गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
अंग्रेज उपन्यासकार चार्ल्स डिकेन्स अपने हाथोंकी अँगुलियोंमें कई अँगूठियाँ पहिनता था। प्रायः आभूषण धारण कर वह मन-ही-मन अपनी महत्ताकी धाक आस-पासवालों और मित्रोंपर जमाया करता। मनोविज्ञानवेत्ताओंने जब उसके मनका अध्ययन किया, तो ज्ञात हुआ कि यह उसके प्रारम्भिक गरीबी और अभावोंके जीवनकी एक प्रतिक्रियामात्र थी। सम्पन्न होनेपर भी वह इस समृद्धिके प्रदर्शनमें दिलचस्पी लेता रहा। उसका गुप्त मन यह नहीं चाहता था कि कोई उसे दीन-हीन या गरीब कहे।
प्रारम्भिक जीवनमें वस्त्रों या आभूषणोंका अभाव पानेवाली नारियाँ प्रायः सस्ती सिल्क या रंग-बिरंगे वस्त्रों और नकली गहनोंसे अपनेको सुसज्जित रखनेका प्रयत्न करती है। इसी प्रकार इत्र-फुलेल, अधिक बनाव-श्रृंगार भी पुराने अभावोंको ढकनेके विविध प्रयत्न है।
जिन बच्चोंको स्वच्छन्दता, प्रेम या सहानुभूतिका अभाव मिलता है या जिन्हें कोई पर्याप्त प्यार और स्नेह नहीं देता, वे बड़े होकर उद्दण्ड, जिद्दी, झगड़ालू और दूसरोंपर अत्याचार करनेवाले बनते पाये गये हैं। जीवनभर वे दूसरोंसे अपने प्रति किये गये नाना दुर्व्यवहारोंका बदला निकालते रहते है।
जो बहू सासके अत्याचारोंको सहती रहती है, वह स्वयं बड़ी होकर जब सासका पद प्राप्त करती है, तो उससे भी कहीं कठोर, निर्मम, कटु और बुरे स्वभावकी बन जाती है। सज्जनताके व्यवहारका प्रारम्भिक अभाव उसकी इस कठोरताका कारण बन जाता है।
इसी प्रकार जो मातहत कल्र्क या छोटा अध्यापक अपने अफसरकी घुड़कियाँ या ताड़ना पाता है, वह स्वयं अफसर बनकर बड़ा कठोर निकलता है।
जो व्यक्ति अपने धर्मवालोंकी ताड़ना, उपेक्षा या अत्याचारके शिकार बनकर धर्म-परिवर्तन करते है, वे उम्रभर अपने ही धर्मवालोंसे बदला लेते रहते है।
हमारे एक पचास वर्षीय सम्पन्न प्रोफेसर मित्र है। उनका शरीर स्थूल, बुद्धि परिपक्व, अभिरुचि साहित्यिक है। जब कभी उनके यहाँ जाते है, तो वे मिठाई अवश्य खिलाते है। स्वयं भी मिठाईके प्रगाढ़ प्रेमी है। जब घरमें कुछ मीठा नहीं होता, तब शक्कर ही फाँकते रहते है। अधिक मीठेके उपयोगके कारण गर्मियोंमें उनके शरीरमें फोड़े-फुन्सियाँ फूट निकलती है। बड़ी बुरी हालत हो जाती है। फिर भी वे मित्र अपनी मिठाई खानेकी प्रवृत्तिको नहीं छोड़ पाते। इन्जेक्शन लगवाते है और बड़ी मुश्किलमें स्वस्थ हो पाते हैं।
कारण, एक दिन उनसे बातें चल निकलीं, तो अतीतकी स्मृतियोंसे मालूम हुआ कि एक गरीब-परिवारमें उनका जन्म हुआ था। खाने-पीने, विशेषतः मिठाईका नितान्त अभाव रहा। महीनों मीठा न मिलता। उनका मन मिठाई खानेको अति इच्छुक रहता। होते-होते मिठाईका अभाव उनके गुप्त मनमें एक भावनाग्रन्धि बन गया और वृद्धावस्थातक उसकी प्रतिक्रिया उनके जीवनपर चलती रही। आजतक वे मिठाई और शक्कर खा-खाकर उस पुराने अभावकी पूर्ति करते हैं।
वे प्रत्यक्ष रूपसे स्वीकार नहीं करते, पर वास्तवमें गुप्त मनका यही अद्धृत रहस्य है। एक बार किसी रूपमें जिस बातकी कमी या न्यूनता मनको झकझोर देती है, उसकी ठेस पूरी आयुभर बनी रहती है और वह हमारे अनेक कार्यों बर्तावों, आचार-व्यवहारों, वस्त्र और आभूषणोंद्वारा कृत्रिम समृद्धि-प्रदर्शनमें अभिव्यक्त होती रहती है।
अस्वास्थ्यकर परिस्थितियोंमें रहनेवाले बच्चोंका जीवन अस्त-व्यस्त रहता है। उनके कमरेकी वस्तुएँ इधर-उधर बुरी तरह बिखरी रहती है। वस्त्र मैले रहते है। स्नानसे उन्हें आलस्य होता है। कई-कई दिनतक वे शरीर स्वच्छ नहीं करते, कमरोंमें झाड़ू नहीं देते, मेज, कुर्सी कमरेकी पुस्तकें, चित्र, जूते इत्यादिकी सफाईकी ओर ध्यान नहीं देते, दाँत साफ नहीं करते।
बालोंको साबुनसे नहीं धोते। उनमें जुएँतक पड़ जाती है। खुजली आती है। रस्सीकी तरह बट जाते है, पर उन्हें बुरा नहीं मालूम होता। कुछ व्यक्ति बड़े हो जानेंपर भी नाककी सफाई बिना रूमालके अपने हाथ या कमीजकी आस्तीन या पाजामेसे करते रहते है। ये तथा इसी प्रकारसे और कार्य प्रारम्भिक जीवनके छोटे-छोटे अभावों-कम वस्त्रोंका होना, धोबीसे वस्त्र धुला सकनेकी सुविधा न होनेके कारण होते हैं।
चिन्ताकी आहटके कारणोंको खोजनेपर भी हमें प्रारम्भिक अभाव ही मिलते है। हमारे एक सम्पन्न मित्र सदैव यही चिन्ता करते रहते है कि कहीं वे गरीब न हो जायँ, उनकी नौकरी न छूट जाय या जिस बैंकमें उनकी समस्त पूँजी जमा है, कहीं वह फेल न हो जाय। इस चिन्ताका कारण उनका प्रारम्भिक अभावपूर्ण जीवन है, जिसमें उन्हें निर्धनतासे भयंकर संघर्ष करना पड़ा था।
जिन स्त्री या पुरुषोंका सेक्स भाव संतुष्ट नहीं होता, वे जीवनमें चिन्तित और विक्षुब्ध रहते है और अतृप्त कामेच्छाकी तृप्तिके अनेक साधन ढूँढ़ते है। हँसी-मजाक करते और प्रायः गाली दिया करते है; फिल्मोंकी पत्रिकाएँ या प्रेम-कहानियाँ खूब पढ़ते है।
चार्ल्स डिकेन्सके 'ग्रेट एक्सेक्टेशन्स' में एक स्त्री प्रमुख पात्र है। नाम है मिस हैवीशाम। धनसम्पन्न और ऐश्वर्ययुक्त; हर तरहकी सुख-सुविधासे युक्त, लेकिन उसकी आदत है कि वह बड़ी उम्र होनेपर भी दुलहिन-जैसी पोशाक पहनती है। सजी-बजी रहती है, जैसे अभी-अभी उसका विवाह होनेवाला है। एक सजे हुए कमरेमें बैठी रहती है। बाजेका स्वर सुनते रहना चाहती है। घरसे बाहर नहीं निकलती। वह एक सुन्दर कन्याको गोद लेती है। उसे पढ़ा-लिखाकर रंग-बिरंगी तितली बनाये रहती है। इस कन्याका नाम है मिस ऐस्टला।
मिस ऐस्टलाको शिक्षा दी गयी है कि वह अधिक-सें-अधिक युवकोंसे प्रेम करे; उनसे घनिष्ठता बढ़ाये, पर किसीसे विवाह न करे और इस प्रकार उनका हृदय तोड़ती रहे। उन्हें तरसाती-कलपाती रहे। ऐस्टला जितने अधिक युवकोंका हृदय तोड़ती है, उतनी ही मिस हैवीशाम प्रसन्न होती है।
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- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
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- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
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- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
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- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
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- जीवनकी कला
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- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
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- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
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- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन