गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
( १ )
एक व्यक्ति लिखते हैं-'मुझे मिठाईका बड़ा शौक है। जब कभी मैं मिठाईकी किसी दुकानके आगेसे गुजरता हूँ और मेरी जेबमें पैसे होते है, तो मैं जरूर मिठाई खरीदता हूँ और जबतक सब पैसे समाप्त नहीं हो जाते, मिठाई खाता ही रहता हूँ। घरपर भी मीठेकी ओर मेरा मन दौड़ा करता है। और कुछ नहीं तो शक्कर ही फांकता हूँ। शरबत पीता हूँ। मिठाईकी इस लतसे मूत्रमें शक्चर आने लगा है और अब मैं बीमार भी रहने लगा हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरी बीमारीका कारण यही मिठाईकी आदत है। इसीने मुझे बीमार किया है। कौन जाने यही मेरे प्राण भी ले ले; पर अभीतक अवसर पाते ही मैं मिठाईकी ओर बुरी तरह झुक जाता हूँ। मैं क्या करूँ?'
एक अन्य सज्जन वासनाके बारेमें लिखते हैं कि वे वासनासे बुरी तरह परेशान है। अनेक बच्चोंके पिता हैं। पत्नी परेशान है। वे स्वयं अपनी मूर्खता जानते हैं, पर वासनाके वशीभूत हो कुछ-का-कुछ कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं। जानते-बूझते भी अपने मनकी दुर्बलताके कारण संसारके बन्धनमें फँसे हुए हैं।
अपने क्रोधके आवेशकी बातें करते हुए एक मित्र एक बार कह रहे थे-'क्या बतायें, जब हम देखते हैं कि दूसरा व्यक्ति सरासर गलत बात कह रहा है, बेवकूफीके तर्क दे रहा है और आगे आनेवाली कठिनाईकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है, तो हमें उद्विग्नता आ जाती है, हम भी उत्तेजित हो उठते हैं। हम किसीके दबैल नहीं हैं, किसीसे माँगकर नहीं खाते हैं। फिर क्यों दबे? पर क्या बतायें क्रोधके आवेशमें हम प्रायः ऐसा कह बैठते हैं जिसपर हमें पछताना पड़ता है। मित्रताएँ टूट जाती हैं। हम अपने आवेशकी कमजोरी जानते हैं, पर क्या बतायें इस दुर्बलतासे छूट नहीं पा रहे हैं।'
एक सज्जन चिन्ताकी आदतसे परेशान हैं। उनके पास स्वास्थ्य है, धन है, मान-प्रतिष्ठा भी है, पर न जाने कैसे उन्हें यह भ्रम हो गया कि 'मेरे भविष्यमें कुछ-न-कुछ अनिष्ट होनेवाला है, मेरा स्वास्थ्य खराब हो जायगा, मेरे परिवारवाले मुझे धोखा दे देंगे, मेरी जीविका छिन जायगी।' वे इसी प्रकारकी अनेक छोटी-बड़ी चिन्ताओंमें डूबे रहते है। उनकी चिन्ताका आधार कुछ नहीं, केवल कल्पित भयमात्र है, पर वे उसी तुच्छ-सी बातके लिये परेशान रहते हैं। अनहोनी बातोंकी चिन्तामें बैठकर समय नष्ट करते हैं। नैराश्यपूर्ण विचारोंके साथ-साथ उनका मस्तिष्क गुप्त कल्पित भयपूर्ण विचारोंकी श्रृंखलामें आबद्ध है। वे सदैव कलकी चिन्ता ही किया करते हैं। निरन्तर चिन्ताका मानसिक अभ्यास-करनेसे अब उनका मानसिक संस्थान दुःख और भयसे परिपूर्ण हो उठा है।
हमारे एक शिष्यकी आदत है कि वह स्वप्नोंके संसारमें रहता है। कोई नयी अजीब बात होनेवाली है, कुछ-न-कुछ ऐसा परिवर्तन होगा कि स्थिति मेरे अनुकूल पड़ जायगी और मेरा जीवन पूर्वजोंसे अधिक सुन्दर, सुखमय तथा शक्तिशाली हो जायगा। यह कवि संसारकी वास्तविकताको नहीं जानता। मनुष्यको उन्नति करनेमें जिस घोर संघर्षका सामना करना पड़ता है, उससे इसका कोई परिचय नहीं है। न उसे समझना ही चाहता है।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन