गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
बुद्धि यथार्थमें प्रतिभाका एक संस्कारित स्वरूप है। भावुकता अर्थात् कल्पनात्मक महानुभूति, बुद्धिका एक गुण है। नाना प्रकारके विचार, कल्पनाएँ मानस-चित्र निर्माण करना, सोचना, तर्क करना बुद्धिके व्यापार हैं। कुशाग्र बुद्धिवाला व्यक्ति अधिक अस्पष्ट मानस-चित्र विनिर्मित करता है। कल्पना करना, ज्ञानके आधारपर उन मानस-चित्रोंको अधिकाधिक स्पष्ट करना, उनमें भावुकता (Feeling) का संचार करना-यह बुद्धिमानीकी आन्तरिक अवस्था है। जबतक उक्त तत्त्वोंमें पूर्ण सामञ्जस्य नहीं, तबतक बुद्धिमें परिपक्वताका संचार नहीं हो सकता। तर्कसे कल्पनाका अनौचित्य प्रक्षालित होता है और बुद्धिका विशुद्ध व्यावहारिक रूप प्रकट होता है। बुद्धिमान्की विविध योजनाएँ व्यावहारिकताके आधारपर विनिर्मित होती हैं। मनुष्यके मनका विकास अधिकतर उसकी बुद्धिके विकासपर ही निर्भर है। बुद्धिकी शक्ति मस्तिष्कके सूक्ष्म कोषों (Cells) में निवास करती है। जिज्ञासा एवं स्मरणशक्ति बुद्धिके विशिष्ट अंग-प्रत्यंग है। मननसे
मनकी शक्ति बढ़ती है। निर्दिष्ट समयपर दूसरे सब विचारोंको छोड़कर एक 'आत्मतत्त्व' पर मनको एकाग्र करना चाहिये।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन