गीता प्रेस, गोरखपुर >> प्रेम में विलक्षण एकता प्रेम में विलक्षण एकताजयदयाल गोयन्दका
|
5 पाठकों को प्रिय 71 पाठक हैं |
प्रेम एक दिव्य भाव है इस विलक्षण भाव के द्वारा भक्तों ने भगवान को वश में किया है। इन तेरह लेखों के माध्यम से महापुरुष ने संसार से विरति और भगवान् से रति होने के लिए सरल,सुबोध भाषा में उपयुक्त साधन करने की प्रेरणा दी है।
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: 10page.css
Filename: books/book_info.php
Line Number: 553
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book