गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
कुछ व्यक्तियोंकी यह आदत होती है कि वे आनेवाले भयको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर तिलका ताड़ बनाकर देखते है। २४ शताब्दी पूर्व पेरेक्लीजने कहा था, 'सज्जनो! हमारी बड़ी मानसिक कमजोरी यह है कि हम बैठकर छोटी-छोटी-सी बातोंकी चिन्तामें समय नष्ट कर देते है।' वास्तवमें यदि हम अपनी चिन्ताओंको उनके ठीक रूपमें देखें, तो हमें विदित होगा कि दर-असल ये छोटी-छोटी चीजें है जो हमें परेशान करती रहती हैं।
डिजराहलीने कहा है, 'जीवन ऐसी छोटी-छोटी बातोंमें चिन्तित रहनेके लिये नहीं है। जीवन महान् है। वह साधारण बातोंमें विनष्ट होनेके लिये कदापि नहीं बना है।' ऐण्ड्र-मौरिसने उक्त शब्दोंके महत्त्वका निर्देश करते हुए लिखा है कि 'इन शब्दोंने मुझे जीवनके अनेक कारुणिक और चिन्तनीय स्थलोंमें सहायता की है।' अनेक बार हम गहराईसे सोचनेके कारण या दूर दृष्टिके अभावमें ऐसी बातोंकी चिन्तामें फँस जाते है; जिन्हें हम भूलना चाहते है और जिनसे हम घृणा करते है। ऐसी चिन्ताएँ हमारे जीवनमें अकारण ही एक यन्त्रणा पैदा कर देती हैं। हमारी ये छोटी-छोटी बातें कालके प्रवाहमें स्वयं विलुप्त हो जायँगी। हम क्यों जीवनके बहुमूल्य क्षण छोटे-छोटे चिन्ता उत्पन्न करनेवाले कार्योंकी बातें सोच-सोचकर बरबाद करें? समय स्वयं इन्हें अपने अंदर आत्मसात् कर लेगा। अधिक ऊँचे प्रश्र, उच्च स्तरकी जीवनसम्बन्धी समस्याओंमें ही हमें संलग्न रहना उचित है।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन