० स०]=शालिवाहन। |
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शालसार :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. हींग। हिंगु। २. धूना। राल। ३. शाल या साखू नामक वृक्ष। ४. पेड़। वृक्ष। |
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शाला :
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स्त्री० [सं०√शो (पतला करना)+कालन्-टाप्] १. घर। गृह। मकान। २. किसी विशिष्ट कार्य के लिए बना हुआ मकान या स्थान। जैसे—गोशाला, नृत्यशाला, पाठशाला। ३. पेड़ की डाल। शाखा। ४. इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के योग से बननेवाले सोलह प्रकार के वृत्तों में से एक प्रकार का वृत्त। |
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शाला-मृग :
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पुं० [सं० सप्त० स०] १. गीदड़। श्रृंगाल। २. कुत्ता। |
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शाला-वृक :
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पुं० [सं० सप्त० त०] १. कुत्ता। २. बन्दर। ३. बिल्ली। ४. हिरन। ५. गीदड़। श्रृंगाल। ६. लोमड़ी। |
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शालाक :
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पुं० [सं० शाला+कन्] १. झाड-झंखाड़। २. झाड़-झंखाड़ से उत्पन्न होनेवाली आग। |
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शालाकी (किन्) :
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पुं० [सं० शालाक+इनि] १. शल्य चिकित्सा करनेवाला। जर्राह। २. नापित। हज्जाम। ३. भाला-बरदार। |
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शालाक्य :
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पुं० [सं० शलाक+ण्य] १. आयुर्वेद की एक शाखा जिसमें कान, आँख, नाक, जीभ, मुँह आदि रोगों की चिकित्सा सम्बन्धी विवरण हैं। २. वह जो आँख, नाक, मुँह आदि के रोगों की चिकित्सा करता हो। |
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शालाजिर :
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पुं० [सं० ब० स०] मिट्टी की तश्तरी, पुरवा, प्याला आदि बरतन। |
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शालातुरीय :
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वि० [सं० शालातुर+छ—ईय] शालातुर प्रदेश सम्बन्धी। पुं० १. शालातुर का निवासी। २. पाणिनी। |
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शालार :
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पुं० [सं० शाला√ऋ (गमनादि)+अण्] १. सीढी। २. पिंजरा। ३. दीवार में लगी हुई खूँटी। ४. हाथी का नख। |
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शालि :
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पुं० [सं०√शल्+इञ्] १. हेमंत ऋतु में होनेवाला धान। अगहन। २. चावल। विशेषतः जड़हन धान का चावल। ३. बासमती चावल। ४. काला जीरा। ५. गन्ना। ६. गन्ध-विलाव। ७. एक प्रकार का यज्ञ। |
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शालि-धान :
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पुं० [सं० शालि धान्य] बासमती चावल। |
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शालि-वाहन :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रसिद्ध भारतीय सम्राट जिन्होंने शक संवत् चलाया था। |
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शालिक :
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पुं० [सं० शालि+कन्] १. जुलाहा। २. कारीगरों की बस्ती। ३. एक तरह का कर। |
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शालिका :
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स्त्री० [सं० शालि√कै (होना)+क—टाप्] १. बिदारी कंद। २. शालपर्णी। ३. घर। मकान। ४. मैना पक्षी। |
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शालिनी :
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स्त्री० [सं० सालि√नी (ढोना)+ड, ङीष्] १. गृहस्वामिनी। २. ग्यारह अक्षरों का एक वृत्त जिसमें क्रम से १ यगण, २ तगण और अंत में २ गुरु होते हैं। ३. पद्यकंद। भसींड। ४. मेथी। |
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शालिपर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. मेदा नामक अष्टवर्गीय ओषधि। २. पिठवन। ३. बन-उरदी। ३. सरिवन। |
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शालिहोत्र :
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पुं० [सं० शालि√हू (देन-लेन)+ष्ट्रन्] १. घोडा। २. अश्व चिकित्सा। ३. घोड़ों और दूसरे पशुओं आदि की चिकित्सा का शास्त्र। पशु-चिकित्सा। (वेटेरिनरी)। |
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शालिहोत्री :
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पुं० [सं० शालहोत्र+इनि (प्रत्यय)] १. घोड़ों की चिकित्सा करनेवाला। २. पशु चिकित्सक। |
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शाली :
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स्त्री० [सं० शाल+अच्—ङीष्] १. काला जीरा। २. शालपर्णी। ३. मेथी। ४. दुरालभा। प्रत्य० [सं० शालिन्] [स्त्री० शालिनी] एक प्रत्यय जो संज्ञा शब्दों के अंत में लगकर युक्त, वाला आदि का अर्थ देता है। जैसे—ऐश्वर्यशाली, भाग्यशाली, शक्तिशाली। |
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शालीन :
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वि० [सं० शाला+ख-ईन] [भाव० शालीनता] १. लज्जाशील। हयावाला। २. विनीत। नम्र। ३. अच्छे आचरणवाला। ४. सादृश्य। समान। ५. शाला-संबंधी। |
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शालीनता :
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स्त्री० [सं० शालीन+तल्—टाप्] शालीन होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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शालीनत्व :
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पुं० [सं० शालीन+त्व] शालीनता। |
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शालीय :
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वि० [सं० शाला+छ-ईय] शाला अर्थात् घर सम्बन्धी। |
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शालु :
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पुं० [सं० शाल+उण्] १. भसींड। कमलकंद। २. चोरक नामक गन्ध द्रव्य। ३. कसैली चीज। ४. मेढ़क। ५. एक प्रकार का फल। |
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शालुक :
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पुं० [सं० शल+उकञ्] १. भसींड़। पद्यकंद। २. जायफल। |
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शालूक :
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पुं० [सं० शाल+ऊकञ्] १. जायफल। जातीफल। २. मेंढ़क। ३. भसींड़। ४. एक प्रकार का रोग। |
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शालेय :
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पुं० [सं० शालि+ठक्—एय] १. शालि अर्थात् धान का खेत। २. सौंफ। ३. मूली। वि० १. शाल सम्बन्धी। शाल का। २. शाला अर्थात् घर सम्बन्धी। |
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शाल्मलि :
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पुं० [सं० शाल+मलिच्—ङीष् वा] १. सेमल का पेड़। २. पृथ्वी के सात खण्डों में से एक जिसकी गिनती नरकों में होती है। ३. पुराणानुसार एक द्वीप। |
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शाल्मली :
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स्त्री० [सं० शाल्मल—ङीष्] १. शाल्मलि। सेमर। २. पाताल की एक नदी। पुं० गरुड़। |
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शाल्मली वेष्ट :
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पुं० [सं०] सेमल के वृक्ष का गोंद। मोचरस। |
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शाल्मली-कंद :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शाल्मलि की जड़ जो वैद्यक में ओषधि के रूप में व्यवहृत होती है। |
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शाल्मली-फलक :
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पुं० [सं० शाल्मली-फल्+कन्] एक तरह की लकड़ी जिसपर रगड़कर शल्य तेज किये जाते थे (सुश्रुत)। |
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शाल्व :
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पुं० [सं० शाल+व] १. एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का राजा या निवासी। |
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