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शब्द का अर्थ

सुस  : स्त्री०=सुसा।
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सुसंकट  : वि० [सं० प्रा० स०] १. दृढ़तापूर्वक बंद किया हुआ। २. जिसकी व्याख्या करना कठिन हो। पुं० १. कठिन काम। २. कठिनता। दिक्कत।
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सुसकना  : अ०=सिसकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसकल्यो  : पुं० [सं० शश] खरगोश। खरहा। शशा। (डिं०)
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सुसका  : पुं० [अनु०] हुक्का। (सुनार)
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सुसंघ  : वि० [सं० ब० स०] वचन का सच्चा। बात का पक्का।
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सुसज्जित  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] १. भली—भाँति सजा या सजाया हुआ। भली—भाँति श्रृंगार किया हुआ। शोभायमान्। २. तैयार। लैस।
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सुसताना  : अ० [फा० सुस्त+आना (प्रत्य०)] सुस्ताना।
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सुसती  : स्त्री०=सुस्ती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसत्त्व  : वि० [सं० ब० स०] १. दृढ़। पक्का। २. वीर। बहादुर।
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सुसत्या  : स्त्री० [सं० ब० स०] जनक की एक पत्नी। (पुराण)
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सुसंधवी  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] सिंध देश की अच्छी घोड़ी।
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सुसना  : पुं० [?] एक प्रकार का साम।
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सुसमन  : स्त्री०=सुषुम्ना (नाड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसमय  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. सुन्दर समय। अच्छा वक्त। २. वे दिन जिनमें अकाल न हो। सुकाल। सुभिक्ष। ३. ऐसा समय जब सब प्रकार की उन्नति और कल्याण होता हो।
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सुसमा  : स्त्री० [सं० उष्मा] अग्नि। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सुसमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =सुसमय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसर  : पुं०=ससुर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसरण  : पुं० [सं०] शिव का एक नाम।
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सुसरा  : पुं०=ससुर। (उपेक्षासूचक)
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सुसरार  : स्त्री०=ससुराल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसराल  : स्त्री०=ससुराल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसरी  : स्त्री० [?] अनाजों में लगनेवाला एक प्रकार का लाल रंग का छोटा कीड़ा। (पश्चिम)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० १.=ससुरी। २. सुरसरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसह  : वि० [सं० प्रा० स०] जो सहज में सहन किया जा सके। पुं० शिव का एक नाम।
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सुसंहत  : वि० [सं० प्रा० स०] [भाव० सुसंहति] जो अच्छी तरह या विशिष्ट रूप से संहत हो। खूब अच्छी तरह गठा हुआ।
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सुसा  : स्त्री० [सं० स्वसृ] बहन। भगिनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] एक प्रकार का पक्षी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=शश (खरगोश)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसाइटी  : स्त्री०=सोसाइटी (समाज)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसाना  : अ० [सं० श्वसन] सिसकियाँ भरना। सिसकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसार  : पुं० [सं० ब० स०] जिसका सार उत्तम हो। तत्त्वपूर्ण। पुं० अच्छा सार या तत्त्व। २. नीलम। ३. लाल खैर।
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सुसारवान् (वत्)  : वि० [सं० सुसार+मतुप्—म व नुम्–दीर्द्य] सुसार। (दे० ) पुं० स्फटिक।
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सुसिद्ध  : वि० [सं० प्रा० स०, ब० स०] [भाव० सुसिद्धि] १. अच्छी तरह पका या पकाया हुआ (खाद्य पदार्थ)। २. (व्यक्ति) जिसे अच्छी सिद्धि प्राप्त हो।
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सुसिद्धि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] साहित्य में, एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें एक व्यक्ति के प्रयत्न करने पर दूसरे व्यक्ति को उसके फल प्राप्त करने का उल्लेख होता है।
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सुसीतलताई  : स्त्री० =सुशीतलता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसीता  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] सेवती। शतपत्री।
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सुसीम  : वि० [सं० सुषिम] शीतल। ठंढा। (डिं०)
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सुसुकना  : अ०=सिसकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसुड़ी़  : स्त्री० =सुसरी (कीड़ा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसुपि  : स्त्री० =सुषुप्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसुम  : वि० [सं० सुषुम] सुषुमापूर्ण। सुन्दर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० =सूक्ष्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसूक्ष्म  : वि० [सं० प्रा० स०] अत्यंत सूक्ष्म। बहुत अधिक सूक्ष्म। बहुत ही छोटा। पुं० परमाणु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसेन  : पुं०=सुषेन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसेव्य  : वि० [सं० प्रा० स०] १. जिसकी अच्छी तरह सेवा की जानी चाहिए। २. जिसका अनुसरण में सहज किया जा सके।
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सुसो  : पुं० [सं० शश] खरगोश। खरहा। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुसौभग  : पुं० [सं० प्रा० स०] पति—पत्नी संबंधी सुख। दाम्पत्य सुख।
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सुस्त  : वि० [फा०] [भाव० सुस्ती] १. (जीव) जो भली—भाँति और मन लगाकर काम न करता हो। ‘उद्योगी’ का विपर्याय। २. फलतः स्वभाव से अकर्मण्य तथा मन्द गति से काम करनेवाला। ३. चिंता, रोग आदि के कारण अथवा निराश होने या उदास रहने के कारण अस्वस्थ या शिथिल। ४. अस्वस्थ। बीमार। (लश०) ५. जिसके शरीर में बाल न हो। दुर्बल। कमजोर। ६. चिंता, परिश्रम, रोग आदि के कारण जो मन्द या शिथिल हो गया हो। ७. जिसका उत्साह या तेज मंद पड़ गया हो। जैसे–मेरे रुपये माँगने पर वह सुस्त हो गया। ८. जिसकी तीव्रता या प्रबलता कम हो गई हो। जिसकी गति या वेग मंद हो गया हो। जैसे–यह घड़ी कुछ सुस्त है। ९. जिसे कोई काम करने या कोई बात समझने में आवश्यक या उचित से अधिक समय लगता हो। जैसे–इधर की गाड़ियाँ भी बहुत सुस्त हैं। क्रि० वि० सुस्ती से। मंद गति से । जैसे—गाड़ी बहुत सुस्त चल रही है।
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सुस्त—पाँव  : पुं० [फा० सुस्त+हिं० पाँव] एक प्रकार का चतुष्पाद जन्तु जो प्रायः वृक्षों की शाखा में लटका रहता और बहुत कम तथा बहुत मंद गति से चलता है। (स्लॉफ़)
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सुस्त—रीछ  : पुं० [फा० सुस्त+हिं० रीछ] एक प्रकार की पहाड़ी रीछ।
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सुस्तनी  : वि० स्त्री० =सुस्तना।
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सुस्ताई  : स्त्री० =सुस्ती। उदा०–पंथी कहाँ, कहाँ सुस्ताई।–जायसी।
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सुस्ताना  : अ० [फा़० सुस्त+हिं० आना (प्रत्य०)] अधिक श्रम करने पर तथा थकावट मिटाने के उद्देश्य से थोड़ी देर के लिए दम लेना या विश्राम करना।
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सुस्ती  : स्त्री० [फा़० सुस्त] १. सुस्त होने की अवस्था या भाव। शिथिलता। २. आलस्य, चिंता, रोग आदि के कारण उत्पन्न होनेवाली वह अवस्था जिसमें शरीर कुछ—कुछ शिथिल होता है तथा मन में कुछ करने के प्रति अरुचि होती है। ३. पुंस्त्व का अभाव या कमी। ४. बीमार होने की अवस्था। (लश०)
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सुस्तैन  : पुं०=स्वस्त्ययन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुस्थ  : वि० [सं० सु√स्था (ठहरना)+क] १. ठीक तरह से स्थित होना। २. भला। चंगा। नीरोग। स्वस्थ। तंदुरुस्त। ३. सब प्रकार से सुखी। ४. मनोहर। सुन्दर।
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सुस्थ—चित्त  : वि० [सं० ब० स०] जिसका चित्त सुखी या प्रसन्न हो।
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सुस्थता  : स्त्री० [सं० सुस्थ+तल्–टाप्] सुस्थ होने की अवस्था या भाव।
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सुस्थत्व  : पुं०=सुस्थता।
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सुस्थल  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. अच्छा स्थान। २. एक प्राचीन जनपद।
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सुस्थावती  : स्त्री० [सं० सुस्था+मतुप्–म—व—ङीप्] संगीत में एक प्रकार की रागिनी।
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सुस्थित  : वि० [सं० प्रा० स०] [स्त्री० सुस्थिता, भाव० सुस्थिति] १. उत्तम रूप से या भली—भाँति स्थित। २. दृढ़। पक्का। मजबूत। ३. स्वस्थ। तन्दुरुस्त। ४. भाग्यवान्। पुं० १. ऐसा मकान जिसके चारों ओर छज्जे हों। २. एक प्रकार का रोग जिसमें घोड़े अपने को निहारते और हिनहिनाते रहते हैं।
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सुस्थितत्व  : पुं० [सं० सुस्थित+त्व] सुस्थित होने की अवस्था या भाव।
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सुस्थिति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. अच्छी या उत्तम स्थिति। सुखपूर्ण अवस्था। २. कल्याण। ३. मंगल। ४. प्रसन्नता। हर्ष। ५. अच्छा स्वास्थ्य।
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सुस्थिर  : वि० [सं० प्रा० स०] [स्त्री० सुस्थिरा] १. जो अच्छी तरह स्थिर या शांत हो। २. जो अच्छी तरह या दृढ़तापूर्वक जमाया, बैठाया या लगाया गया हो।
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सुस्थिरा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] रक्तवाहिनी। नस। लाल रंग।
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सुस्ना  : स्त्री० [सं० ब० स०] खेसारी। त्रिपुट।
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सुस्नात  : वि० [सं० प्रा० स०] १. जिसने यज्ञ के उपरान्त स्नान किया हो। २. जो नहा—धोकर पवित्र हो गया हो।
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सुस्मित  : पुं० [सं० ष० त०] [स्त्री० सुस्मिता] मधुर हँसी हँसनेवाला।
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सुस्वध  : पुं० [सं० ब० स०] पितरों की एक श्रेणी या वर्ग।
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सुस्वधा  : स्त्री० [सं०] १. कल्याण। मंगल। २. सौभाग्य।
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सुस्वन  : वि० [सं० ब० स०] १. उत्तम ध्वनि या अच्छा शब्द करनेवाला। २. बहुत ऊँचा। ३. मनोहर। सुन्दर। पुं० शंख।
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सुस्वप्न  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. शुभ स्वप्न। अच्छा सपना। २. शिव का एक नाम।
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सुस्वर  : वि० [सं० प्रा० स०] [स्त्री० सुस्वरा] [भाव० सुस्वरता] १. मधुर। २. सुरीला। ३. उच्च या घोर। पुं० १. मधुर, सुरीला या उच्च स्वर। २. शंख। ३. वह कर्म जिससे मनुष्य का स्वर मधुर, सुरीला या उच्च होता है। (जैन)
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सुस्वरता  : स्त्री० [सं०] सुस्वर होने की अवस्था, गुण या भाव।
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सुस्वादु  : वि० [सं० ब० स०] अत्यन्त स्वादयुक्त। बहुत स्वादिष्ट। बहुत जायकेदार।
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सुस्वाप  : पुं० [सं० प्रा० स०] प्रगाढ़ निद्रा। गहरी नींद।
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