लेखक:
मिथिलेश्वर
जन्म : 31 दिसम्बर 1950।
जन्म-स्थान : बिहार के भोजपुर जिले के बैसाडीह नामक गाँव में। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी) लेखन : 1965 के छात्र-जीवन से ही प्रारम्भ। अब तक सौ से अधिक कहानियाँ, दो उपन्यास, दर्जनों समीक्षात्मक आलेख, संस्मरण, व्यंग्य, निबन्ध और टिप्पणियाँ प्रायः सभी स्तरीय एवं प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित। अनेक कहानियाँ विभिन्न देशी तथा विदेशी भाषाओं में अनूदित। पुरस्कार/सम्मान : ‘बाबूजी’ कहानी-संग्रह के लिए म.प्र. साहित्य परिषद् द्वारा वर्ष 1976 के ‘अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार’, ‘बन्द रास्तों के बीच’ कहानी-संग्रह के लिए सोवियत रूस द्वारा वर्ष 1979 के ‘सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार’, ‘मेघना का निर्णय’ कहानी-संग्रह के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 1981-82 के ‘यशपाल पुरस्कार’ तथा निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन द्वारा राज्य के सर्वोत्कृष्ट हिन्दी लेखन के लिए वर्ष 1983 के ‘अमृत पुरस्कार’ से पुरस्कृत एवं सम्मानित। सम्प्रति : प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, ए.डी. जैन कॉलेज, आरा (बिहार)। कृतियाँ : उपन्यास : झुनिया (1980), युद्धस्थल (1981), प्रेम न बाड़ी ऊपजै (1995), यह अंत नहीं (2000), सुरंग में सुबह, एक थी मुनिला। कहानी-संग्रह : बाबूजी (1976), बन्द रास्तों के बीच (1978), दूसरा महाभारत (1979), मेघना का निर्णय (1980), तिरिया जनम (1982), हरिहर काका (1983), एक में अनेक (1987), एक थे प्रो. बी. लाल (1993), भोर होने से पहले (1994) : (भोर होने से पहले, वैतरणी भौजी, अध्यापन, आनन्द मोहन वर्मा बेहोश हैं, रास्ते, कीर्तनिया बाबा, सो दुविधा पारस नहिं जानत, तीन यार, एक और मृत्युंजय, डॉ. सेन का सपना, गंगिया फुआ, सिंबोंगा की वापसी, नये दम्पती, एक गाँव की अन्तःकथा, एक रात एकाएक।)। चल खुसरो घर आपने (2000), जमुनी (2001)। बालोपयोगी कथा-पुस्तक : उस रात की बात (1993)।, एक था पंकज। निबंध-संग्रह : संभावना अब भी है। संपादन : ‘मित्र’ नामक एक साहित्यिक पत्रिका का संपादन। |
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