गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
चित्तका प्रधान कार्य जानना या अनुभव करना है। चित्तको योगदर्शन एवं सांख्यसूत्रोंमें प्रकृतिके सत्त्वगुणका परिणाम माना गया है। चित्त वृत्तियोंका भंडार है। चित्तकी वृत्तियोंको वशमें करना, रोकना, निरोध करना ही शान्तिका मूल है-'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।' (पा. यो० १।२)
चित्तकी वृत्तियोंके दो भेद हैं-अन्तर्वृत्ति, बहिर्वृत्ति। कुछ व्यक्तियोंकी वृत्ति बाह्य संसारकी उलझनोंसे ऊबकर अन्तःकरणके विवेककी ओर लग जाती है। इसमें व्यक्ति अन्तर्जगत्के गूढ रहस्योंमें पूर्ण निमग्र रहता है। वह आत्माके अन्तरालमें विचरण करता है। प्रकृत पुरुषका वास्तविक ज्ञान ही उसका प्रधान लक्ष्य होता है और इस तत्त्वज्ञानकी प्राप्तिसे समस्त क्लेश दूर हो जाते हैं।
द्वितीय वृत्ति है बहिर्वृत्ति अर्थात् केवल सांसारिक वस्तुओंका देखना, सुनना, उनमें लिप्त रहना। रजोगुण एवं तमोगुणके कारण विषयोंकी ओर वृत्ति झुकी रहती है, जैसे काम, क्रोध, लोभ, आलस्य इत्यादिमें प्रवृत्ति। अधिकांश अस्थिर व्यक्तियोंकी वृत्ति बहिर्वृत्ति ही होती है। विषयोंमें लिप्त रहनेके कारण उन्हें नाना प्रकारके क्लेशोंको भोगना पड़ता है। भोगकी सांसारिक वृत्तियोंको क्लिष्ट कहते हैं।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन