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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

अभावोंको चुनौती दीजिये


मिस हेलन केलर अंधी और गूंगी देवी हैं, जिनके मार्गमें प्रकृतिने नाना अभावोंकी अड़चनें डाली थीं; लेकिन हेलन केलर उनसे न डरीं और न घबरायी, प्रत्युत कठोर संघर्ष किया और अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्तित्व प्राप्त किया। अपने जीवनके बारेमें उन्होंन लिखा है-"I have found life so beautiful." अर्थात् मुझे जीवन सौन्दर्यसे परिपूर्ण मिला है। हेलन केलरका दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिक था। इसीलिये वे अभावोंपर विजय प्राप्त कर सकीं। आपके जीवनमें भी ऐसे ही अभाव हो सकते है, पर आप मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसे इन्हें दूर कर सकते हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है? अभावोंको अड़चनें न मानना, प्रत्युत उन्हें आत्मविकासमें एक चुनौतीके रूपमें स्वीकार करना। अभाव वास्तवमें हमारे व्यक्तित्वकी परीक्षा लेने आते है। हमें चाहिये कि हम इन्हें मार्गमें बाधक नहीं, सहायक समझें। ये एक प्रकारके अस्थायी अंधकार है, जो प्रयत्न करनेपर मानसिक क्षितिजसे दूर हो सकते हैं।

आप जीवनमें यह मानकर चलिये कि आपमें अभावोंसे युद्ध कर उनपर विजय प्राप्त करनेकी क्षमता है। आप अपने-आपको संकेत या सजेशन देकर यह कल्पना किया कीजिये कि धीर-धीरे आप उन संकेतोंको ग्रहण करते जा रहे है। सोनेसे पूर्व या पश्चात् ये संकेत दिये जायँ तो गुप्त मनपर स्थायी प्रभाव डालते हैं।

अपने चरित्रके मजबूत पहलुओं, गुणों, सम्पदाओंको मालूम कीजिये और निरन्तर उन्हें बढ़ाते जाइये। ये सद्रुण परमेश्वरकी ओरसे विशेष रूपसे आपको प्राप्त हुए है। इसी क्षेत्रमें आपको महत्ता प्राप्त करनी चाहिये।

मनुष्यको जब अपने चरित्रकी कोई विशेषता मालूम हो जाती है, तो उसे एक ऐसा मार्ग प्राप्त हो जाता है, जिसके द्वारा वह सरलतासे आगे बढ़ सकता है। विकसित रुचिका ज्ञान मनुष्यको एक ऐसी दिशा प्रदान कर देता है, जो परमेश्वरने जन्मसे ही किसी व्यक्तिको दी है। स्मरण रखिये, यदि आपके व्यक्तित्वमें एक अभाव है, तो उसके साथ कई उत्तम गुण भी है। प्रकृति कमी पूरा करनेके लिये किसी अन्य गुणको और भी चमका डालती है। निश्चय ही आपमें कुछ विशेष गुण भरे पड़े है। सावधानीसे शान्तिपूर्वक उनकी खोज कीजिये और सतत अभ्यासद्वारा उन्हें विकसित कीजिये, अभाव दूर हो जायगा।

अभाव हमें संसारकी वास्तविकताके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलनेका साहस प्रदान करते है। अभाव हमारे परीक्षक है। क्या हम अपने परीक्षकोंसे भयभीत होते रहें? नहीं, उन्हें तो हमें अपनी सफलताओंका पत्थर मानना चाहिये।

हो सकता है कि आप निर्धन हों, विषम परिस्थितियाँ आपको घेरे हुए रहें, शरीरसे पीड़ित हों, मित्रोंसे शून्य हों, लेकिन इससे घबराना नहीं चाहिये। वरं दृढ़ इच्छाशक्तिसे बदलनेका प्रयत्न करना चाहिये। इसीमें मनुष्यकी महत्ता है कि कोई ऐसा क्षेत्र चुनिये, जो आपकी रुचि, प्रतिभा या परिस्थितिके अनुकूल हो। फिर हिम्मत और विश्वासके साथ आगे बढ़िये। अपने अभावकी बात न सोचिये वरं अबाध गतिसे आत्मविश्वास धारण किये बढ़ते चले जाइये। भीरुताकी भावनासे लड़िये। साहस एक अमोघ शास्त्र है जो निरन्तर आगे बढ़नेकी प्रेरणा प्रदान करता है। शक्तिका स्रोत तो मनुष्यके अंदर छिपा हुआ है। उसीको खोज निकालिये।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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