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लेखक:

रघुवंश

जन्म :- 30 जून, 1921 गोपामऊ, हरदोई, उत्तर प्रदेश।

 

रघुवंश जी का जन्म 30 जून, 1921 को उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई के गोपामऊ कस्बे में श्रीराम सहाय के परिवार में हुआ। दोनों हाथों से अपंग होने के कारण आठ वर्ष की आयु तक आप केवल पढ़ना ही सीख सके। फिर एक दिन अचानक पैर से हाथ पकड़कर लिखने लगे और विद्यालय में अध्ययन-कार्य का क्रम प्रारम्भ हो गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी भाषा में एम.ए., डी.फिल की उपाधि प्राप्त की।

आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में ही प्रवक्ता, रीडर, प्रोफेसर (अध्यक्ष) रहकर हिन्दी भाषा, साहित्य के अध्ययन-अध्यापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। सन् 1981 में सेवा-निवृत्ति के उपरान्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध-परियोजना के अन्तर्गत शिमला के उच्च अध्ययन संस्थान में ‘मानव संस्कृति का रचनात्मक आयाम’ विषय पर शोध-कार्य किया।

डॉ. रघुवंश ने साहित्य की सार्थकता के सम्बन्ध में अपने मौलिक विचार प्रकट किए, जो यहाँ उद्धरणीय हैं: ‘‘युग विशेष का श्रेष्ठ साहित्य मूल्यों का स्थिरीकरण नहीं होता है, वह मूल्यों का सर्जन करता है। जब यह मूल्य: ष्टि सर्जनात्मक होने के बजाय परम्परित हो जाती है, लेखन की रचना-प्रक्रिया से भी असम्बद्ध हो जाती है। तब उसका विषय के रूप में इस्तेमाल भर हो सकता है। प्रत्येक युग का साहित्य अपनी सर्जनाशीलता के इस चरण में रचना-कर्म के बजाय किसी सिद्धान्त, विचारधारा, सम्प्रदाय या दल का प्रचारक रह जाता है अथवा यदि इनसे मुक्त भी हुआ तो किसी साहित्य, रूढ़ि, परम्परा या रीति के अनुकरण में और उसमें तरह-तरह के चमत्कार उत्पन्न करने में अपनी सार्थकता खोजने लगता है।’’

कृतियाँ :- रचनात्मक लेखन से सम्बन्धित रचनाएँ: ‘छायातप’, ‘तन्तुजाल’, ‘अर्थहीन’, ‘वह अलग व्यक्ति’, ‘हरी घाटी’, ‘मानव पुत्र ईसा’ (ईसा की जीवनी), ‘जेल और स्वतंत्रता’, ‘प्रकृति और काव्य’ (हिन्दी), ‘प्रकृति और काव्य’ (संस्कृत), ‘नाट्य-कला’, ‘साहित्य का नया परिप्रेक्ष्य’, ‘सर्जनशीलता का आधुनिक सन्दर्भ’, ‘आधुनिक परिस्थिति और हम लोग’, ‘मानवीय संस्कृति का रचनात्मक आयाम’, ‘कबीर: एक नई : ष्टि’ तथा ‘जायसी: एक नई : ष्टि’।

सम्पादन: हिन्दी साहित्य कोश के दो भागों का सम्पादन, शोध-पत्रिकाओं का सम्पादन ‘आलोचना’, ‘आलोचना समीक्षा’, ‘क ख ग’ तथा ‘अनुशीलन’।

सम्मान: उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान ने वर्ष 1992 में ‘साहित्य-भूषण सम्मान’ लोहिया से समलंकृत किया। के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा प्रायोजित ‘शंकर पुरस्कार’ मानवीय संस्कृति का रचनात्मक आयाम पर प्रदत्त।

कबीर एक नयी दृष्टि

रघुवंश

मूल्य: Rs. 350

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जायसी : एक नई दृष्टि

रघुवंश

मूल्य: Rs. 350

जायसी साहित्य के अध्येताओं के लिए डॉ. रघुवंश की यह पुस्तक अत्यंत महत्तपूर्ण और उपयोगी सिद्ध होगी   आगे...

पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन

रघुवंश

मूल्य: Rs. 600

पुस्तक पश्चिमी सभ्यता की उपलब्धियों को रेखांकित करती है, परन्तु इसके बावजूद मनुष्यता के क्रमिक क्षरण के प्रति भी सजग करती   आगे...

मानवपुत्र ईसा जीवन और दर्शन

रघुवंश

मूल्य: Rs. 300

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यूरोप के इतिहास की प्रभाव शक्तियाँ

रघुवंश

मूल्य: Rs. 600

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हम भीड़ है

रघुवंश

मूल्य: Rs. 650

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