शब्द का अर्थ
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सट :
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पुं० [सं०√सट्-अच] जटा। अव्य० [अनु०] सट शब्द करते हुए। |
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समानार्थी शब्द-
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सट-पट :
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स्त्री० [अनु०] १. सिटपिटाने की क्रिया। चकपकाहट। २. शील। संकोच। ३. असमंजस या दुविधा का स्थिति। आगा-पीछा। ४. डर। भय। ५. घबराहट। उदा०—अरी-खरी सटपटपरी विधु आगैं मग हेरि।—बिहारी। |
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सट-सट :
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अव्य० [अनु०] १. सट शब्द करते हुए। सटापट। २. झटपट। तुरंत। शीघ्र। |
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सटई :
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स्त्री० [दे०] अनाज रखने का एक प्रकार का बरतन। |
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सटक :
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स्त्री० [अनु० सट से] १. सटकने अर्थात धीरे से चंपत होने या खिसकने की क्रिया। २. तंबाकू पीने का लंबा लचीला नैचा जो अंदर छल्लेदार तार देकर बनाया जाता है। ३. पतली लचीली छड़ी या डंठल। |
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सटकन :
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स्त्री० [हिं० सटकना] सटकने की क्रिया या भाव। |
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सटकना :
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अ० [अनु० सट से] धीरे खिसक जाना। रफूचक्कर होना। चंपत होना। स० बालो में से अनाज निकालने के लिए उसे कूटने की क्रिया। कूटना। पीटना। |
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सटकाना :
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स० [अनु० सट से] १. छड़ी आदि से इस प्रकार मारना सट शब्द हो। जैसे—कोड़ा सटकाना बेंत सटकना। २. सट-सट शब्द करते हुए कोई क्रिया करना। |
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सटकार :
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स्त्री० [अनु० सट] १. सटकने की क्रिया या भाव। २. सटकाने से होने वाला शब्द। ३. गौ, बैल आदि छड़ी से हाँकने की क्रिया। ४. दे० ‘झटकार’। |
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सटकारना :
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स०-१. सटकाना। २. =झटकारना। |
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सटकारा :
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वि० [अनु०] चिकना और लंबा (बाल)। उदा०—लसत लछारे सटकारे तेरे केस हैं।—सेनापति। |
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सटकारी :
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स्त्री० [अनु०] ऐसी पतली छड़ी जिसे तेजी से हिलाने पर सट का शब्द हो। |
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सटक्का :
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पुं० [अनु० सट से] १. दौड़। २. झपट। क्रि०—प्र०—मारना। ३ दे० ‘सटका’। |
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सटना :
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अ० [?] १. दो चीजों का इस प्रकार से एक मे मिलना जिसमें दोनो के पाश्व एक दूसरे से लग जायँ। जैसे—दीवार से अलमारी सटना। २. चिपकना। ३. मैथुन या संभोग करना। ४. लाठियों आदि से मारपीट होना। (बाजारू) संयो० क्रि०—जाना। |
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सटपटाना :
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अ० [अनु०] १. सटपट की ध्वनि होना। २. दे० सिटपिटाना। स०—सटपट शब्द का उत्पन्न होना। |
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सटपटी :
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स्त्री० [अनु०] १. सटपटाने की क्रिया या भाव। २. सट-पट। |
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सटर-पटर :
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वि० [अनु०] १. छोटा-मोटा। तुच्छ। जैसै०—सटर-पटर सामान। २. बहुत ही साधारण और असमान्य। पुं० उलझन, झंझट या बखेड़े का काम करना। |
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सटा :
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स्त्री० [सं० सट-टाप] १. साधुओं आदि के सिर पर का जटा। २. घोड़े, शेर आदि के कंधोपर के बाल। अयाल। ३. सूअर के बाल। ४. बालों की चोटी। ५. चोटी। शिखर। |
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सटाक :
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पुं० [अनु०] सट शब्द। मुहा०—सटाक से=सट या सटाक शब्द करते हुए। |
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सटाकी :
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स्त्री० [अनु०] चमड़े की वप रस्सी या पट्टी जो कुछ छड़ियों के सिरे पर बँधी रहती है। |
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सटान :
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स्त्री० [हिं० सटना+आन (प्रत्य०)] १. सटाने की अवस्था या भाव। मिलान। २. वह स्थान जहाँ दो चीजें सटती हैं। संधि-स्थल। |
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सटाना :
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ल० [हिं० सटाना का स०] १. दो तलों, पार्श्व आदि को इस प्रकार एक दूसरे के समीप ले जाना कि दोनो एक दूसरे को स्पर्श करने लगें। जैसे—(क) मेज को दीवार से सटा दो। (ख) खटिया को खटिया से सटाना। २. किसी लसीले पदार्थ की सहायता से एक चीज को दूसरी चीज से चिपकाना। जैसे—दीवार पर इश्तहार सटाना। ३. पुरुष का परस्त्री या वैश्या से संबंध कराना। (बाजारू) ४. लाठियों आदि से लड़ाई या मार-पीट करना। (गुंडे) |
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सटाय :
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वि० [देश०] १. दलालों की परिभाषा में उचित या नियत से कम। न्यून। २. निम्न कोटि का। घटिया। हलका। |
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सटाल :
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पुं० [सं० सटा+लच्] शेर बबर। केसरी सिंह। वि० भरा हुआ। पुं०=स्टाल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सटासट :
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क्रि० वि० [अनु०] १. सट-सट शब्द उत्पन्न करते हुए। जैसे—सटासट बेंत चलाना। २. बहुत जल्दी-जल्दी या फुरती। जैसे—सटासट काम निपटाना। |
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सटि :
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स्त्री० [सं० सट+इनि] कचूर। |
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सटियल :
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वि० [देश० सटाय] घटिया। रद्दी। |
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सटिया :
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स्त्री० [हिं० सटना] १. सोने चाँदी आदि की एक प्रकार की चूड़ी। २. माँग में सिंदूर भरने का उपकरण। ३. दे० ‘साटी’। |
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सटी :
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स्त्री० [सं० सआटि+ङीष्] वन आदि। जंगली कचूर। |
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सटीक :
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वि० [सं० अव्य० स०] (पुस्तक) जिसमें मूल के साथ टीका भी हो। टीका-सहित। व्याख्यासहित। जैसे—सटीक रामायण। वि० [हिं० स+ठीक] १. बिलकुल ठीक। उपयुक्त। |
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सटैया :
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वि० [देश० सचाय] १. कम गुण या मूल्य वाला। घटिया। निकम्मा। रद्दी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सटैला :
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पुं० [देश] एक प्रकार का पक्षी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सटोरिया :
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पुं० [हिं० सट्टा+ओरिया (प्रत्य०)] व्यक्ति जो सट्टा खेलने का शौकीन हो। सट्टेबाज। |
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सट्ट :
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पुं० [स० सट्टे+अच्] दरवाजे के चौखट में दोनो ओर की लकड़ियाँ। बाजू। पुं०=सट्टा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सट्टक :
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पुं० पुं० [सं० सट्ट+कन्] १. एक प्रकार का उपरूपक जिसमें अदभुत रस की प्रधानता होती है। इसमें प्रवेशक और विष्कंभक नहीं होते। इसमें प्रवेशक और विष्कंभक नहीं होते। इसके अंक जवनिका कहलाते हैं। किसी समय में केवल प्राकृत भाषा में लिखे जाते थे। २. जीरा मिला हुआ मट्ठा। |
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सट्टा :
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पुं० [सं० सार्थ या प्राय० सट्ट, पु० हि० साट] १. वह इकरारनामा जो दो पक्षों में कोई निश्चित काम करने या कुछ शर्ते पूरी करने के लिए होता है। इकरारनामा। जैसा—बाजेवालों को पेशगी देकर उनसे सट्टा लिखा लो। २. काश्तकारों में खेत की उपज के बँटवारे के सम्बन्ध में होनेवाला इकरारनामा। ३. साधारण व्यापार से भिन्न क्रय-विक्रय का एक कल्पित प्रकार जिसमें लाभ-हानि का निश्चय भाव के उतरने-चढ़ने के हिसाब से होता है, और इसीलिए जिसकी गिनती एक प्रकार के जूए में होती है। (स्पेक्यूलेशन)। स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार का पक्षी। २. बाजा। पुं०=हाट। (बाजार)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सट्टा-बट्टा :
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पुं० [हि० सटना+अनु० बट्टा] १. उद्देश्य-सिद्धि के लिए की हुई धूर्तता-पूर्ण युक्ति। चालबाजी। क्रि० प्र०—लड़ाना। २. किसी प्रकार की अभिसंधि के रूप में या दुष्ट उद्देश्य से किसी के साथ किया जानेवाला मेल-जोल। क्रि० प्र०—भिड़ाना।—लड़ाना। ३. स्त्री और पुरुष का अनुचित और गुप्त संबंध। |
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सट्टी :
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स्त्री० [हि० हाट या हट्टी] वह बाजार जिसमें एक ही मेल की बहुत सी चीजें लोग दूर दूर से लाकर बेचते हों। हाट। जैसा—तरकारी की सट्टी, पान की सट्टी। मुहावरा—सट्टी करना=सट्टी में से सामान खरीदना। सट्टी मचाना=सट्टी में जैसा शोर होता है वैसा शोर मचाना। सट्टी लगाना्=बहुत सी चीजें इधर-उधर फैला देना। |
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सट्टे :
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अव्य० [अनु० सट से] १. दफा। बार। २. अवसर पर। मौके पर। जैसा—हर सट्टे यही कहते थे—पान खिलाओ (केवल ‘हर’ के साथ प्रयुक्त)। |
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सट्टेबाज :
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पुं० [हि] [भाव० सट्टेबाजी] वह जो सट्टे की तरह का व्यापार और भाव की तेजी-मन्दी के हिसाब से (बिना माल खरीदे बेचे) लेन-देन करता हो। (स्पेक्यूलेटर)। |
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सट्वा :
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स्त्री० [सं०] १. एक तरह का पक्षी। २. एक तरह का बाजा। |
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