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लेखक:

यशपाल

जन्म - 3 दिसम्बर, 1903 ई., फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब।

निधन - 25 दिसम्बर, 1976।

यशपाल भारतीय स्वातंत्र्य-संघर्ष के सक्रिय साक्षी और हिन्दी के एक बड़े-चौड़े पाटवाले लेखक थे। उन्होंने गद्य की प्रायः सभी विधाओं में लिखा। आज ख़ासतौर से मार्क्सवाद और आमतौर पर विचार मात्र के संकट के इस दौर में यशपाल साहित्य का अवलोकन इस सुखद अनुभूति से भर देता है कि प्रायः साठ वर्ष पूर्व यशपाल के अकूत मात्रा में ऐसा वैचारिक लेखन भी किया था, ज़रूरत समझने पर जिसका उपयोग, संदर्भों की भिन्नता के बावजूद, आज भी किया जा सकता है। वैचारिक लेखन के अलावा यशपाल की कहानियाँ, उपन्यास, आत्मकथा, संस्मरण और अनुवाद-कार्य उल्लेखनीय हैं।

यों यशपाल की ख्याति का कारण उनका कथाकार व्यक्तित्व ही है। उनकी पचास से भी अधिक प्रकाशित कृतियों में 17 कहानी-संग्रह और 11 उपन्यास शामिल हैं। यशपाल अपने उपन्यासों में सामाजिक यथार्थ को अंकित करने के आग्रह के साथ आए थे। कथानक के ह्रास और प्रयोगशीलता को आधार बनाकर समाज की व्यापक और जटिल वास्तविकता का अंकन नहीं किया जा सकता और न ही सामाजिक संरचना के मूल अंतर्विरोधों की व्याख्या और आलोचना की जा सकती है। कथनाक के ह्रास के उस दौर में उन्होंने उपन्यास में कथानक की वापसी का रचनात्मक उद्यम किया। कथानक के विन्यास और विकास में उन्होंने घटनाओं की विश्वसनीयता और ब्यौरों की लुप्त होती कला को पुनर्जीवित किया। उनके यहाँ पात्रों और उनके विचारों का विकास कथानक के विकास से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

यशपाल के उपन्यासों में दादा कामरेड, देशद्रोही, पार्टी कामरेड, अमिता, दिव्या, मनुष्य के रूप, झूठासच और तेरी मेरी उसकी बात विशेष तौर पर उल्लेखनीय हैं, जिनमें दो खंडों में लिखित झूठासच निर्विवाद रूप से उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है, जो भारत-विभाजन की त्रासदी और पुनर्वास के संघर्ष को महाकाव्यात्मक विस्तार में अंकित करता है।

कृतियाँ -

उपन्यास - झूठा सच : वतन और देश (1958-59 ई.), झूठा सच : देश का भविष्य (1958-59 ई.), मेरी तेरी उसकी बात (1942 ई.), मनुष्य के रूप (1949 ई.), पक्का कदम, देशद्रोही (1943 ई.), दिव्या (1945 ई.), गीता-पार्टी कामरेड (1947 ई.), दादा कामरेड (1941 ई.), अमिता (1956 ई.), जुलैखाँ, बारह घंटे, अप्सरा का शाप (2010 ई.), क्यों फँसें।

कहानी-संग्रह -

पिंजड़े की उड़ान - (मक्रील, नीरस रसिक, हिंसा, समाज सेवा, प्रेम का सार, पहाड़ की स्मृति, पीर का मज़ार, दुखी-दुखी, भावुक, मृत्युञ्जय, शर्त ?, तीसरी चिता, प्रायश्चित, हृदय, परायी, मज़हब, कर्मफल, दर्पण, परलोक, दुख।)

वो दुनिया - (संन्यासी, दो मुँह की बात, बड़े दिन का उपहार, दूरी नाक, मोटरवाली-कोयलेवाली, तूफान का दैत्य, कुत्ते की पूँछ, शिकायत, ‘गुड बाई, दर्दे दिल!’, जहाँ हसद नहीं, नयी दुनिया, वो दुनिया!।)

ज्ञानदान (1944 ई.) - (ज्ञानदान, एक राज्य, गण्डेरी, कुछ समझ न सका, दुख का अधिकार, पराया सुख, 80/100, या सांई सच्चे!, जबरदस्ती, हलाल का टुकड़ा, मनुष्य, बदनाम, अपनी चीज़।)

अभिशप्त (1944 ई.) - ( दास धर्म, अभिशप्त, काला आदमी, समाधि की धूल, रोटी का मोल, छलिया नारी, चार आने, चूक गयी, आदमी का बच्चा, पुलिस की दफा, रिजक, भगवान किसके ?, नमक हलाल, पुनिया की होली, हवाखोर, शम्बूक।)

फूलों का कुर्ता (1949 ई.) - (आतिथ्य, भवानी माता की जय, शिव-पार्वती, खुदा की मदद, प्रतिष्ठा का बोझ, डरपोक कश्मीरी, धर्मरक्षा, जिम्मेवारी।)

तर्क का तूफान (1943 ई.) - (निर्वासिता, अपनी करनी, तर्क का तूफान, मेरी जीत, जन सेवक, उतरा नशा, डायन, सोमा का साहस, होली नहीं खेलता, कानून, जादू के चावल, औरत, भाषा, परदा, राजा, तर्क का फल।)

धर्मयुद्ध (1950 ई.) - (धर्मयुद्ध, मनु की लगाम, विश्वास की बात, जनगण मन अधिनायक जय हे , खतडुआ, मतिराम की बहादुरी, 420, आत्मिक प्रेम, मंगला, डाक्टर।)

भस्मावृत चिनगारी (1946 ई.) - (भस्मावृत चिनगारी, गुलाम की वीरता, महादान, गवाही, वफादारी की सनद, बान हिण्डनबर्ग, भाग्य का चक्र, पुरुष भगवान, देवी का वरदान, इस टोपी को सलाम, सत्य का मूल्य, सआदत, साग, पहाड़ का छल, घोड़ी का हाय।)

तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ! - (कोकला डकैत, हुकूमत का जुनून, चोर बाजारी के दाम, गवाही, तमगे की चोट, मिटठो के आंसू, तीस मिनट, अखबार में नाम, असली चित्र, कम्बलदान, आबरू, गमी में खुशी, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ!।)

उत्तमी की माँ - (उत्तमी की माँ, नमक हराम, पतिव्रता, आत्म-अभियोग, करुणा, भगवान् के पिता के दर्शन, न कहने की बात, भगवान् का खेल, करवा का व्रत, नकली माल, पाप का कीचड़।)

ओ भैरवी - (ओ भैरवी, वर्दी, नकारा, सामन्ती कृपा, देवी की लीला, गौ माता, महाराजा का इलाज, मूर्ख क्रोध, सब की इज्जत, न्याय और दण्ड, मन की पुकार, देखा-सुना आदमी।)

चित्र का शीर्षक (1952 ई.) - (चित्र का शीर्षक, हाय राम! ये बच्चे!!, आदमी या पैसा, प्रधानमंत्री से भेंट, मार का मोल, शहनशाह का न्याय, स्थायी नशा, एक सिगरेट, फूल की चोरी, अनुभव की पुस्तक, पाँव तले की डाल, साहू और चोर, इसी सुराज के लिए।)

उत्तराधिकारी (1951 ई.) - (उत्तराधिकारी, जाब्ते की कार्रवाई, अगर हो जाता, अंग्रेज का घुँघरू, अमर, चन्दन महाशय, कुल-मर्यादा, डिप्टी साहब, जीत की हार।)

सच बोलने की भूल - (सच बोलने की भूल, एक हाथ की उँगलियाँ, आत्मज्ञान, अपमान की लज्जा, होली का मजाक, खुदा का खौफ, नारद परशुराम संवाद, चौरासी लाख जोनि, खुदा और खुदा की लड़ाई, नारी की ना, फलित ज्योतिष, लखनऊ वाले।)

खच्चर और आदमी - (वैष्णवी, मक्खी या मकड़ी, उपदेश, कलाकार की आत्महत्या, जीव दया, चोरी और चोरी, अश्लील, सत्य का द्वन्द्व, खच्चर और आदमी।)

भूख के तीन दिन - (भूख के तीन दिन, शुरफा, समय, दीनता का प्रायश्चित, भली लड़कियाँ, दाग ही दाग, मार्डन, सीख, खूब बचे !, पागल है !, आशीर्वाद।)

लैम्प शेड - (नैतिक बल, सच्ची पूजा, कौन जाने? बिना रोमांस, अपना-अपना एतकाद है, लैम्प शेड।)

निबन्ध - गाँधीवाद की शव परीक्षा (1941 ई.), रामराज्य की कथा, मार्क्सवाद, देखा, सोचा, समझा (1951 ई.) (राजनैतिक निबन्ध), चक्कर क्लब (1942 ई.), बात-बात में बात (1950 ई.), न्याय का संघर्ष (1940 ई.), बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है, जग का मुजरा, (हास्य निबन्ध)।

यात्रा साहित्य - लोहे की दीवार के दोनों ओर, राह बीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप।

विशेष - यशपाल की सम्पूर्ण कहानियाँ-1, यशपाल की सम्पूर्ण कहानियाँ-2, यशपाल की सम्पूर्ण कहानियाँ-3, यशपाल की सम्पूर्ण कहानियाँ-4।

यशपाल की सम्पूर्ण कहानियाँ - भाग 4

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यशपाल की सम्पूर्ण कहानियों का चौथा भाग.....   आगे...

यशपाल के निबंध (1 - 2)

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यशपाल एक व्यक्ति नहीं, आन्दोलन थे और ‘विप्लव’ इस आन्दोलन का उद्घोष।   आगे...

यशपाल रचना संचयन

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इसमें यशपाल के द्वारा लिखे गये पत्रों का संकलन प्रस्तुत किया गया है....

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यशपाल रचनावाली (1-14)

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यशपाल का सम्पूर्ण रचना संसार चौदह भागों में   आगे...

रामराज्य की कथा

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भारत में ब्रिटेन की शासन व्यवस्था एक बोतल के रुप में थी जिसमें शोषण के अधिकार सुरक्षित थे।   आगे...

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लैम्पशेड' कहानी संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं- नैतिक बल, सच्ची पूजा, कौन जाने?, बिना रोमांस, ..अपना-अपना, एतकाद है और लैम्‍पशेड।
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यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक, परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है   आगे...

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