शब्द का अर्थ
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सून :
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वि० [सं०] १. प्रशव किया हुआ। २. उत्पन्न। जात। ३. खिलाहुआ। विकसित। (फूल) पुं० १. जनन। प्रसव। २. पुत्र। बेटा। ३. प्रसून। फूल। ४. फल। वि० [सं० शून्य] १. रहित। हीन। २. निर्जन। सूना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सून-नायक :
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पुं० [सं०] कामदेव। |
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सून-शर :
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पुं० [सं०] कामदेव। |
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सूनरी :
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स्त्री० [सं० सु+नर] सुखी स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सुंदरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूनसान :
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वि०=सुनसान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूना :
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वि० [सं० शून्य] [स्त्री० सूनी] १. (स्थान) जहाँ लोगों की चहल—पहल या आना—जाना बिलकुल न हो। जनहीन। निर्जन। जैसे–सूना घर। २. (पदार्थ या रचना) जो किसी आवश्यक, उपयुक्त या शोभन तत्त्व अथवा वस्तु के आभाव के कारण अप्रिय जान पड़े या खटके। जैसे–सीता बिना रसोइयाँ सूनी।–गीत। मुहा०–सूना लगना या सूना—सूना लगना= किसी वस्तु या व्यक्ति के अभाव के कारण निर्जीव मालूम होना। उदास मालूम होना। स्त्री० [सं० सून—टाप्] १. पुत्री। बेटी। २. वध। हत्या। ३. धर्मशास्त्र के अनुसार घर—गृहस्थी की ऐसी जगह जहाँ अनजान में प्रायः छोटे—छोटे जावों की हत्या होती रहती है। जैसे–अनाज कूटने—पीसने की जगह, रसोई आदि। दे० ‘पंच—सूना’। ४. वह स्थान जहाँ मांस के लिए पशुओं की हत्या की जाती हो। कसाई—खाना। ५. खाने के लिए मांस बेचने का काम। ६. हाथी के अंकुश का दस्ता। पुं० एकांत या निर्जन स्थान। |
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सूना-दोष :
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पुं० [सं०] वह दोष जो अनजान में गृहस्थी के कामों में होनेवाली जीव—हत्या के कारण होता है। दे० ‘पंच—सूना’। |
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सूनापन :
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पुं० [हिं० सूना+पन (प्रत्य०)] सूना होने की अवस्था या भाव। |
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सूनिक :
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पुं० [सं०] जीव—हत्या करनेवाला। पुं० १. कसाई। २. शिकारी। |
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सूनी :
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पुं० [सं० सूनिन्] मांस बेचनेवाला। बूचड़। |
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सूनु :
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पुं० [सं०] १. पुत्र। बेटा। २. औलाद। सन्तान। ३. छोटा। भाई। अनुज। ४. दौहित्र। नाती। ५. सूर्य। ६. आक-मदार। ७. वह जो यज्ञों में सोम का रस निकालता था। |
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सूनू :
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स्त्री० [सं०] पुत्री। बेटी। |
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सूनृत :
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पुं० [सं०] १. सत्य और प्रिय भाषण (जो जैन धर्मानुसार सदाचार के पाँच गुणों में से एक है।) २. आनन्द। प्रसन्नता। वि० १. प्रिय और सत्य। २. अनुकूल। ३. दयालु। |
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सून्मद :
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वि०=सून्माद। |
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सून्माद :
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वि० [सं०] जिसे उन्माद रोग हुआ हो। पागल। |
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