शब्द का अर्थ
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साह :
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पुं० [सं० साधु] १. सज्जन और साधु पुरुष। २. वणिक। महाजन। साहूकार। ३. धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति। ४. चीते आदि की तरह का एक प्रकार का पहाड़ी और हिंसक जंतु जिसके शरीर पर छल्लेदार चित्तियाँ या धब्बे होते हैं। ५. लकड़ी या पत्थर का वह लंबा टुकड़ा जो दरवाजे चौखटे में दहलीज के ऊपर दोनो पार्श्वों में लगा रहता है। स्त्री० [सं० शाखा या स्कंध] बाँह। भुजदंड। उदा०—सकल भुआन मंगल-मंदिर के द्वार बिसाल सुहाई साहैं।—तुलसी। पुं०=शाह (बादशाह)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहचर्य :
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पु० [सं०] १. सहचर होने की अवस्था या भाव। २. साथ साथ रहने या होने का भाव। संग-साथ। (ऐसोसियेशन) |
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साहजिक :
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वि० [सं०] १. (कार्य या व्यापार) जो प्राणी की सहज बुद्धि या आन्तरिक प्रेरणा से सम्पन्न होता हो। वृत्तिक। सहज (इंस्टक्टिव) २. स्वाभाविक। |
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साहजिक धन :
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पुं० [सं०] पारितोषिक, वेतन, विजय आदि में मिला हुआ धन। (शुक्त नीति) |
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साहण :
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पुं० [सं० साधन] १. साथी। संगी। २. सेना। फौज। ३. परिषद्। (डिं०) |
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साहना :
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स० [सं० सह] १. ग्रहण या प्राप्त करना। लेना। उदा०—खाँतातार मारुफ खाँ लिए पान कर साहि।—चन्दबरदाई। २. भैंस से भैंसे का संभोग कराना। स० [सं० साधन] १. सहारा देना। २. दे० ‘साधना’। स्त्री०=साधना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहनी :
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पुं० [सं० साधनिक, प्रा० साहनिअ] १. प्राचीन भारत में, एक प्रकार के राजकर्मचारी जो किसी सैनिक विभाग में अधिकारी होते थे। २. मध्ययुग में, एक प्रकार के राजकर्मचारी जो नगर की व्यवस्था करते थे। उदा०—भरत सकल साहनी बोलाये।—तुलसी। ३. परिषद्। दरबारी। ४. संगी। साथी। स्त्री० सेना। फौज। |
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साहब :
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पुं० [अ० साहिब] [स्त्री० साहिबा] १. मालिक। स्वामी। २. परमात्मा। ३. मित्र। साथी। शिष्ट समाज में, भले आदमियों के नाम या पेशे के साथ प्रयुक्त होनेवाला आदरार्थक शब्द। जैसा—बाबू कालिका-प्रसाद साहब, डा० साहब, वकील साहब। ५. अंग्रेजी शासन-काल में, इंग्लैण्ड या युरोप का कोई निवासी। |
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साहब-सलामत :
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स्त्री० [अ०] परस्पर मिलने के समय होनेवाला अभिवादन। बंदगी। सलाम। जैसा—अब तो दोनों में साहब-संलामत भी बंद हो गई है। |
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साहबजादा :
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पुं० [अ० साहिब+फा० ज़ादा] [स्त्री० साहबजादी] भले आदमी या रईस का लड़का। |
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साहबाना :
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वि० [अ०] १. साहबों अर्थात् पाश्चात्य देशों के गोरे अथवा अफसरों की तरह का या उनके रंग-ढंग जैसा। २. साहबों अर्थात भले आदमियों की तरह का। |
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साहबी :
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वि० [अ० साहिब=ई (प्रत्य०)] साहब का। साहब संबंधी। जैसा—साहबी ठाट-बाट, साहबी रंग-ढंग। स्त्री० १. साहब अर्थात् स्वामी होने की अवस्था या भाव। अधिकारपूर्ण प्रभुत्व या स्वामित्व। २. साहब अर्थात पाश्चात्य देश के गोरे निवासी होने की अवस्था, ढंग या भाव। ३. बड़प्पन। महत्त्व। |
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साहबीयत :
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स्त्री० [?] ‘साहबी’ या साहब होने की अवस्था, गुण, धर्म या भाव। |
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साहस :
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पुं० [सं०] [वि० साहसिक, साहसी] १. प्राचीन भारत में, बलपूर्वक किया जाने वाला कोई अनुचित, क्रूरतापूर्ण तथा नीति-विरुद्ध कार्य। जैसे—किसी के धन या स्त्री का अपहरण, मार-काट, लूट-पाट आदि। विशेष—इसीलिए यह शब्द अत्याचार, दुष्कर्म, बलात्कार आदि का भी वाचक हो गया था। २. वैदिक युग में, वह अग्नि जिस पर यज्ञ के लिए चरू पकाया जाता था। ३. आज-कल मन की दृढता और शक्ति का सूचक वह गुण या तत्व जिसके फलस्वरूप मनुष्य बिना किसी भय या संकोच के कोई बहुत कठिन, जोखिम का बहुत बडा़ या बूते के बाहर का काम करने में प्रवृत्त होता है। (करेज) ४. अर्थशास्त्र में, उत्पत्ति के पाँच साधनों में से एक जिसमें उत्पत्ति के शेष साधनों (भूमि, श्रम, पूँजी, प्रबंध) को एकत्र करके उनके द्वारा किसी वस्तु की उत्पत्ति की जाती है। उद्यम। (एन्टरप्राइज) ५. दंड। सजा। ६. जुरमाना। |
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साहसांक :
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पुं० [सं० ब० स०] राजा विक्रमादित्य का एक नाम। |
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साहसिक :
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वि० [सं०] १. साहस संबंधी। साहस का। २. जिसमें साहस हो। साहसी। हिम्मतवर। ३. पराक्रमी। ४. निडर। निर्भीक। ५. अत्याचार या क्रूरतापूर्ण अथवा निंदनीय कृत्य करने वाला। जैसा—चोर, डाकू, लुटेरा, लंपट, झूठा, बेईमान आदि। |
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साहसी (सिन्) :
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वि० [सं०] १. साहसपूर्ण काम करनेवाला। २. जिसमें साहस हो। पुं० १. अर्थशास्त्र में वह व्यक्ति जो उत्पत्ति के साधन (भूमि, श्रम, पूँजी तथा प्रबंध) एकत्र करके किसी वस्तु का उत्पादन करता हो। (एन्टरप्राइजर) २. दे० ‘साहसिक’। |
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साहस्त्र :
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वि० [सं०] सहस्त्र-संबंधी। हजार की संख्या से संबंध रखने वाला। पुं० १. हजार का समूह। हजार सैनिकों का दल। |
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साहस्त्रिक :
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वि० [सं० सहस्त्र+ठक् इक] सहस्त्र-संबंधी। साहस। पुं० किसी इकाई का हजारवाँ अंश। |
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साहस्त्री :
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स्त्री० [सं०] १. एक ही प्रकार की एक हजार चीजों का वर्ग या समूह। २. दे० ‘सहस्त्राब्दि’। |
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साहा :
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पुं० [सं० साहित्य] १. वह वर्ष जो हिन्दू ज्योतिष के अनुसार विवाह के लिए शुभ माना जाता है। २. विवाह का मुहर्त। (पश्चिम) ३. किसी प्रकार का शुभ मुहर्त। उदा०—सकल दोख विवरजित साहौ।—प्रिथीराज। |
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साहाय्य :
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पुं० [सं०] सहायता। मदद। |
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साहि :
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पुं० [फा० शाह] १. शाह या बादशाह। २. मालिक। स्वामी। ३. धनी। महाजन। साहू। ३. मुसलमान फकीरों की उपाधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहित्य :
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पुं० [सं०] १. ‘सहित’ या साथ होने की अवस्था या भाव। एक साथ होना, रहना या मिलना। २. वे सभी वस्तुएँ जिनका किसी कार्य के संपादन के लिए प्रयुक्त होता है। आवश्यक सामग्री। जैसा—पूजा का साहित्य=अक्षत, जल, फूल-माला, गंध-द्रव्य आदि। ३. किसी भाषा अथवा देश के उन सभी (गद्य और पद्य) ग्रंथो, लेखों आदि का समूह या सम्मिलित राशि, जिसमें स्थायी, उच्च और गूढ विषयों का सुन्दर रूप से व्यवस्थित विवेचन हुआ हो। (लिटरेचर) विशेष-वाङमय और साहित्य में मुख्य अंतर यह है कि वाङमय के अंतर्गत जो ज्ञान राशि का वह सारा संचित भंडार आता है जो मनुष्य को नवीन दृष्टि देता और उसे जीवन संबंधी सत्यों का परिज्ञान मात्र कराता है। परंतु साहित्य उक्त समस्त भंडार का वह विशिष्ट अंश है जो मनुष्य को ऐसी अंतर्दृष्टि देता है जिसमें कलाकार किसी प्रकार की कला सृष्टि करके आत्मोपलब्धि करता है, और रसिक लोग उस कला का आस्वादन करके लोकोत्तर आनंद का अनुभव करते हैं। वे सभी लेख, ग्रंथ आदि जिनका सौंदर्य गुण, रूप या भावुकतापूर्ण प्रभावों के कारण समाज में आदर होता है। ५. किसी विषय, कवि या लेखक से संबंध रखने वाले सभी ग्रंथों और लेखों आदि का समूह। जैसा—वैज्ञानिक साहित्य, तुलसी साहित्य। ६. किसी विषय या वस्तु से संबंध रखनेवाली कभी बातों का विस्तृत विवरण जो प्रायः उसके विज्ञापन के रूप में बाँटता है। जैसे—किसी बडे ग्रंथ, संस्था, यंत्र आदि का साहित्य। (लिटरेचर) ७. गद्य और पद्य की शैली और लेखों तथा काव्यों के गुण-दोष, भेद-प्रभेद, सौंदर्य अथवा नायिका-भेद और अलंकार आदि से संबंध रखनेवाले ग्रंथो का समूह। |
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साहित्य शास्त्र :
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पु० [सं० मध्यम० स०] १. वह विद्या या शास्त्र जिसमें रचनाओं के साहित्य पक्ष तथा स्वरूप पर शास्त्रीय ढंग से विचार किया जाता है। २. काव्य-शास्त्र। ३. विशेषत—प्राचीन काव्य शास्त्र जिसमें रसों, अलंकारों रीतियों आदि पर विचार किया जाता था। |
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साहित्यिक :
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वि० [सं० साहित्य] १. साहित्य (विशेषतः साहित्यिक कृतियों) से संबंध रखनेवाला अथवा उसके अनुरूप होनेवाला। जैसा—साहित्यिक रचना। २. जो साहित्य का ज्ञाता या पारखी हो अथवा साहित्य की रचना करना ही जिसका पेशा हो। जैसा—साहित्यिक व्यक्ति, साहित्यिक संस्था। |
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साहित्यिक चोरी :
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स्त्री० [सं०+हिं] किसी की साहित्यिक कृति चुराकर (कविता, लेख आदि) उसको अपनी मौलिक कृति के रूप में लोगों के सामने उपस्थित करना। (प्लेजिअरीज़्म)। |
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साहिनी :
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पुं०=साहनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहिब :
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पुं०=साहब।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहिबी :
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स्त्री०=साहबी। |
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साहियाँ :
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पुं०=साँई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहिर :
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पुं० [अ०] [भाव साहिरी] जादूगर। |
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साहिल :
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पुं० [अ०] १. किनारा। तट। २. विशेषतः समुद्र-तट। |
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साहिली :
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स्त्री० [अ० साहिल=समुद्र-तट] १. काले रंग का एक पक्षी जिसकी लंबाई एक बालिश्त से कुछ अधिक होती है। २. बुलबुल-चश्म। वि० १. साहिल या तट से संबंध रखने वाला। २. साहिल पर रहने या होनेवाला। |
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साही :
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स्त्री० [सं० शल्यकी] एक प्रकार का जन्तु जिसके सारे शरीर पर लंबे लंबे खडे काँटे होते हैं। सेई। स्त्री० [फा० शाही] एक प्रकार की पुरानी चाल की तलवार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहु :
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पुं०=साह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहुरड़ा :
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पुं० [पं० सौहरा] ससुराल। उदा०—पेवकड़े दिन भारी हैं, साहुरड़े जाणा।—कबीर। |
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साहुल :
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पुं० [फा० शाकूल] १. समुद्र की गहराई नापने का एक उपकरण जिसमें एक लंबी डोरी के एक सिरे पर सीसे का लट्टू लगा रहता है। २. वास्तु में, उक्त आकार-प्रकार वह उपकरण जिसमें दीवारें आदि बनाने के समय उनकी सीध नापते हैं। (प्लम्मेट) पुं० [?] शोर-गुल। होहल्ला। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहू :
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पुं०=साह। |
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साहूकार :
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पुं० [हिं० साहु+सं० कार (प्रत्य०)[भाव० साहूकारी] १. वह व्यक्ति जिसके पास यथेष्ट संपत्ति हो। बड़ा महाजन। २. धनाढ्य व्यापारी। कोठीवाला। |
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साहूकारा :
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पुं० [हिं० साहूकार+आ (प्रत्य०)] १. साहूकारों का कार्य, पद या व्यवसाय। महाजनी। रुपयों का लेन-देन। २. वह बाजार जिसमें मुख्य रूप से रुपयों का लेन-देन होता है। वि० १. साहूकारों का। २. साहूकारों का-सा |
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साहूकारी :
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स्त्री० [हिं० साहूकार+ई (प्रत्य०)] साहूकार होने की अवस्था या भाव। |
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साहूत :
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पुं० [अ० नासूत का अनु०] कुछ मुसलमान विशेषतः सूफी फकीरों के अनुसार ऊपर के नौ लोकों में से सातवाँ लोक। |
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साहेब :
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पुं०=साहब।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साहैं :
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अव्य०=सामुहें (सामने)। स्त्री० [हिं० बाँह] भुज-दंड।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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