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शब्द का अर्थ

सिस  : पुं०=शिशु। स्त्री०=सिसक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सिस-बोनी  : स्त्री० [हिं० शीशम+बोना] वह स्थान जहाँ शीशम के बहुत से पेड़ लगाये गए हों अथवा हों। (पूरब)
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सिसक  : स्त्री० [हिं० सिसकता] १. सिसकने की क्रिया या भाव। २. सिसकने से होने वाला शब्द।
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सिसकना  : अ० [अनु० सी-सी] १. इस प्रकार धीरे-धीरे रोना कि नाक और मुँह से सी-सी ध्वनि निकलती रहे। विशेष-रोने में मुँह खुला रहता है और गले से आवाज भी निकलती है। सिसकते समय प्रायः मुँह बंद रहता है और गले से आवाज धीमी हो जाती है। २. हिचकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसकारना  : अ० [अनु० सी-सी+हिं० करना] १. जीभ दबाते हुए वायु मुँह से इस प्रकार छोड़ना जिसमें सीटी का सा सी-सी शब्द होता है। जैसे-किसी को बुलाने या कुत्ते को किसी पर झपटाने के लिए सिसकारना। संयो० क्रि०—देना। २. सीत्कार करना।
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सिसकारी  : स्त्री० [हिं० सिसकारना] १. सिसरकारने की क्रिया, भाव या शब्द। जीभ दबाते हुए मुँह से वायु छोड़ने का सीटी का सा शब्द। २. दे० ‘सीत्कार’। क्रि० प्र०—देना।
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सिसकी  : स्त्री० [हिं० सिसकना] १. सिसकने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—भरना।—लेना। २. दे० ‘सिसकारी’।
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सिसहर  : पुं०=शशिधर। (चंद्रमा)।
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सिसियाँद  : स्त्री० [?+गंध] मछली क- सी गंध। बिसायँध।
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सिसिर  : पुं०=शिशिर (जाड़ा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसु  : पुं०=शिशु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसुता  : स्त्री०=शिशुता (बचपन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसुपाल  : पुं०=शिशुपाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसुमार  : शिशुमार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सिसृक्षा  : स्त्री० [सं०√सृज् (बनना)+सन्-द्वित्व-अ-टाप्] रचने या निर्माण करने की इच्छा।
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सिसृक्षु  : वि० [स०√सृज (बनाना)+सन्-द्वित्व-उ] सृष्टि करने की इच्छा रखने वाला। रचना या इच्छुक।
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सिसोदिया  : पुं० [सिसोद (स्थान)] गहलौत राजपूतों की एक प्रतिष्ठित शाखा, जिसकी प्राचीन राजधानी चित्तौड़ में और फिर आधुनिक उदयपुर में थी।
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सिसौदिया  : पुं०=सिसोदिया।
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सिस्न  : पुं०=शिश्न (पुरुष का लिंग)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिस्य  : पुं०=शिष्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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