गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
इसका क्या कारण है?
मिस हैवीशामका एक अस्थिर चित्तवाले व्यक्तिसे प्रेम हो गया था। घनिष्ठता बढ़ी और बढ़ते-बढ़ते इस हदतक पहुँची कि एक दिन विवाहके लिये निश्चित किया गया। विवाहकी सब तैयारियों हो चुकीं। दुलहिनने बढ़िया वस्त्र पहने, साज-श्रृंगार किये, लेकिन ऐन समयपर मालूम हुआ कि उसके प्रेमीने किसी दूसरी युवतीसे विवाह कर लिया। इस धोखेका ही मिस हैवीशामको यह धक्का लगा कि वह सदा दुलहिनके ही वस्त्र पहिने रही; मानो अभी विवाहके लिये जा रही है। फिर मिस ऐस्टलाके रूपमें वह अपने प्रति किये गये धोखेका सदा युवकोंसे बदला लेती रही। यह प्रेम न पानेके अभावकी प्रतिक्रियाका एक अच्छा उदाहरण है।
शारीरिक हो या मानसिक, सभी प्रकारके अभाव मनुष्यके संतुलित विकासमें बाधक है। अभावोंमें पलनेवाले बच्चे बड़े होनेपर भीरु बने रहते है। उनमें न बुद्धि रह पाती है, न स्फूर्ति और न प्रेरणा!
यदि जीवनमें संयोगवश उन्हें वे अभाव दूर करनेका अवसर आ भी जाता है, तो उनके सब ज्ञान-तन्तु गुप्त दलित भावकी इच्छाको पूरा करनेके लिये दौड़ते है। उस अवस्थामें मनुष्य न पाप देखता है न पुण्य, न बुरा न भला!
अधिक चिन्ता, कल्पित भयकी भावना, भ्रान्ति, आत्महत्याकी प्रवृत्ति, मतिभ्रम और आत्महीनताकी भावना हमारे प्रारम्भिक जीवनमें अभावपूर्ण परिस्थितियोंके दुष्परिणाम है।
बालकोंको अभावकी स्थितियोंसे बचाना परिवार और समाजका सर्वप्रथम कर्तव्य है।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन