शब्द का अर्थ
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स्मर :
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पुं० [सं०] १. कामदेव। मदन। २. याद। स्मृति। ३. संगीत में शुद्ध राग का एक भेद। |
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स्मर-कथा :
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स्त्री० [सं०] श्रृंगार रस की बातें। |
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स्मर-कार :
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वि० [सं०] कामवासना उद्दीप्त करनेवाला। |
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स्मर-कूप :
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पुं० [सं०] भग। योनि। |
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स्मर-गृह :
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पुं० [सं०] भग। योनि। |
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स्मर-चक्र :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का रतिबंध। |
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स्मर-चंड :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का रतिबंध। |
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स्मर-दशा :
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स्त्री० [सं०] साहित्य में वह दशा जो प्रेमी और प्रेमिका के न मिलने पर उसके विरह में होती है। विरह की अवस्था। |
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स्मर-दहन :
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पुं० [सं०] १. कामदेव को भस्म करनेवाले शिव। २. शिव के द्वारा कामदेव के भस्म किये जाने की घटना। |
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स्मर-दीपन :
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वि० [सं०] जिससे काम उत्तेजित हो। कामोत्तेजक। |
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स्मर-ध्वज :
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पुं० [सं०] १. पुरुष का लिंग। २. एक प्रकार का बाजा। |
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स्मर-प्रिया :
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स्त्री० [सं०] कामदेव की प्रिया, रति। |
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स्मर-मंदिर :
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पुं० [सं०] भग। योनि। |
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स्मर-यम :
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वि० [सं०] १. प्रेम या वासना से युक्त। २. प्रेम या वासना से उद्भूत। |
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स्मर-वल्लभ :
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पुं० [सं०] अनिरुद्ध का एक नाम। |
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स्मर-वीथिका :
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स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी। |
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स्मर-शासन :
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पुं० [सं०] कामदेव। |
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स्मर-शास्त्र :
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पुं० [सं०] कामशास्त्र। |
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स्मर-स्तंभ :
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पुं० [सं०] पुरुषेन्द्रिय। |
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स्मर-हर :
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पुं० [सं०] शिव। महादेव। |
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स्मरण :
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पुं० [सं०] [वि० स्मरणीय, भू० कृ० स्मृत] १. किसी ऐसी देखी-सुनी या बीती हुई बात का फिर से याद आना या ध्यान होना जो बीच में भूल गई हो, या ध्यान में न रह गई हो। कोई बात फिर से याद आने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–आना।–करना।–दिलाना।–रखना।–रहना।–होना। ३. भक्ति के नौ प्रकारों में से एक, जिसमें उपासक अपने इष्टदेव को बराबर याद करता रहता या मन में उसका ध्यान रखता है। ३. साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें पहले की देखी हुई कोई चीज या सुनी हुई कोई बात उसी प्रकार की कोई चीज देखने या बात सुनने पर फिर से याद आने या मन में उसका ध्यान आने का उल्लेख होता है। यथा–मैं पाता हूँ मधुर ध्वनि में गूँजने में खगों के। मीठी तानें परम प्रिय की मोहिनी वंशिका की।–अयोध्याप्रसाद उपाध्याय। विशेष–इस अलंकार को कुछ लोगों ने स्मृति भी कहा है। |
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स्मरण :
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पुं० [सं०] स्मरण कराने की क्रिया या भाव। याद दिलाना। |
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स्मरण-पत्र :
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पुं० [सं०] कोई बात स्मरण करने के लिए लिखा जानेवाला पत्र। (रिमाइंडर) |
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स्मरण-शक्ति :
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स्त्री० [सं०] वह मानसिक शक्ति जो अपने सामने होनेवाली घटनाओं और सुनी जानेवाली बातों को ग्रहण करके मन में रक्षित रखती हैं और आवश्यकता पड़ने, प्रसंग आने पर फिर हमारे मन में स्पष्ट कर देती है। याद रखने की शक्ति। याददाश्त। (मेमरी) |
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स्मरणाशक्ति :
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स्त्री० [सं०] भगवान् के स्मरण में होनेवाली आसक्ति जिसके कारण भक्त दिन-रात भगवान् या इष्टदेव का स्मरण करता है। उदा०–(यह भक्ति) एक रूप ही होकर गुणमहात्मासक्ति, रूपासक्ति, पूजासक्ति, स्मरणसक्ति, दासासक्ति, संख्यासक्ति, कांतासक्ति, वात्सल्यासक्ति, आत्मनेवेदनासक्ति, तन्मयासक्ति, और परमविरहासक्ति रूप से एकादश प्रकार की होती है।–हरिशचन्द्र। |
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स्मरणी :
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स्त्री० [सं०] सुमिरनी। |
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स्मरणीय :
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वि० [सं०] (घटना या बात) जो स्मरण रखी जाने के योग्य हो। याद रखने लायक। जैसे–यह दृश्य भी सदा स्मरणीय रहेगा। |
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स्मरता :
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स्त्री० [सं०] १. स्मर या कामदेव का भाव या धर्म। २. स्मरण रखने की शक्ति। स्मृति। |
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स्मरना :
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पुं० [सं० स्मरण+ना (प्रत्य०)] १. स्मरण करना। याद करना। २. सुमिरना। |
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स्मरवती :
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स्त्री० [सं०] स्त्री जिससे प्यार किया जा रहा हो। |
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स्मरसख :
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वि० [सं०] जिससे काम की उत्तेजना हो। कामोद्दीदीक। पुं० १. चन्द्रमा। २. वसंत। |
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स्मरांकुश :
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पुं० [सं०] पुरुष की लिंगेद्रिय। लिंग। |
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स्मरागार :
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पुं० [सं०] भग। योनि। |
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स्मरारि :
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पुं० [सं०] कामदेव के शत्रु, महादेव। |
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स्मरासव :
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पुं० [सं०] १. ताड़ में से निकलनेवाला ताडी नामक मादक द्रव्य। २. थूक। लाला। |
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स्मर्ण :
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पुं०=स्मरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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स्मर्तव्य :
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वि० [सं०]=स्मरणीय। |
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स्मर्ता (तृ) :
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वि० [सं०] स्मरण करने या याद रखनेवाला। |
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स्मर्य :
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वि० [सं०]=स्मरणीय। |
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